Organic Meat: हमारे देश में खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन भी किसानों की कमाई का बड़ा जरिया है। आजकल नॉनवेज खाने वालों की तादाद बढ़ रही है। हैल्थ मिनिस्ट्री की एक रिपोर्ट बताती है कि 70 फीसदी से ज्यादा लोग नॉनवेज खाते हैं। सिर्फ देश में ही नहीं, विदेशों में भी मीट की माँग तेजी से बढ़ रही है। लेकिन अब लोग मीट और डेयरी प्रोडक्ट्स में ऑर्गेनिक की माँग कर रहे हैं। खासकर बकरे का मीट विदेशी बाजार में खूब पसंद किया जा रहा है। ऑर्गेनिक मीट और डेयरी न सिर्फ सेहत के लिए अच्छे हैं, बल्कि किसानों की जेब भी भर सकते हैं। आइए, जानते हैं कि ऑर्गेनिक पशुपालन कैसे किसानों के लिए नई राह खोल रहा है।
ऑर्गेनिक मीट की बढ़ती माँग
दुनियाभर में लोग अब मीट खरीदते वक्त सावधानी बरत रहे हैं। पशुओं से इंसानों में फैलने वाली जूनोटिक बीमारियों का डर लोगों को ऑर्गेनिक मीट की ओर खींच रहा है। विदेशी ग्राहक चाहते हैं कि मीट में किसी तरह के हानिकारक रसायन या एंटीबायोटिक्स न हों। खासकर बकरे का मीट, जिसकी डिमांड यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों में तेजी से बढ़ रही है, ऑर्गेनिक रूप में ज्यादा पसंद किया जा रहा है। इसके अलावा, दूध, दही, घी और मक्खन जैसे डेयरी प्रोडक्ट्स भी लोग अब ऑर्गेनिक चाहते हैं। ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स की कीमत सामान्य से ज्यादा होती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।
ऑर्गेनिक चारे का महत्व
पशुओं को ऑर्गेनिक मीट और डेयरी प्रोडक्ट्स देने के लिए सबसे जरूरी है कि उन्हें ऑर्गेनिक चारा खिलाया जाए। अब पशुपालक हरा चारा, सूखा चारा और मिनरल मिक्सर तक ऑर्गेनिक तरीके से तैयार कर रहे हैं। रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल बंद करके किसान प्राकृतिक तरीकों को अपना रहे हैं। सरकार भी इस दिशा में मदद कर रही है। परंपरागत कृषि विकास योजना की उपयोजना भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) के तहत किसानों को ऑर्गेनिक चारा उगाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। गाय, बकरी और भैंस जैसे पशुओं को ऑर्गेनिक चारा खिलाने से उनके मीट और दूध की क्वालिटी बढ़ती है, जो विदेशी बाजार में अच्छा दाम दिलाती है।
ऑर्गेनिक चारा उगाने के लिए जीवामृत एक ऐसा देसी नुस्खा है, जो मिट्टी को ताकत देता है। चारा विशेषज्ञ डॉ. मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि जीवामृत बनाने के लिए देशी गाय का गोबर और मूत्र, गुड़, बेसन और थोड़ी सी मिट्टी मिलाई जाती है। ये सारी चीजें मिट्टी में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाती हैं, जिससे चारे की पैदावार अच्छी होती है और उसमें पोषण भी ज्यादा होता है। इसके अलावा, नीमास्त्र और बीजामृत जैसे प्राकृतिक उपाय भी चारे को कीटों से बचाते हैं। कई कृषि संस्थानों और बकरी-गाय रिसर्च सेंटर्स में खुद ऑर्गेनिक चारा उगाया जा रहा है और किसानों को इसके बारे में सिखाया जा रहा है।
ऑर्गेनिक मीट एक्सपोर्ट और क्वालिटी चेक
