Til Ki Kheti: तिल की खेती हमारे गाँवों में सदियों से होती आई है, और आज भी यह किसानों के लिए सुनहरा अवसर है। यह फसल न सिर्फ़ कम मेहनत मांगती है, बल्कि बाज़ार में इसकी मांग सालभर बनी रहती है। चाहे खाने का तेल हो, मिठाइयाँ हों, या सौंदर्य प्रसाधन, तिल हर जगह काम आता है। बिहार के किसान इसे गर्मियों में उगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। सिर्फ़ 5-7 हज़ार रुपये के खर्च से एक हेक्टेयर में 50 हज़ार रुपये तक का मुनाफा हो सकता है। यह फसल 60-90 दिन में तैयार हो जाती है, जिससे खेत जल्दी खाली होकर अगली फसल के लिए तैयार हो जाता है। अगर आप भी कम लागत में बड़ा फायदा चाहते हैं, तो तिल की खेती आपके लिए है।
खेत की तैयारी और बुवाई का सही समय
तिल की खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना ज़रूरी है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 बार जुताई करें। रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी है, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो। मिट्टी का पीएच 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। बुवाई से पहले प्रति हेक्टेयर 5-7 टन गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। तिल की बुवाई गर्मियों में, खासकर मई से जून के बीच, सबसे अच्छी होती है, क्योंकि इस समय का तापमान (25-35 डिग्री सेल्सियस) बीजों के अंकुरण के लिए मुफ़ीद है। बीज को 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर लाइनों में बोएं, हर पंक्ति के बीच 30-40 सेंटीमीटर की दूरी रखें। प्रति हेक्टेयर 4-5 किलो बीज काफी है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि बीज अच्छे से जम सकें।
उन्नत किस्में, बेहतर पैदावार
तिल की कई उन्नत किस्में हैं, जो कम समय में ज़्यादा पैदावार देती हैं। जवाहर तिल 306 एक मशहूर किस्म है, जो 85-90 दिन में तैयार हो जाती है। यह प्रति हेक्टेयर 7-9 क्विंटल तक पैदावार देती है और इसमें 50-52% तेल होता है। यह किस्म पत्ती धब्बा और भभूतिया जैसे रोगों से मज़बूत रहती है। दूसरी किस्म RT 127 है, जो 75-85 दिन में पकती है और 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देती है। इसके बीज सफेद और चमकदार होते हैं, जिनमें 45-47% तेल होता है। PKDS 12 गर्मियों के लिए बढ़िया है, जो 80-85 दिन में 6-7 क्विंटल पैदावार देती है और 50-53% तेल के साथ मैक्रोफोमिना रोग से बची रहती है। RT 46 भी एक अच्छी किस्म है, जो 70-80 दिन में 6-8 क्विंटल देती है और कीटों से कम प्रभावित होती है। अपने नज़दीकी कृषि केंद्र से इन किस्मों के बीज लें।
खाद और पानी का सही प्रबंधन
तिल की फसल को ज़्यादा खाद की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन सही पोषण से पैदावार बढ़ती है। प्रति हेक्टेयर 40-50 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो फॉस्फोरस, और 20 किलो पोटाश डालें। नाइट्रोजन को दो हिस्सों में दें—बुवाई के समय और 20-25 दिन बाद। जैविक खेती के लिए 3-4 टन गोबर की खाद और 2-3 किलो आज़ोटोबैक्टर का इस्तेमाल करें। मिट्टी में जस्ता की कमी हो, तो 15-20 किलो जिंक सल्फेट डालें। गर्मियों में हर 7-10 दिन में हल्की सिंचाई करें। ड्रिप सिंचाई से पानी की 20-30% बचत होती है। पानी जमा न होने दें, वरना जड़ें सड़ सकती हैं। खरपतवार से बचने के लिए बुवाई के 15-20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें।
कीट और रोगों से हिफाज़त
तिल की फसल में पत्ती छेदक कीट, पित्त मक्खी, और जड़ सड़न जैसे रोग हो सकते हैं। बुवाई से पहले बीज को कार्बेन्डाझीम (2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें। नीम तेल (3-4 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव कीटों और फफूंद से बचाव करता है। खेत में साफ़-सफ़ाई रखें और खरपतवार समय पर हटाएं। अगर रोग या कीट का प्रकोप दिखे, तो नज़दीकी कृषि केंद्र से सलाह लें। जैविक खेती अपनाने से फसल स्वस्थ रहती है और बाज़ार में ज़्यादा कीमत मिलती है। पीले चिपचिपे ट्रैप और लाइट ट्रैप भी कीटों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
कटाई और भंडारण
तिल की फसल 70-90 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ने लगें और फलियाँ भूरी हो जाएँ, तब कटाई करें। सुबह के समय कटाई करें और पौधों को 2-3 दिन छांव में सुखाएं। इसके बाद फलियों से बीज निकालें। बीजों को अच्छे से सुखाकर नमी-प्रूफ थैलियों में स्टोर करें, ताकि उनकी गुणवत्ता बनी रहे। प्रति हेक्टेयर 6-9 क्विंटल बीज मिल सकते हैं, जिन्हें 8,000-10,000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा जा सकता है।
लागत और मुनाफा
तिल की खेती में प्रति हेक्टेयर 5,000-7,000 रुपये का खर्च आता है, जिसमें बीज (1,500 रुपये), खाद (2,000 रुपये), और मजदूरी (2,000 रुपये) शामिल हैं। अच्छी पैदावार से 6-9 क्विंटल बीज मिलते हैं, जो 48,000-90,000 रुपये की कमाई दे सकते हैं। यानी 40,000-80,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा हो सकता है। तिल की मांग खाद्य तेल, मिठाइयों, और कॉस्मेटिक उद्योग में रहती है। स्थानीय मंडियों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर इसे बेचकर ज़्यादा फायदा कमाया जा सकता है। तिल के तेल और मिठाइयों जैसे उत्पाद बनाकर भी कमाई बढ़ाई जा सकती है।
किसानों के लिए सलाह
तिल की खेती शुरू करने से पहले अपने खेत की मिट्टी की जाँच करवाएँ। उन्नत किस्मों जैसे जवाहर तिल 306 या RT 127 का इस्तेमाल करें। जैविक खेती पर ज़ोर दें, क्योंकि जैविक तिल की कीमत ज़्यादा मिलती है। सरकार की सब्सिडी योजनाओं, जैसे बीज या ड्रिप सिंचाई पर अनुदान, का फायदा उठाएँ। अपने उत्पादों को सोशल मीडिया पर प्रचार करें, ताकि ज़्यादा ग्राहक मिलें। तिल की खेती छोटे किसानों के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि यह कम समय और कम मेहनत में बड़ा मुनाफा देती है। आज ही अपने खेत में तिल बोएँ और मुनाफे की फसल काटें!
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