New Variety of Katarni Paddy: भागलपुर के कतरनी धान की खुशबू और स्वाद की दुनिया दीवानी है। इसकी खेती न सिर्फ बिहार के किसानों की आजीविका का आधार है, बल्कि इसे 2018 में जीआई टैग मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली है। अब कतरनी की खेती करने वाले किसानों के लिए एक और अच्छी खबर है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर के वैज्ञानिकों ने कतरनी की नई बौना किस्म विकसित की है, जो कम खर्च में बंपर पैदावार देगी। इस किस्म का पौधा छोटा रहता है, लेकिन उपज में ये पारंपरिक कतरनी से कहीं आगे है। इस लेख में इस नई किस्म की खासियत, फायदे, और भागलपुर में कतरनी की खेती की अहमियत के बारे में बताया गया है।
बौना कतरनी
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के वैज्ञानिक किसानों की आय बढ़ाने के लिए लगातार शोध कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने कतरनी धान की नई बौना किस्म विकसित की है, जिसका नाम भले ही बौना हो, लेकिन इसका प्रदर्शन शानदार है। इस किस्म का पौधा छोटा और मजबूत होता है, जिससे ये हवा या बारिश से गिरता नहीं। सबसे बड़ी खासियत इसकी उपज है। जहां पारंपरिक कतरनी की उपज 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है, वहीं बौना कतरनी 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार दे सकती है। ये किस्म विशेष रूप से भागलपुर के किसानों के लिए बनाई गई है, जहां कतरनी धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है।
रोग रोधी और कम खर्च वाली खेती
बौना कतरनी की एक और खासियत ये है कि ये पूरी तरह रोग रोधी है। इस पर कीटों या बीमारियों का असर न के बराबर होता है, जिससे कीटनाशकों पर खर्च कम हो जाता है। साथ ही, इसकी खेती के लिए सीमित सिंचाई की जरूरत पड़ती है, जो पानी की कमी वाले इलाकों में भी इसे उपयुक्त बनाती है। कम खाद और कम पानी में अच्छी पैदावार देने की वजह से ये किस्म छोटे और मझोले किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती से लागत कम होगी और मुनाफा ज्यादा, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
भागलपुर कतरनी धान का कटोरा
भागलपुर को कतरनी धान का कटोरा कहा जाता है, और खासकर जगदीशपुर इलाका इसकी खेती का मुख्य केंद्र है। यहां की मिट्टी और जलवायु कतरनी धान के लिए बहुत अनुकूल है। कतरनी की खुशबू, इसका नरम और मीठा स्वाद, और मुंह में घुल जाने वाली खासियत इसे बाजार में खास बनाती है। 2018 में कतरनी धान को जीआई टैग मिला, जिसके बाद इसकी मांग देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ी है। भागलपुर से कतरनी चावल, चूड़ा, और आटा विदेशों तक सप्लाई होता है। नई बौना किस्म के आने से अब इसकी खेती का दायरा और बढ़ेगा, और किसान ज्यादा उत्पादन के साथ बेहतर दाम पा सकेंगे।
बौना कतरनी की खेती से किसानों को कई तरह के फायदे मिलेंगे। सबसे बड़ा फायदा इसकी ऊंची उपज है, जो 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। रोग रोधी होने की वजह से कीटनाशकों और दवाइयों पर खर्च कम होगा। इसकी छोटी ऊंचाई के कारण पौधे मजबूत रहते हैं और गिरने का खतरा कम होता है, जिससे फसल का नुकसान नहीं होता। सीमित पानी और खाद की जरूरत इसे कम लागत वाली फसल बनाती है। साथ ही, कतरनी की बढ़ती मांग और जीआई टैग की वजह से बाजार में अच्छा दाम मिलता है। ये किस्म किसानों को कम मेहनत में ज्यादा कमाई का मौका देगी।
खेती के लिए सही समय और सलाह
बौना कतरनी की खेती के लिए सही समय और प्रबंधन जरूरी है। बिहार में कतरनी धान की बुआई आमतौर पर मानसून के दौरान जून-जुलाई में शुरू होती है। इस किस्म के लिए उपजाऊ मिट्टी और अच्छा जल निकास जरूरी है। बुआई से पहले खेत में गोबर की खाद या जैविक खाद डालने से पैदावार बढ़ती है। वैज्ञानिकों की सलाह है कि बौना कतरनी के बीज विश्वसनीय स्रोत, जैसे बिहार कृषि विश्वविद्यालय या प्रमाणित बीज विक्रेताओं से ही खरीदे जाएं। खेत की नियमित निगरानी और सही समय पर सिंचाई से फसल स्वस्थ रहती है। किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करके इसकी खेती की बारीकियां समझ सकते हैं।
किसानों के लिए सुनहरा अवसर
कतरनी धान की नई बौना किस्म बिहार के किसानों के लिए एक नया रास्ता खोल रही है। इसकी बंपर उपज, रोग रोधी खासियत, और कम लागत इसे छोटे और बड़े किसानों के लिए फायदेमंद बनाती है। भागलपुर के कतरनी धान को जीआई टैग की वजह से पहले से ही खास पहचान मिली है, और अब इस नई किस्म के साथ किसान ज्यादा उत्पादन और बेहतर दाम पा सकते हैं। जिन किसानों ने अभी तक कतरनी की खेती शुरू नहीं की, उनके लिए ये एक सुनहरा मौका है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय या स्थानीय कृषि विभाग से संपर्क करके इस किस्म के बीज और खेती की जानकारी ली जा सकती है।
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