Braud Of Millets Farming In Samastipur : बिहार के समस्तीपुर जिले में किसानों के लिए एक नई सौगात आई है, जो खरीफ सीजन में उनकी मेहनत को मुनाफे में बदल सकती है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वैज्ञानिकों ने ‘ब्राऊड ऑफ मिलेट्स’ (स्थानीय भाषा में ‘खेहरी’) नाम की एक नई मिलेट्स किस्म की खेती शुरू कराई है।
जुलाई की बारिश के साथ ये फसल बोने का सही वक्त है, और ये अनाज न सिर्फ पोषण से भरपूर है, बल्कि डायबिटीज और किडनी से जुड़ी बीमारियों के लिए भी कारगर माना जा रहा है। पहले लोग मोटे अनाज को स्वादहीन समझते थे, लेकिन अब वैज्ञानिक इसे आधुनिक जीवनशैली के लिए जरूरी भोजन बता रहे हैं। इसकी खेती से किसानों को आर्थिक फायदा भी हो रहा है, तो आइए जानते हैं कि ये फसल क्या खासियत रखती है और इसे कैसे उगाया जा सकता है।
पोषण और स्वास्थ्य का अनोखा संयोजन
‘ब्राऊड ऑफ मिलेट्स’ खरीफ सीजन की फसल है, जो जुलाई में बोई जाती है और 100-110 दिनों में तैयार हो जाती है। कुछ नई किस्में ऐसी भी हैं, जो 90 दिनों में पैक हो सकती हैं, जिस पर वैज्ञानिक अभी काम कर रहे हैं। डॉ. श्वेता मिश्रा, पूसा विश्वविद्यालय के मिलेट्स विभाग से, बताती हैं कि इस अनाज में इम्युनिटी बढ़ाने वाले तत्व, फाइबर, प्रोटीन और जरूरी मिनरल्स की अच्छी मात्रा होती है। ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है और आधुनिक बीमारियों से निपटने में मददगार है। इसे अब ‘श्री अन्न’ की श्रेणी में शामिल करने की बात भी चल रही है, जो इसके महत्व को दर्शाता है।
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डायबिटीज और किडनी के लिए वरदान
इस फसल की खासियत इसका लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स है, जो रक्त शर्करा को नियंत्रित रखता है। डॉ. मिश्रा कहती हैं कि डायबिटीज और किडनी से पीड़ित मरीजों के लिए ये अनाज एक प्राकृतिक उपाय हो सकता है। इसका सेवन करने से ब्लड शुगर लेवल स्थिर रहता है और किडनी पर दबाव कम होता है। जो लोग इन बीमारियों से जूझ रहे हैं, उनके लिए ये फसल राहत की सांस बन सकती है। बीज लेने के लिए किसान पूसा विश्वविद्यालय के मिलेट्स विभाग या समस्तीपुर के स्थानीय कृषि केंद्र से संपर्क कर सकते हैं।
खेती का आसान तरीका और पैदावार
‘ब्राऊड ऑफ मिलेट्स’ की खेती के लिए 8-10 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इससे 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है, जो किसानों के लिए अच्छा मुनाफा दे सकता है। जुलाई में खेत को तैयार करें और जैविक खाद का इस्तेमाल करें। बारिश का फायदा उठाएँ, लेकिन खेत में पानी जमा न होने दें, ताकि फसल स्वस्थ रहे। स्थानीय कृषि केंद्रों से बीज और सलाह लेना इसकी शुरुआत को आसान बनाएगा। प्राकृतिक खेती के इस तरीके से लागत भी कम होती है।
समस्तीपुर के किसान इस फसल को अपनाकर पहले ही अच्छे नतीजे देख रहे हैं। प्राकृतिक खेती के जरिए उनकी लागत घट रही है और पैदावार में सुधार हो रहा है। डॉ. मिश्रा कहती हैं कि ये फसल न सिर्फ़ किसानों की जेब भरेगी, बल्कि ग्राहकों को सेहतमंद अनाज भी देगी। जुलाई की बारिश इसकी खेती के लिए बिल्कुल मुफीद है, और किसान इसे आजमाकर मुनाफा कमा सकते हैं।
स्वास्थ्य और खेती का नया रास्ता
‘ब्राऊड ऑफ मिलेट्स’ न सिर्फ़ खेतों को हरा-भरा करता है, बल्कि थाली में सेहत का जादू भी लाता है। ये अनाज आधुनिक बीमारियों से लड़ने में मददगार है और किसानों को आत्मनिर्भर बनाता है। बिहार के किसान भाइयों, इस मौके को हाथ से न जाने दें। पूसा विश्वविद्यालय से संपर्क करें, बीज लें, और जुलाई में इस फसल की शुरुआत करें। आपकी मेहनत सेहत और समृद्धि दोनों ला सकती है।
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