Arhar Ki Fasal Me Rog: अरहर की फसल हमारे देश में दाल की ज़रूरत पूरी करने का बड़ा ज़रिया है, लेकिन उकठा (फ्यूजेरियम विल्ट) और बंझा (पॉड स्टरलिटी) जैसे रोग इसकी पैदावार को भारी नुकसान पहुँचाते हैं। ये रोग पौधों को सुखा देते हैं, फलियों को बनने से रोकते हैं, और कई बार पूरी फसल तबाह कर देते हैं। हाल के वर्षों में अरहर का उत्पादन 2021 के 43 लाख टन से घटकर 2025 में 35 लाख टन हो गया है, और प्रति हेक्टेयर पैदावार भी 914 किलो से घटकर 823 किलो रह गई है। यह लेख कृषि विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर लिखा गया है, जो आपको इन रोगों से बचने के उपाय बताएगा।
उकठा रोग, फसल का दुश्मन
उकठा रोग अरहर की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाता है। यह फ्यूजेरियम नामक कवक के कारण होता है, जो पौधे की जड़ों और तने में पानी व पोषक तत्वों के संचार को रोक देता है। इस रोग में पहले निचली पत्तियाँ पीली पड़ती हैं, फिर धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है। कभी-कभी पौधा हरा रहते हुए भी अचानक सूख जाता है। जड़ों को काटने पर काले रंग की धारियाँ दिखती हैं, और छाल हटाने पर तना भी काला नज़र आता है। बारिश के बाद खेत में पानी जमा होना और फिर मिट्टी का जल्दी सूख जाना इस रोग को बढ़ाता है। खेत की मिट्टी में पहले से मौजूद कवक भी इस रोग का कारण बनता है।
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उकठा रोग से बचाव
उकठा रोग से फसल को बचाने के लिए शुरुआत से सावधानी बरतनी ज़रूरी है। बुआई से पहले बीजों को उपचारित करना सबसे आसान और कारगर तरीका है। बीजों को ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम जैसे जैविक या रासायनिक कवकनाशी से उपचारित करें। बुआई के बाद, खासकर जुलाई-अगस्त में जब बारिश कम हो, ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास के मिश्रण को 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट में मिलाकर पौधों की जड़ों के पास फैलाएँ। अगर रासायनिक उपाय चाहिए, तो कॉपर-ऑक्सी-क्लोराइड (1 किलोग्राम प्रति एकड़) या रिडोमिल (500 ग्राम प्रति एकड़) को पानी में घोलकर खेत में छिड़कें।
बंझा रोग, फलियों का नुकसान
बंझा रोग अरहर की फसल के लिए दूसरी बड़ी मुसीबत है। यह रोग अरहर बांझपन मोज़ैक वायरस के कारण होता है, जिसे एरीओफाइड माइट नामक छोटा कीट फैलाता है। इस रोग में पौधों पर फूल कम आते हैं, और फलियाँ बनना बंद हो जाता है। पत्तियों पर हरे और पीले धब्बे दिखते हैं, जो धीरे-धीरे पीली पड़ती हैं और मुड़ने लगती हैं।
इससे पौधा बांझ हो जाता है, और दाने नहीं बनते। यह रोग खासकर गर्म और नम मौसम में तेज़ी से फैलता है। अगर खेत में पहले से संक्रमित पौधे हों, तो यह कीट वायरस को आसानी से फैलाता है, जिससे पूरी फसल खतरे में पड़ सकती है।
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बंझा रोग से निपटने के उपाय
बंझा रोग को रोकने के लिए खेत की नियमित जाँच ज़रूरी है। बुआई के 40 दिन बाद तक खेत में हर हफ्ते नज़र रखें। अगर कोई पौधा संक्रमित दिखे, तो उसे जड़ समेत उखाड़कर नष्ट कर दें। यह वायरस के फैलाव को रोकता है। एरीओफाइड माइट को नियंत्रित करने के लिए फेनाजाक्विन (1 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। जरूरत हो तो 15 दिन बाद इसे दोहराएँ। इसके अलावा, मिल्वीमेक्टिन (1 मिली प्रति लीटर पानी) या प्रोपारगाइट (3 मिली प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर 10-12 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।
फसल चक्र और मिट्टी की देखभाल
उकठा और बंझा रोगों को रोकने के लिए फसल चक्र अपनाना बहुत ज़रूरी है। अरहर को लगातार एक ही खेत में न बोएँ। इसके बजाय मूँग, चना, या बाजरा जैसी फसलों को बारी-बारी बोएँ। यह मिट्टी में कवक और कीटों की संख्या को कम करता है। खेत की मिट्टी को गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट से पोषण दें, ताकि उसकी सेहत बनी रहे। बुआई से पहले मिट्टी की जाँच करें, और अगर कवक की समस्या हो, तो जैविक कवकनाशी का इस्तेमाल करें। खेत में पानी जमा न होने दें, क्योंकि यह उकठा रोग को बढ़ावा देता है। ड्रिप इरिगेशन जैसे तरीके अपनाकर पानी की बचत करें और फसल को स्वस्थ रखें
उकठा और बंझा रोग अरहर की फसल को बर्बाद कर सकते हैं, लेकिन सही समय पर सही उपाय अपनाकर इनसे बचा जा सकता है। बीज उपचार, जैविक और रासायनिक कवकनाशी, फसल चक्र, और खेत की नियमित जाँच से फसल स्वस्थ रहती है। नीम का तेल और ड्रिप इरिगेशन जैसे देसी और आधुनिक तरीके भी कारगर हैं। बाजार में अरहर दाल की माँग हमेशा बनी रहती है, और स्वस्थ फसल से अच्छा दाम मिलता है।
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