Apple Farming: क्या आपने कभी सोचा कि धान, गेहूं, और लीची की धरती बिहार में सेब भी लहलहा सकता है? पटना के मसौढ़ी के किसान ललित कुमार ने ये सपना सच कर दिखाया। 20 साल से बागवानी में जुटे ललित ने हिमाचल प्रदेश से सेब के पौधे लाकर 12 बीघा के खेत में 10 सेब के पेड़ लगाए और फल भी हासिल किए। उनकी मेहनत ने बिहार के किसानों को नई राह दिखाई है। वो कहते हैं, “जैसे कश्मीर और शिमला के सेब मशहूर हैं, वैसे ही बिहार का सेब भी मंडी में नाम कमाएगा।” आइए, जानते हैं ललित की ये अनोखी कहानी और बिहार में सेब की खेती का देसी जुगाड़।
HRMN-99 और गोल्डन: गर्मी में सेब की किस्में
ललित ने सेब की दो खास किस्में—HRMN-99 और गोल्डन—हिमाचल के मशहूर किसान हरिमन शर्मा से खरीदीं। ये किस्में खास इसलिए हैं क्योंकि इन्हें ठंडी जलवायु की जरूरत नहीं। HRMN-99 को हरिमन शर्मा ने विकसित किया, जो 40-44 डिग्री तापमान में भी फल देता है। इसका फल बड़ा, रसीला, और गुड़ जैसा मीठा होता है, जिसकी मंडी में भारी माँग है। गोल्डन किस्म भी गर्म जलवायु में अच्छा फल देती है, और इसका स्वाद भी लाजवाब है। ललित बताते हैं कि बिहार की दोमट मिट्टी और गर्म मौसम इन किस्मों के लिए मुफीद है। उनके 10 पेड़ों ने पहले साल में ही फल देना शुरू कर दिया, जो बिहार जैसे गर्म इलाके के लिए बड़ी कामयाबी है।
सेब की खेती का देसी तरीका
ललित ने सेब की खेती शुरू करने के लिए हिमाचल के हरिमन शर्मा से न सिर्फ पौधे लिए, बल्कि उनकी सलाह भी मानी। सेब की खेती के लिए दोमट या बलुई मिट्टी बेस्ट है, और मिट्टी का पीएच 6.0-7.0 होना चाहिए। ललित ने अपने 12 बीघा के खेत में सेब के साथ-साथ दूसरी फसलें भी उगाईं, ताकि मिट्टी की सेहत बनी रहे। पौधों के बीच 10-15 फीट की दूरी रखी, और ड्रिप इरिगेशन का जुगाड़ किया।
रोपाई के लिए मार्च-अप्रैल का समय चुना, जब तापमान 25-30 डिग्री होता है। पहले साल में पौधों को हफ्ते में 2-3 बार पानी दिया, और गोबर की खाद के साथ नीम का तेल छिड़का, ताकि कीटों से बचाव हो। ललित बताते हैं कि HRMN-99 और गोल्डन किस्में स्कैब बीमारी से कम प्रभावित होती हैं, जिससे देखभाल आसान हो जाती है।
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मुनाफा और मंडी की माँग
ललित के सेब की मंडी में बिक्री को लेकर कोई चिंता नहीं। वो कहते हैं, “अगर कश्मीर और कुल्लू का सेब 200 रुपये किलो बिकता है, तो बिहार का सेब क्यों नहीं बिकेगा?” HRMN-99 और गोल्डन सेब का स्वाद मीठा और आकार बड़ा होने से मंडी में इनकी डिमांड अच्छी है। एक पेड़ से 3-8 साल की उम्र में 5-75 किलो फल मिल सकता है।
अगर 10 पेड़ों से औसतन 50 किलो प्रति पेड़ फल मिले, तो 500 किलो सेब होगा। 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से, एक सीजन में 50,000 रुपये की कमाई हो सकती है। जैसे-जैसे पेड़ बड़े होंगे, मुनाफा भी बढ़ेगा। बिहार की स्थानीय मंडियों में ये सेब आसानी से बिक सकता है, और ट्रांसपोर्ट लागत भी बचेगी। ललित का सपना है कि बिहार का सेब दिल्ली और कोलकाता की मंडियों तक जाए।
बिहार में सेब की खेती की संभावनाएँ
ललित की कामयाबी ने बिहार के किसानों में नई उम्मीद जगाई है। बिहार की गर्म जलवायु और दोमट मिट्टी HRMN-99 और गोल्डन जैसी कम चिलिंग वाली किस्मों के लिए मुफीद है। हरिमन शर्मा की खोज ने बिहार, झारखंड, और मणिपुर जैसे गर्म इलाकों में सेब की खेती को मुमकिन बनाया है। बिहार सरकार भी HRMN-99 की खेती को बढ़ावा देने के लिए पायलट प्रोजेक्ट चला रही है, जिसमें वैशाली, भागलपुर, और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में सेब के पौधे लगाए जा रहे हैं। ललित जैसे किसानों की मेहनत और नई सोच बिहार को सेब का नया हब बना सकती है।
ललित कहते हैं, “खेती में मेहनत और नई सोच चाहिए। बिहार की मिट्टी में सब कुछ उग सकता है, बस हिम्मत और सही तरीका चाहिए।” वो दूसरे किसानों को सलाह देते हैं कि सेब की खेती शुरू करने से पहले हरिमन शर्मा जैसे विशेषज्ञों से बात करें और ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करें। उनकी मेहनत और हरिमन शर्मा की HRMN-99 किस्म ने साबित कर दिया कि बिहार में सेब की खेती सिर्फ सपना नहीं, हकीकत है।
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