उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में आम की खेती ने नया रंग लिया है। यहाँ के लुहरा गाँव में व्यवसायी गोपाल माहेश्वरी का 60 बीघा का बगीचा विदेशी और दुर्लभ किस्मों के आमों के लिए सुर्खियाँ बटोर रहा है। इस बाग में अमेरिका की टॉमी एटकिंस, जापान की मियाजाकी, थाईलैंड का बनाना मैंगो, और ब्रुनेई का किंग आम जैसी 31 किस्में उगाई जा रही हैं। खास बात यह है कि टॉमी एटकिंस में कम शुगर होने से डायबिटीज मरीज भी इसे खा सकते हैं। यह बगीचा न सिर्फ किसानों के लिए प्रेरणा है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी सेल्फी स्पॉट बन गया है।
टॉमी एटकिंस: डायबिटीज के लिए सुरक्षित आम
गोपाल माहेश्वरी ने बताया कि टॉमी एटकिंस किस्म का आम सेब जैसा दिखता है और पकने पर लाल रंग का हो जाता है। इसकी खासियत है कम शुगर और लंबी शेल्फ लाइफ, जिससे यह डायबिटीज मरीजों के लिए मुफीद है। यह आम जल्दी खराब नहीं होता और बाजार में अच्छा दाम लाता है। कासगंज में इसकी खेती ने स्थानीय किसानों को नई दिशा दी है, क्योंकि यह भारतीय जलवायु में आसानी से उग जाता है।
मियाजाकी: दुनिया का सबसे महँगा आम
इस बगीचे में जापान की मियाजाकी किस्म भी फल दे रही है, जिसकी कीमत 1.5 लाख से 2.75 लाख रुपये प्रति किलो तक है। इसका लाल रंग, अनोखा स्वाद, और दुर्लभता इसे दुनिया के सबसे महँगे आमों में शुमार करती है। माहेश्वरी ने बताया कि थोड़ी देखभाल से यह किस्म भारतीय मिट्टी में भी अच्छी पैदावार देती है। यह बाग छोटे किसानों के लिए नई संभावनाएँ खोल रहा है, क्योंकि विदेशी आमों की मांग बाजार में बढ़ रही है।
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छोटे पेड़, बड़ी पैदावार
कासगंज के इस बगीचे की एक और खासियत है इसके पेड़ों की ऊँचाई। यहाँ के आम के पौधे सिर्फ 2 से 3 फुट ऊँचे हैं, फिर भी इन पर बंपर फल लग रहे हैं। छोटे पेड़ों की वजह से देखभाल और कटाई आसान है। यह मॉडल छोटे किसानों के लिए किफायती है, क्योंकि कम जगह में ज्यादा पैदावार ली जा सकती है। इस अनोखे बगीचे को देखने के लिए दूर-दराज से लोग आ रहे हैं, और यह नर्सरी विजिट और सेल्फी स्पॉट के रूप में भी मशहूर हो रहा है।
जैविक खेती और बहुविविधता
गोपाल माहेश्वरी का यह बगीचा पूरी तरह जैविक है। इसमें विदेशी किस्मों के साथ-साथ दशहरी, लंगड़ा, चौसा, सफेदा, आम्रपाली, अंबिका, अरुणिका, ब्लैक कस्तूरी, हुस्नआरा, गुलाब खास, और सुर्खा वर्मा जैसे देसी आम भी उगाए जा रहे हैं। 60 बीघा में लगे 1200 पौधों में तीनों मौसमों के फल देने वाली किस्में शामिल हैं। माहेश्वरी का कहना है कि पिछले साल शुरू हुए इस बाग में एक साल में ही फल आने शुरू हो गए हैं, और अगले दो साल में पूरी पैदावार मिलेगी।
यह बगीचा कासगंज के किसानों के लिए नई राह दिखा रहा है। गोपाल माहेश्वरी ने बताया कि विदेशी और दुर्लभ किस्मों की खेती से न सिर्फ मुनाफा बढ़ेगा, बल्कि गाँवों में रोजगार के अवसर भी बनेंगे। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत किसानों को ऐसी खेती के लिए सब्सिडी और ट्रेनिंग मिल सकती है। नजदीकी कृषि केंद्र से संपर्क कर किसान इन किस्मों के पौधे और जैविक खेती की जानकारी ले सकते हैं।
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