हरी धनिया भारतीय रसोई की शान है, और किसानों के लिए यह किसी खजाने से कम नहीं। सालभर इसकी मांग बनी रहती है, चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात। खरीफ सीजन में धनिया की खेती किसानों के लिए कम लागत में मोटा मुनाफा देने का सुनहरा मौका लेकर आती है। इस फसल की खासियत है कि इसे उगाने में मेहनत और खर्च दोनों कम लगते हैं, जबकि बाजार में अच्छे दाम मिलते हैं। जिला कृषि अधिकारी राजितराम बताते हैं कि खरीफ में धनिया की उन्नत किस्मों को चुनकर किसान 25-30 दिन में ही फसल बेच सकते हैं। बस कुछ सावधानियां बरतें, जैसे खेत में जलभराव से बचें, तो पैदावार शानदार होगी।
स्वाति किस्म: 80-90 दिन में बंपर उपज
स्वाति धनिया की एक उन्नत किस्म है, जिसे एपीएयू, गुंटूर ने विकसित किया है। इसकी फसल 80-90 दिन में पककर तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 885 किलोग्राम तक उपज देती है। इसके पौधों में सफेद फूल खिलते हैं और ऊंचाई मध्यम होती है। यह किस्म उकठा और भूतिया रोग के प्रति सहनशील है, जो खरीफ के मौसम में होने वाले नुकसान को कम करती है। इसकी खेती छोटे और सीमांत किसानों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है, क्योंकि यह कम समय में अच्छा उत्पादन देती है। बाजार में इसके दानों और हरी पत्तियों की अच्छी मांग रहती है, जिससे किसानों की जेब भर जाती है।
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कुंभराज किस्म: छोटे दाने, मध्यम उपज
कुंभराज किस्म के दाने छोटे होते हैं, लेकिन यह खेती के लिए भरोसेमंद है। इसके पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं और सफेद फूलों से सजते हैं। यह किस्म उकठा और भूतिया रोगों से कम प्रभावित होती है, जो बरसात के मौसम में बड़ा फायदा है। फसल को पकने में 115-120 दिन लगते हैं, और प्रति एकड़ 5-6 क्विंटल की पैदावार मिलती है। इस किस्म को चुनने वाले किसान हरी पत्तियों और दानों दोनों से कमाई कर सकते हैं। खरीफ में जलभराव से बचाने के लिए खेत की अच्छी जलनिकासी जरूरी है, ताकि फसल स्वस्थ रहे और मुनाफा बढ़े।
सिम्पो एस-33: 25-30 दिन में तैयार
सिम्पो एस-33 धनिया की ऐसी किस्म है, जो उन किसानों के लिए वरदान है जो जल्दी कमाई चाहते हैं। इसकी फसल 25-30 दिन में ही तैयार हो जाती है, जिसे तोड़कर सीधे बाजार में बेचा जा सकता है। इसके पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं और बड़े, अंडाकार दाने पैदा करते हैं। यह किस्म उकठा और स्टेमगाल रोग के प्रति सहनशील है, जिससे खरीफ के मौसम में नुकसान का डर कम रहता है। इसकी हरी पत्तियां बाजार में खूब बिकती हैं, और कम समय में अच्छा मुनाफा देती हैं। छोटे खेतों वाले किसानों के लिए यह किस्म सबसे बेहतर विकल्प है।
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आरसीआर-446 और हिसार सुगंध: पत्तियों और सुगंध का खजाना
आरसीआर-446 किस्म खास तौर पर हरी पत्तियों के लिए उगाई जाती है, क्योंकि इसके पौधों में पत्तियों की संख्या ज्यादा होती है। इसके पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं, और शाखाएं सीधी निकलती हैं। यह उकठा, स्टेमगाल और भभूतिया रोगों से कम प्रभावित होती है, जो इसे खरीफ के लिए भरोसेमंद बनाती है। दूसरी ओर, हिसार सुगंध किस्म अपने मध्यम आकार के दानों और खास सुगंध के लिए जानी जाती है। इसकी फसल 120-125 दिन में तैयार होती है, लेकिन पत्तियों की पहली कटाई 30-35 दिन में हो सकती है। यह प्रति हेक्टेयर 19-21 क्विंटल तक उपज देती है। दोनों किस्में रोग प्रतिरोधक हैं और बाजार में अच्छा दाम दिलाती हैं।
खरीफ में धनिया खेती की सावधानियां
जिला कृषि अधिकारी राजितराम सलाह देते हैं कि खरीफ में धनिया की खेती करते समय जलभराव से बचना जरूरी है। इसके लिए खेत की अच्छी जलनिकासी सुनिश्चित करें। उन्नत किस्मों का चयन करें और मिट्टी की जांच करवाकर सही उर्वरक का इस्तेमाल करें। धनिया की खेती में लागत कम लगती है, और बाजार में हरी पत्तियों के लिए 100-200 रुपये प्रति किलो तक दाम मिलते हैं। अगर आप दानों की बिक्री करते हैं, तो 5,000-7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक कीमत मिल सकती है। इस खेती को शुरू करने के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें और बीज व खेती के तरीकों की जानकारी लें।
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