खेती में मेहनत तो हर फसल मांगती है, लेकिन कुछ फसलें ऐसी होती हैं, जो कम खर्च में ज़्यादा मुनाफ़ा देती हैं। तिल की खेती ऐसी ही एक फसल है, जो हमारे गाँवों में पुराने ज़माने से उगाई जाती रही है। चाहे खाने का तेल हो, मिठाई हो, या फिर कॉस्मेटिक सामान, तिल की माँग बाज़ार में हमेशा बनी रहती है। इसकी खेती में लागत इतनी कम है कि 5 हज़ार रुपये के खर्च से भी किसान भाई अच्छा-खासा फायदा कमा सकते हैं।
दो महीने में तैयार होने वाली यह फसल न सिर्फ़ आसान है, बल्कि बंपर पैदावार के साथ किसानों की जेब भी भर देती है। आइए, जानते हैं कि तिल की खेती कैसे आपके लिए फायदे का सौदा बन सकती है।
तिल की खेती का सही समय और तरीका
तिल की खेती गर्मियों में खासतौर पर मई के महीने में शुरू की जा सकती है। इस समय का तापमान तिल के बीजों को अंकुरित करने के लिए बिल्कुल मुफ़ीद होता है। खेत को तैयार करने के लिए पहले अच्छे से जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बना लें। बुवाई से पहले खेत में हल्की नमी रखें, ताकि बीज अच्छे से जम सकें। काले और सफेद तिल की उन्नत किस्में चुनें, जो कम समय में ज़्यादा पैदावार देती हैं।
बीज किसी भरोसेमंद दुकान से ही लें, ताकि फसल की गुणवत्ता अच्छी रहे। बुवाई के समय बीजों को ज्यादा गहरा न बोएं, क्योंकि तिल के बीज छोटे होते हैं और ज्यादा गहराई में दबने से अंकुरण में दिक्कत हो सकती है।
उन्नत किस्में जो देती हैं बंपर पैदावार
तिल की कई ऐसी किस्में हैं, जो कम समय में अच्छी पैदावार देती हैं और रोगों से भी बची रहती हैं। जवाहर तिल 306 एक ऐसी किस्म है, जो अस्सी से नब्बे दिन में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 700 से 900 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। इसमें तेल की मात्रा 52 प्रतिशत तक होती है, जो इसे बाज़ार में खास बनाती है। यह किस्म पौधों की गलन, पत्तियों पर धब्बे और भभूतिया जैसे रोगों से लड़ने में मज़बूत है।
दूसरी तरफ, RT 127 किस्म 75 से 85दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके बीज सफेद और चमकदार होते हैं, और तेल की मात्रा 45 से 47 प्रतिशत तक रहती है। इसकी पैदावार 6 से 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। यह जड़ सड़न और पत्ती धब्बा जैसे रोगों से बची रहती है।
और भी हैं खास किस्में
PKDS 12 एक और शानदार किस्म है, जो गर्मियों की खेती के लिए बहुत अच्छी है। यह 82 से 85 दिन में तैयार हो जाती है और 650 से 700 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है। इसकी खासियत है कि इसमें तेल की मात्रा 50 से 53 प्रतिशत तक होती है, और यह मैक्रोफोमिना जैसे रोगों से भी बची रहती है। वहीं, RT 46 किस्म के पौधे सौ से सवा सौ सेंटीमीटर तक ऊंचे होते हैं और 70 से 80दिन में पक जाते हैं।
इसकी पैदावार 6 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है, और तेल की मात्रा 49 प्रतिशत तक रहती है। इस किस्म में कीटों का प्रकोप कम होता है, और यह गमोसिस जैसे रोगों से भी बची रहती है।
तिल की खेती के फायदे
तिल की खेती का सबसे बड़ा फायदा है कि इसमें लागत बहुत कम लगती है। एक हेक्टेयर में बुवाई, खाद, और सिंचाई मिलाकर पांच से सात हज़ार रुपये का खर्च आता है, लेकिन मुनाफ़ा कई गुना ज्यादा मिलता है। बाज़ार में तिल का दाम आठ से दस हज़ार रुपये प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। यानी, अगर आपकी फसल अच्छी हुई, तो एक हेक्टेयर से पचास हज़ार रुपये तक की कमाई आसानी से हो सकती है।
तिल की माँग न सिर्फ़ खाने-पीने की चीज़ों में है, बल्कि साबुन, तेल, और कॉस्मेटिक सामान बनाने वाली कंपनियां भी इसे बड़े पैमाने पर खरीदती हैं। इसकी फसल दो महीने में तैयार हो जाती है, तो आप अपने खेत को जल्दी खाली करके अगली फसल की तैयारी भी कर सकते हैं।
कीटों और रोगों से बचाव
तिल की फसल को कीटों और रोगों से बचाने के लिए कुछ आसान उपाय अपनाए जा सकते हैं। बुवाई से पहले बीज को जैविक फफूंदनाशक से उपचारित करें, ताकि जड़ सड़न जैसे रोग न लगें। खेत में साफ-सफाई रखें और खरपतवार को समय-समय पर हटाते रहें। पत्ती छेदक कीट या पित्त मक्खी का प्रकोप दिखे, तो नीम के तेल का हल्का छिड़काव करें। अगर रोगों का असर ज्यादा हो, तो नजदीकी कृषि केंद्र से सलाह लेकर जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल करें। इन छोटे-छोटे कदमों से आपकी फसल स्वस्थ रहेगी और पैदावार भी बढ़ेगी।
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