भारत में कपास की खेती को नई ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए 11 जुलाई 2025 को तमिलनाडु के कोयंबटूर में ICAR-गन्ना प्रजनन संस्थान में एक अहम बैठक हुई। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में कपास की घटती उत्पादकता, वायरस की चुनौतियों, और आत्मनिर्भरता के लक्ष्य पर गहन चर्चा हुई।
बैठक में केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह, हरियाणा और महाराष्ट्र के कृषि मंत्री, ICAR के महानिदेशक एम.एल. जाट, कृषि विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर, वैज्ञानिक, किसान, और कपास उद्योग के हितधारक शामिल हुए। शिवराज सिंह ने कहा कि रोटी के बाद कपड़ा इंसान की सबसे बड़ी जरूरत है, और कपास किसानों की मेहनत से बनता है। इस मिशन से न सिर्फ किसानों की कमाई बढ़ेगी, बल्कि भारत कपास में आत्मनिर्भर बनेगा।
उत्पादन में गिरावट
कृषि मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, कपास की खेती का रकबा 2020-21 में 132.86 लाख हेक्टेयर से घटकर 2024-25 में 112.30 लाख हेक्टेयर हो गया, यानी हर साल 4.12% की कमी। उत्पादन भी 352.48 लाख गांठों से घटकर 306.92 लाख गांठों पर आ गया, जिसमें 3.40% की गिरावट दर्ज हुई। हालाँकि प्रति हेक्टेयर उपज 451 किलो से बढ़कर 465 किलो हुई, लेकिन ये बढ़ोतरी आत्मनिर्भरता के लिए काफी नहीं है।
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टीएसवी वायरस और गुलाबी सुंडी जैसे कीटों ने कपास की फसल को नुकसान पहुँचाया है। कोयंबटूर की बैठक से पहले शिवराज सिंह ने खेतों में जाकर किसानों से बात की और उनकी समस्याएँ सुनीं। उन्होंने बताया कि कपड़ा उद्योग सस्ते आयात की मांग कर रहा है, जो किसानों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए किसान और उद्योग के हितों को संतुलित करना जरूरी है।
टीम कॉटन का गठन
शिवराज सिंह ने “टीम कॉटन” के गठन की घोषणा की, जिसमें कृषि और कपड़ा मंत्रालय, ICAR, वैज्ञानिक, बीज निर्माता, किसान, और उद्योग विशेषज्ञ शामिल होंगे। यह टीम 2030 तक भारत को कपास उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करेगी। वायरस-प्रतिरोधी और जलवायु-अनुकूल बीज विकसित करने पर जोर दिया जाएगा।
ICAR को निर्देश दिया गया कि केवल वही किस्में जारी करें, जो खेतों में कारगर हों। गुजरात के किसान रमेश भाई ने बताया कि उन्नत बीजों की कमी से उनकी उपज 30% घटी, लेकिन नई किस्मों से उम्मीद जगी है। कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह ने उद्योगों से किसानों के साथ लंबे समय के अनुबंध करने की अपील की, ताकि स्थिर बाजार और बेहतर दाम मिलें।
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उन्नत तकनीक और मशीनों का सहारा
बैठक में बीज की गुणवत्ता, मशीन टेस्टिंग सेंटर, और फसल सुरक्षा पर चर्चा हुई। हाई-डेंसिटी कॉटन किस्मों को बढ़ावा देने और गुलाबी सुंडी के लिए AI-आधारित स्मार्ट ट्रैप तकनीक अपनाने का फैसला हुआ। दक्षिण भारत में मशीन टेस्टिंग की कमी को देखते हुए कोयंबटूर में नया टेस्टिंग सेंटर बनाया जाएगा।
एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) के तहत प्रोक्लेम (88 ग्राम/एकड़) और इमिडाक्लोप्रिड (1 मिली/लीटर) जैसे कीटनाशकों का सही उपयोग सुझाया गया। मिट्टी की जाँच के आधार पर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश का संतुलित उपयोग करने की सलाह दी गई। यांत्रिक कटाई मशीनों और AI-आधारित उपज अनुमान से लागत कम होगी और दक्षता बढ़ेगी।
किसानों के लिए सुनहरा अवसर
कोयंबटूर की इस बैठक ने कपास की खेती को नई दिशा दी है। सरकार का लक्ष्य 2030 तक भारत को कपास निर्यातक बनाना है। बाजार में कपास का भाव 7000-8000 रुपये/क्विंटल है, और उन्नत तकनीक से प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल उपज संभव है। किसान भाई टोल-फ्री नंबर 18001801551 पर सुझाव दे सकते हैं। नजदीकी कृषि केंद्र से उन्नत बीज और तकनीकी सलाह लें, ताकि कपास मिशन से मुनाफा कमाएँ।
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