जब बात मीट के एक्सपोर्ट की आती है, तो क्वालिटी का खास ध्यान रखा जाता है। हैदराबाद की एक खास लैब में मीट की जाँच होती है, जिसमें ये देखा जाता है कि मीट में कोई हानिकारक कीटनाशक या रसायन तो नहीं है। ये जाँच न सिर्फ बकरे के मीट, बल्कि भैंस के मीट (बीफ) के लिए भी होती है। अगर जाँच में कोई गड़बड़ पाई जाती है, तो मीट का पूरा कंसाइनमेंट रोक दिया जाता है, जिससे कारोबारियों को भारी नुकसान होता है। लेकिन ऑर्गेनिक चारा खिलाने से मीट की क्वालिटी इतनी अच्छी होती है कि जाँच में कोई दिक्कत नहीं आती। इससे न सिर्फ एक्सपोर्ट आसान होता है, बल्कि किसानों को भी ज्यादा दाम मिलता है।
ऑर्गेनिक पशुपालन की नई पहल
केंद्र सरकार ने ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए बीपीकेपी योजना शुरू की है। इस योजना के तहत छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु जैसे आठ राज्यों में बीपीकेपी केंद्र बनाए गए हैं। ये केंद्र करीब चार लाख हेक्टेयर जमीन पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। इन केंद्रों में किसानों को ऑर्गेनिक चारा उगाने, जीवामृत बनाने और पशुओं को प्राकृतिक तरीके से पालने की ट्रेनिंग दी जा रही है। इससे न सिर्फ पशुपालकों की कमाई बढ़ रही है, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा हो रहा है।
एंटीबायोटिक्स का कम इस्तेमाल
पशुओं की बीमारियों में पहले एंटीबायोटिक दवाओं का खूब इस्तेमाल होता था, लेकिन अब इसे कम करने की कोशिश हो रही है। ज्यादा एंटीबायोटिक्स से मीट और दूध में इसके अवशेष रह जाते हैं, जो इंसानों की सेहत के लिए खतरनाक हो सकते हैं। साथ ही, इससे जूनोटिक बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है। बीपीकेपी योजना के तहत पशुओं को प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ रखने के उपाय सिखाए जा रहे हैं, जैसे कि गोबर और मूत्र से बने उपाय और हर्बल दवाएँ। इससे पशु स्वस्थ रहते हैं और मीट-डेयरी प्रोडक्ट्स की क्वालिटी भी बनी रहती है।
किसानों के लिए सलाह
अगर आप पशुपालन करते हैं, तो ऑर्गेनिक तरीकों को अपनाकर अपनी कमाई बढ़ा सकते हैं। अपने पशुओं को ऑर्गेनिक चारा खिलाएँ और रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल कम करें। नजदीकी बीपीकेपी केंद्र या कृषि विज्ञान केंद्र से जीवामृत, नीमास्त्र और बीजामृत बनाने की ट्रेनिंग लें। अगर आप मीट या डेयरी प्रोडक्ट्स को विदेश में बेचना चाहते हैं, तो क्वालिटी का खास ध्यान रखें। ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स की सही पैकिंग और सर्टिफिकेशन के लिए स्थानीय अधिकारियों से संपर्क करें। ये छोटे-छोटे कदम आपकी मेहनत को दोगुना फल देंगे।
ऑर्गेनिक मीट और डेयरी की माँग न सिर्फ आज, बल्कि आने वाले सालों में और बढ़ेगी। ये न सिर्फ किसानों के लिए मुनाफे का सौदा है, बल्कि पर्यावरण और सेहत के लिए भी फायदेमंद है। सरकार की बीपीकेपी जैसी योजनाएँ और ऑर्गेनिक चारे जैसे देसी नुस्खे हमारे पशुपालकों को दुनिया के बाजार में नई पहचान दे रहे हैं। तो देर किस बात की? अपने पशुपालन को ऑर्गेनिक बनाएँ और नई कमाई की राह पर चल पड़ें।
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