Badri Gai Kundli Project: उत्तराखंड की पहाड़ियों में बद्री गाय की नस्ल का ऐतिहासिक महत्व है, जो प्राचीन काल से किसानों और वैद्यकीय परंपराओं का अभिन्न हिस्सा रही है। इसकी दूध और घी को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है—A2 प्रोटीन युक्त दूध जो पाचन और स्वास्थ्य के लिए रामबाण है। औसतन 1.5-2 लीटर दूध देने वाली यह गाय अब नस्ल सुधार और उत्पादन वृद्धि के केंद्र में है।
राज्य सरकार ने एक विशेष प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसमें चार जिलों में 3,000 से अधिक बद्री गायों की ‘कुंडली’ तैयार की जा रही है। यह ‘कुंडली’ 20 महत्वपूर्ण गुणों का रिकॉर्ड होगी, जो दूध उत्पादन बढ़ाने, नस्ल सुधार और रिसर्च का आधार बनेगी। आइए जानें, इस पहल का महत्व और कार्यान्वयन कैसे हो रहा है।
बद्री गाय का महत्व, औषधीय दूध और नस्ल सुधार की जरूरत
बद्री गाय उत्तराखंड की मूल नस्ल है, जो पहाड़ी इलाकों के लिए अनुकूल। इसका दूध A2 टाइप का है, जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है, जो हृदय रोग और पाचन समस्याओं में लाभकारी है। घी को आयुर्वेद में औषधि माना जाता है। लेकिन औसत उत्पादन 1.5-2 लीटर प्रतिदिन होने से किसानों को चुनौती है। प्रोजेक्ट का उद्देश्य इसे 3.5 लीटर+ तक बढ़ाना है। उच्च दूध देने वाली बद्री गायें चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी गढ़वाल और उत्तरकाशी जिलों में पाई जाती हैं, जहाँ प्राकृतिक चारा और ठंडा मौसम इनकी क्षमता बढ़ाता है।
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कुंडली का निर्माण, 20 गुणों का विस्तृत रिकॉर्ड
कुंडली में बद्री गाय के 20 गुण दर्ज होंगे—दूध उत्पादन, स्वास्थ्य, वजन, प्रजनन क्षमता, चारा ग्रहण आदि। यह रिकॉर्ड रिसर्च का आधार बनेगा, जिससे उच्च उपज वाली गायों का चयन और नस्ल सुधार संभव होगा। चार जिलों में 3,240 बद्री गायों पर फोकस है, जो पहले से 3.5 लीटर+ दूध देने वाली हैं। 45 मिल्क रिकॉर्डिंग सेंटरों पर यह कार्य हो रहा है, जहाँ स्थानीय शिक्षित युवाओं को रिकॉर्डर के रूप में चुना गया है। गायों की जियो टैगिंग हो चुकी है, और डेटा सीधे भारत सरकार को भेजा जा रहा है। INAPH सॉफ्टवेयर पर पशुपालक और पशु का पंजीकरण हो रहा है, जिसमें 12 अंकों का यूनिक आईडी टैग उपयोग हो रहा है।
मिल्क रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया, सटीक और समयबद्ध
मिल्क रिकॉर्डिंग ब्याने के पांचवें से 25वें दिन शुरू होती है, ताकि प्रारंभिक उत्पादन का सही आकलन हो। पुरानी गायों (25 दिन से अधिक ब्याने वाली) को शामिल नहीं किया जा रहा। प्रत्येक गाय की कम से कम 16 रिकॉर्डिंग (सुबह-शाम) और अधिकतम 20 की जाएंगी, या दूध सूखने तक। रिकॉर्डिंग हर महीने एक तय तारीख को सुबह-शाम दूध दुहने के स्थान पर होती है। यदि तिथि पर संभव न हो, तो ±5 दिन का लचीलापन है। प्रत्येक रिकॉर्डर एक दिन में केवल 5 गायों की रिकॉर्डिंग करता है, ताकि सटीकता बनी रहे।
रिकॉर्डर को शेड्यूल प्रदान किया जाता है, जिसमें गाय का विवरण, रिकॉर्डिंग तिथि, समय, पशुपालक का पता और गाँव का नाम शामिल होता है। भौगोलिक स्थिति के आधार पर रिकॉर्डरों की संख्या तय की गई है, जो स्थानीय बेरोजगार युवाओं से भरी गई है।
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प्रोजेक्ट के लाभ, दूध उत्पादन में वृद्धि और नस्ल संरक्षण
यह प्रोजेक्ट बद्री गायों के दूध उत्पादन को बढ़ाने और नस्ल को संरक्षित करने में मील का पत्थर साबित होगा। उच्च उत्पादन वाली गायों का चयन कर चारा प्रबंधन और प्रजनन में सुधार होगा। किसानों को बेहतर चारा और स्वास्थ्य देखभाल की सलाह मिलेगी। A2 दूध की मांग बढ़ रही है, जो बाजार में प्रीमियम कीमत (₹50-70/लीटर) दिलाएगी। प्रति गाय 3.5 लीटर+ उत्पादन से वार्षिक आय दोगुनी हो सकती है। जियो टैगिंग से डेटा विश्लेषण आसान होगा, और राष्ट्रीय स्तर पर बद्री नस्ल का प्रचार होगा।
चुनौतियाँ और समाधान
कुंडली निर्माण में चुनौतियाँ जैसे युवाओं का प्रशिक्षण और डेटा सटीकता हैं। लेकिन स्थानीय युवाओं का चयन और INAPH सॉफ्टवेयर से इसे हल किया जा रहा है। किसानों को जागरूकता अभियान से जोड़ा जा रहा है, ताकि अधिक गायें शामिल हों। सरकारी योजनाओं से चारा और स्वास्थ्य सुविधाएँ बढ़ेंगी।
उत्तराखंड का यह प्रोजेक्ट बद्री गायों को नई ऊँचाई देगा। कुंडली से रिसर्च मजबूत होगी, दूध उत्पादन बढ़ेगा और किसानों की आय सुधरेगी। स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। यह पहल न केवल नस्ल संरक्षण, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी।
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