Barley Bh-393: भारत में रबी सीजन में गेहूं के साथ-साथ जौ भी किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प बनता जा रहा है। खासकर पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में, जहां गेहूं की परंपरागत खेती के साथ किसान फसल चक्रण पर ध्यान दे रहे हैं, वहां जौ की खेती एक नई उम्मीद लेकर आई है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से विकसित माल्टिंग जौ की नई किस्म BH-393 ने किसानों का ध्यान खींचा है।
यह किस्म उच्च उपज क्षमता, रोग प्रतिरोधकता और माल्टिंग क्वालिटी के कारण तेजी से लोकप्रिय हो रही है। किसान इसे न केवल बीयर और माल्ट उद्योग की डिमांड पूरी करने के लिए उगा रहे हैं, बल्कि पशु चारे और अतिरिक्त आय के लिए भी अपना रहे हैं।
BH-393 की उपज क्षमता
BH-393 की सबसे बड़ी ताकत इसकी उपज क्षमता है। इस किस्म की औसत पैदावार 46-47 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है, जबकि अच्छी देखभाल और संतुलित उर्वरक उपयोग से यह 67 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुँच सकती है। इसकी छह-कतारी संरचना इसे अन्य किस्मों से अलग बनाती है, क्योंकि इसमें प्रति बाली 50-55 दाने आते हैं। दाने मोटे, चमकदार और भारी होते हैं, जिनका वजन 3.5-4 ग्राम प्रति 1000 दाने होता है।
यह खासियत इसे बाजार में 5000-6000 रुपये प्रति क्विंटल तक की प्रीमियम कीमत दिलाती है। पंजाब के लुधियाना में हुए परीक्षणों में BH-393 ने अन्य किस्मों की तुलना में 10-15% बेहतर प्रदर्शन किया है। इसके माल्टिंग गुण भी बेहतरीन हैं बीटा-ग्लूकन 4.9%, माल्ट यील्ड 87.1% और डायस्टेटिक पावर 1020L, जो बीयर और माल्ट उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
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रोग प्रतिरोधकता
रोग प्रतिरोधकता इस किस्म की दूसरी बड़ी खासियत है। जौ की खेती में पत्ती झुलसा और रस्ट जैसे रोग आमतौर पर किसानों की चिंता का कारण बनते हैं। BH-393 इन दोनों रोगों के प्रति सहनशील है। इसके अलावा यह स्ट्राइप रस्ट और लीफ रस्ट के खिलाफ मध्यम प्रतिरोधकता दिखाती है। पाउडरी मिल्ड्यू और स्मट जैसी समस्याओं से भी यह किस्म काफी हद तक बचाती है।
इसका मतलब है कि किसान रासायनिक दवाओं पर 20-25% तक खर्च कम कर सकते हैं। परीक्षणों में देखा गया है कि जिन खेतों में यह किस्म लगाई गई, वहां रोगों से होने वाला नुकसान 15-20% तक कम था। इसकी मजबूत जड़ें और तना इसे सूखा और गर्मी सहने की क्षमता भी देते हैं, जिससे किसान जलवायु की अनिश्चितताओं में भी निश्चिंत रहते हैं।
खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र
खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र और समय भी ध्यान देने योग्य हैं। BH-393 खास तौर पर पंजाब और हरियाणा की सिंचित और समय पर बोई गई परिस्थितियों के लिए अनुशंसित की गई है। इसकी खेती दोमट या काली मिट्टी में सबसे अच्छी होती है, जहां pH 6.5 से 7.5 के बीच हो। नवंबर का पहला हफ्ता इसकी बुवाई के लिए आदर्श माना जाता है, जब औसत तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस रहता है। यही समय पौधों की तेज़ बढ़त और स्वस्थ विकास के लिए सबसे अच्छा होता है।
बुवाई का वैज्ञानिक तरीका
बुवाई का वैज्ञानिक तरीका अपनाना इस किस्म की सफलता की कुंजी है। खेत को 3 बार गहरी जुताई कर भुरभुरा बना लें और 100 क्विंटल गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट मिलाएँ। बीज दर 100 किलो प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। बीजों को बोने से पहले कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो) से उपचारित करना जरूरी है, ताकि रोगों का खतरा कम हो। ड्रिल विधि से 20 सेंटीमीटर की पंक्ति दूरी और 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बीज बोएँ। उर्वरकों के लिए नाइट्रोजन 120 किलो और फॉस्फोरस 60 किलो प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है।
सिंचाई और प्रबंधन
सिंचाई और प्रबंधन भी फसल की सफलता में अहम भूमिका निभाते हैं। इस किस्म को आमतौर पर तीन सिंचाइयों की आवश्यकता होती है—पहली बुवाई के 20-25 दिन बाद, दूसरी टिलरिंग के समय और तीसरी फूल आने पर। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन (1 किलो/हेक्टेयर) का छिड़काव प्रभावी होता है। रोगों के शुरुआती लक्षण दिखते ही मैनकोजेब (2 किलो/हेक्टेयर) का उपयोग करें। जो किसान जैविक खेती की ओर झुकाव रखते हैं, वे नीम तेल और गोमूत्र आधारित छिड़काव का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
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कटाई और मुनाफा
फसल की परिपक्वता अवधि लगभग 125 दिन है। जब बालियाँ पूरी तरह से पककर सुनहरी हो जाएँ, तब कटाई करें। औसतन 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल सकती है। लागत लगभग 20,000 रुपये प्रति हेक्टेयर आती है, जबकि बाजार में इसकी बिक्री से 2.5 से 3 लाख रुपये तक का मुनाफा संभव है। यही वजह है कि किसान इसे गेहूं-जौ फसल चक्र में शामिल कर रहे हैं। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरक क्षमता बनी रहती है, बल्कि फसल विविधीकरण से जोखिम भी कम होता है।
BH-393 का उपयोग केवल अनाज और माल्टिंग तक सीमित नहीं है। इसके भूसे का उपयोग पशु चारे के रूप में किया जाता है, जो पशुपालकों के लिए भी अतिरिक्त लाभकारी है। मोटे और पोषक तत्वों से भरपूर भूसा दूध उत्पादन बढ़ाने में सहायक होता है। इस तरह किसान एक ही फसल से दोहरी कमाई कर सकते हैं।
कुल मिलाकर, BH-393 किसानों के लिए रबी सीजन की एक बेहतरीन किस्म है। इसकी उच्च उपज क्षमता, रोग प्रतिरोधकता, कम लागत वाली खेती और माल्टिंग गुणवत्ता इसे खास बनाते हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान इसे तेजी से अपना रहे हैं और मुनाफे में इजाफा कर रहे हैं। यदि समय पर बुवाई और वैज्ञानिक प्रबंधन किया जाए, तो यह किस्म किसानों की आय को कई गुना बढ़ाने में सक्षम है।
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