पीली सरसों की लहरों से सजे खेतों में अब एक छिपा खतरा दस्तक दे रहा है, जो किसान भाइयों की कमाई पर भारी पड़ सकता है। माहू कीट, जिसे एफिड या मोयला भी कहते हैं, सरसों की फसल पर हमला बोल रहा है। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो यह कीट दिसंबर के आखिरी सप्ताह से मार्च तक सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है, और तापमान बढ़ते ही इसका प्रकोप और तेज हो जाता है।
देरी से बुवाई करने वाले खेतों में नुकसान 25 से 30 फीसदी तक पहुंच सकता है, क्योंकि यह छोटा-मोटा दुश्मन पौधे का रस चूसकर उसे कमजोर कर देता है। राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे तिलहन उत्पादक राज्यों में किसान भाई सतर्क हो जाएं, क्योंकि एक छोटी सी लापरवाही फसल को बर्बाद कर सकती है। लेकिन अच्छी बात यह है कि समय पर निगरानी और सही उपायों से इसे काबू किया जा सकता है।
माहू कीट के संकेत
यह कीट देखने में छोटा सा, सलेटी या जैतूनी रंग का होता है, जो सरसों के तने, पत्तियों और कोमल भागों पर चिपक जाता है। मुख्य समस्या तब शुरू होती है जब यह पौधे का रस चूस लेता है पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं, पौधा सुस्त हो जाता है। फूलों और फलियों पर हमला होने से दाने छोटे रह जाते हैं या विकास रुक जाता है। सबसे आसान पहचान है चिपचिपा पदार्थ, जिसे हनीड्यू कहते हैं यह पत्तियों पर जम जाता है और ऊपर से काली फफूंद की परत चढ़ आती है।
अगर खेत में ऐसी निशानियां दिखें तो समझ लें कि कीट ने डेरा जमा लिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआती चरण में ही पता चल जाए तो 70-80 फीसदी नुकसान रोका जा सकता है। देर बुवाई वाले खेतों में यह समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है, क्योंकि पौधे पहले से कमजोर होते हैं।
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तापमान और देरी से बुवाई ने बढ़ाया रिस्क
सर्दियों के अंत में तापमान में हल्की बढ़ोतरी माहू के लिए जन्मभूमि बन जाती है। दिसंबर के आखिर से यह कीट तेजी से फैलता है, क्योंकि गर्माहट से इसके अंडे फूटने लगते हैं। देरी से बुवाई करने वाले किसान सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि फसल की बढ़वार कमजोर रहती है। इसके अलावा, खेतों में खरपतवार या पुरानी फसल के अवशेष होने से भी कीट छिप जाता है। ICAR के शोध बताते हैं कि असंतुलित खाद और कम नाइट्रोजन से पौधे की ताकत घटती है, जो माहू को आमंत्रित करता है। अगर समय पर बुवाई (नवंबर के पहले पखवाड़े) की जाती तो खतरा आधा रहता।
देसी नीम से लेकर डाक्टरी स्प्रे तक, लागत कम रखें
कीट से लड़ाई में रोकथाम ही सबसे बड़ा हथियार है। सबसे पहले, खेत की साप्ताहिक निगरानी करें – सुबह या शाम को पत्तियां उलट-पलटकर देखें। जैविक तरीके अपनाएं: 5 प्रतिशत नीम की निंबोली का घोल बनाकर (100 ग्राम निंबोली को 2 लीटर पानी में उबालें, फिर 18 लीटर पानी में मिलाकर) फसल पर छिड़काव करें। यह कीट को भगाने के साथ फसल को पौष्टिक भी बनाता है।
अगर प्रकोप ज्यादा हो तो रासायनिक दवा का सहारा लें मैलाथियान 50 ईसी या डाइमेथोएट 30 ईसी की 1 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़कें। स्प्रे शाम को करें, ताकि पौधे पर असर न पड़े। खरपतवार साफ रखें और पौधों के बीच हवा का बहाव बनाए रखें। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बुवाई से पहले ही नीम के बीज उपचार करें, तो कीट का खतरा 50 फीसदी कम हो जाता है।
नुकसान से बचाव का फॉर्मूला
माहू का हमला होने से पैदावार में 25-30 फीसदी की गिरावट आ सकती है, लेकिन सही उपायों से इसे 10 फीसदी तक सीमित किया जा सकता है। देर बुवाई से बचें, और अगर हो चुकी है तो ज्यादा सतर्क रहें। ICAR की सिफारिश है कि जैविक खेती अपनाएं, क्योंकि रासायनिक दवाओं से तेल की क्वालिटी प्रभावित होती है। बाजार में अच्छी सरसों के दाम 80-100 रुपये प्रति किलो मिलते हैं, तो स्वस्थ फसल से एक एकड़ पर 60-70 हजार का फायदा आसानी से हो जाता है। छोटे किसान भी ये उपाय आजमाकर अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं।
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