DBW 370 करण वैदेही गेहूं किस्म, 86 क्विंटल तक रिकॉर्ड पैदावार देने वाली रोग प्रतिरोधक किस्म, जानें डिटेल

गेहूं की बुवाई का मौसम शुरू होते ही उत्तर भारत के खेतों में नई उम्मीद जाग रही है। पंजाब के सुनहरे मैदानों से लेकर राजस्थान की रेतीली जमीन तक किसान इस बार एक खास किस्म की तरफ देख रहे हैं। भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान करनाल ने DBW 370 नाम की नई गेहूं की किस्म पेश की है, जिसे करण वैदेही के नाम से भी जाना जाता है। यह किस्म खास तौर पर उत्तर पश्चिमी मैदानी इलाकों के लिए बनाई गई है। इसमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तरी राजस्थान के ज्यादातर हिस्से शामिल हैं। सिंचाई वाली जमीन और जल्दी बुवाई करने वाले किसानों के लिए यह किस्म किसी वरदान से कम नहीं है।

करण वैदेही DBW 370 की पहचान और ताकत

करण वैदेही DBW 370 को देखते ही समझ आ जाता है कि यह आम गेहूं से अलग है। इसके दाने भरे हुए, चमकदार और एक समान आकार के होते हैं। पौधे की ऊंचाई करीब 95 से 100 सेंटीमीटर रहती है, जो कटाई के समय आसानी देती है। फसल तैयार होने में सिर्फ 120 से 125 दिन लगते हैं। यानी नवंबर के पहले हफ्ते में बुवाई करें तो मार्च के अंत तक खेत से गेहूं निकलने लगता है। औसतन एक हेक्टेयर से 75 क्विंटल तक पैदावार मिलती है, लेकिन अच्छी देखभाल करने पर 87 क्विंटल तक का रिकॉर्ड भी दर्ज हो चुका है। दानों में प्रोटीन की मात्रा 12 फीसदी के करीब रहती है, जो आटे की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है। चपाती बनाने पर इसका स्कोर 8.3 में से 10 आता है, जो बाजार में ग्राहकों को पसंद आता है।

किन इलाकों में बोएं

यह किस्म उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र की जलवायु के लिए बिल्कुल फिट बैठती है। पंजाब के फिरोजपुर से लेकर हरियाणा के हिसार, दिल्ली के आसपास के खेत, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मेरठ, मुजफ्फरनगर और राजस्थान का श्रीगंगानगर इलाका इसके लिए सबसे अच्छा है। लेकिन झांसी डिवीजन, कोटा और उदयपुर जैसे इलाकों में इसे न बोएं। वहां की मिट्टी और मौसम इसके अनुकूल नहीं हैं। अगर बारानी खेती कर रहे हैं या सिंचाई की सुविधा नहीं है तो भी इस किस्म से दूर रहें। जल्दी बुवाई और भरपूर पानी वाली जमीन में ही यह अपना पूरा दम दिखाती है।

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बुवाई से कटाई तक पूरा प्लान

बुवाई का सही समय 1 नवंबर से 25 नवंबर तक है। इस दौरान बोने से पौधे को ठंड का पूरा फायदा मिलता है और बालियां भरपूर दाने देती हैं। अगर दिसंबर में बोएंगे तो बालियां छोटी रह जाएंगी और पैदावार 10 से 15 फीसदी तक कम हो सकती है। एक हेक्टेयर के लिए 100 किलो बीज काफी है। बीज को उपचारित करके बोएं ताकि शुरुआती कीटों से बचाव हो। खेत की तैयारी में गोबर की सड़ी खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर डालें। रासायनिक खाद में 120 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश का इस्तेमाल करें। नाइट्रोजन को तीन हिस्सों में बांटकर डालें, पहला हिस्सा बुवाई के समय, दूसरा टिलरिंग के वक्त और तीसरा बूटिंग स्टेज पर। ज्यादा नाइट्रोजन देने से पौधे गिरने का खतरा रहता है।

पानी और खरपतवार का ध्यान रखें

सिंचाई में कोई कसर न छोड़ें। कुल पांच पानी जरूरी हैं। पहला पानी अंकुरण के 20 से 25 दिन बाद, दूसरा टिलरिंग के समय, तीसरा जब बालियां निकलने लगें, चौथा फूल आने पर और पांचवां दाने भरते वक्त। पानी हल्का और समान रखें। खरपतवार की समस्या बुवाई के 25 दिन बाद शुरू होती है। उस समय 2,4-डी या आइसोप्रोट्यूरॉन का छिड़काव करें। लेकिन दवा की मात्रा पैकेट पर लिखी सलाह के मुताबिक ही डालें। ज्यादा छिड़काव से फसल को नुकसान हो सकता है।

रोगों से लड़ने की ताकत

करण वैदेही DBW 370 की सबसे बड़ी खासियत है लीफ रस्ट के खिलाफ इसकी मजबूत सुरक्षा। पिछले कई सालों से लीफ रस्ट उत्तर भारत के गेहूं की फसल को भारी नुकसान पहुंचा रहा था। लेकिन इस किस्म में यह रोग नहीं लगता। स्ट्राइप रस्ट और स्टेम रस्ट के प्रति भी मध्यम सुरक्षा है। इससे किसानों को फफूंदनाशक दवाओं पर होने वाला खर्च बच जाता है। एक हेक्टेयर में कम से कम दो से तीन हजार रुपये की बचत हो जाती है।

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बाजार में भाव

इस किस्म के दाने सुनहरे और चमकदार होते हैं। मंडियों में इसे देखते ही व्यापारी अच्छा भाव देने को तैयार हो जाते हैं। प्रोटीन की अच्छी मात्रा होने से आटा मिलों को भी पसंद आता है। अगर बाजार भाव 2200 से 2400 रुपये क्विंटल रहा तो 75 क्विंटल पैदावार से डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा की कमाई हो सकती है। बीज, खाद और मजदूरी का खर्च निकालकर भी अच्छा मुनाफा बचता है।

छोटी-छोटी सावधानियां

कुछ बातें ध्यान में रखें तो पैदावार और बढ़ सकती है। बुवाई के समय पंक्तियों के बीच 20 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 10 सेंटीमीटर की दूरी रखें। इससे हर पौधे को पर्याप्त धूप और हवा मिलेगी। अगर खेत में पानी रुक रहा है तो किनारे पर नाली बना दें। कटाई के समय पौधे पूरी तरह सूखने तक इंतजार करें। जल्दबाजी में काटने से दाने नमी सोख लेते हैं और वजन कम हो जाता है। कटाई के बाद गेहूं को सूखी जगह पर रखें और नमी 12 फीसदी से कम रखें।

जैविक खेती में भी कामयाब

जो किसान जैविक तरीके से खेती करना चाहते हैं, उनके लिए भी करण वैदेही DBW 370 अच्छी है। रासायनिक खाद की जगह वर्मी कम्पोस्ट और नीम की खली डालें। कीटों के लिए नीम तेल का छिड़काव करें। जैविक गेहूं का बाजार भाव आम गेहूं से 300 से 500 रुपये क्विंटल ज्यादा मिलता है।

कुल मिलाकर करण वैदेही DBW 370 उत्तर भारत के सिंचित खेतों के लिए एक मजबूत और भरोसेमंद किस्म है। जल्दी बुवाई, सही खाद और 5 पानी का ध्यान रखें तो यह फसल न सिर्फ लागत वसूल करेगी बल्कि अच्छी कमाई भी देगी। भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान का यह प्रयास किसानों की मेहनत को मुनाफे में बदलने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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  • Shashikant

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