Contract Farming Benefits For Farmers: हमारे देश में खेती सबसे पुराना और सम्मानित पेशा है। आज भी देश की बड़ी आबादी खेती से जुड़ी है और उससे अपनी जीविका चलाती है। लेकिन गाँवों में देखा गया है कि कई किसान पारंपरिक फसलों जैसे अनाज और सब्जियों की खेती से उतना मुनाफा नहीं कमा पाते। ऐसे में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक नया रास्ता देती है, जो किसानों को अच्छी कमाई का मौका देती है।
यह तरीका उन फसलों पर केंद्रित है, जिनकी बाज़ार में बड़ी मांग है। गुलाब, रजनीगंधा, और ऐलोवेरा ऐसी ही फसलें हैं, जिनकी खेती से किसान कम लागत में बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं। गाँवों में अनुभव है कि इन फसलों की खेती के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियाँ किसानों से संपर्क करती हैं और उनकी उपज को अच्छे दाम पर खरीदती हैं। आइए, इस नए तरीके और इन फसलों के बारे में विस्तार से जानें।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का आसान मतलब
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का मतलब है कि किसान और कोई बड़ी कंपनी एक लिखित समझौते के तहत खेती करते हैं। इस समझौते में कंपनी किसान से एक खास फसल उगाने को कहती है और उसे एक निश्चित दाम पर खरीदने का वादा करती है। गाँवों में देखा गया है कि इस समझौते में फसल की मात्रा, गुणवत्ता, खेत का क्षेत्रफल, और डिलीवरी की तारीख जैसी बातें लिखी होती हैं। इससे किसानों को यह फायदा होता है कि उनकी फसल बाज़ार में उतार-चढ़ाव के बावजूद एक निश्चित दाम पर बिक जाती है। यह तरीका किसानों को आर्थिक सुरक्षा देता है और उनकी कमाई को बढ़ाता है।
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कंपनियाँ क्यों चुनती हैं कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
बड़ी-बड़ी फूड कंपनियाँ, कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनियाँ, और दवा बनाने वाली कंपनियाँ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देती हैं। ये कंपनियाँ अपने उत्पादों के लिए कच्चे माल की जरूरत को पूरा करने के लिए किसानों से सीधे संपर्क करती हैं। उदाहरण के लिए, गुलाब और रजनीगंधा जैसे फूलों से इत्र, सीरम, और सौंदर्य उत्पाद बनाए जाते हैं, जबकि ऐलोवेरा का उपयोग फेस वॉश, लोशन, और दवाइयों में होता है।
गुलाब, रजनीगंधा, और ऐलोवेरा की खेती
गुलाब, रजनीगंधा, और ऐलोवेरा ऐसी फसलें हैं, जिन्हें कम देखभाल में उगाया जा सकता है और जिनकी बाज़ार में बड़ी मांग है। इन फसलों की खेती के लिए पॉलीहाउस या नेट हाउस बनाना पड़ता है, जो फसल को मौसम की मार और कीटों से बचाता है। गाँवों में अनुभव है कि पॉलीहाउस बनाने के लिए नजदीकी कृषि केंद्रों से संपर्क करके सरकारी सब्सिडी ली जा सकती है, जिससे लागत कम हो जाती है। गुलाब और रजनीगंधा की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, जबकि ऐलोवेरा रेतीली मिट्टी में भी आसानी से उग जाता है। इन फसलों की खेती में पानी की जरूरत भी कम होती है, जिससे खर्च और मेहनत कम लगती है।
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इन फसलों का बाज़ार में महत्व
गुलाब और रजनीगंधा का उपयोग कॉस्मेटिक और इत्र उद्योग में बड़े पैमाने पर होता है। इन फूलों से बने इत्र और सीरम बाज़ार में ऊँचे दामों पर बिकते हैं। गाँवों में देखा गया है कि गुलाब की पंखुड़ियों और रजनीगंधा की खुशबू से बने उत्पादों की मांग देश-विदेश में बढ़ रही है। दूसरी ओर, ऐलोवेरा का उपयोग फेस वॉश, लोशन, और दवाइयों में होता है। इसकी पत्तियों में मौजूद जेल को सौंदर्य और स्वास्थ्य उत्पादों में इस्तेमाल किया जाता है। गाँवों में अनुभव है कि इन फसलों की खेती से किसानों को पारंपरिक फसलों की तुलना में दोगुना मुनाफा मिल सकता है, खासकर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से कैसे जुड़ें
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग शुरू करने के लिए किसानों के पास पर्याप्त जमीन होनी चाहिए। गाँवों में देखा गया है कि छोटे खेतों वाले किसानों से कंपनियाँ कम संपर्क करती हैं, इसलिए बड़े खेत या सामूहिक खेती बेहतर होती है। इसके लिए नजदीकी मंडी में जाकर उन व्यापारियों से संपर्क करें, जो फसलों के आयात-निर्यात से जुड़े हों। गाँवों में अनुभव है कि ऐसे लोग आपको बड़ी कंपनियों से जोड़ सकते हैं। इसके अलावा, आप सीधे कॉस्मेटिक या दवा बनाने वाली कंपनियों को ईमेल के जरिए अपना प्रस्ताव भेज सकते हैं। इसमें अपने खेत का विवरण, जमीन का क्षेत्रफल, और फसल की जानकारी दें। कंपनियाँ आपकी जानकारी जाँचने के बाद खुद संपर्क करती हैं।
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