धान की फसल पर होते हैं ये 6 जानलेवा रोग! लक्षण दिखे नहीं कि तुरंत करें ये स्प्रे

बरसात का मौसम आते ही देशभर में धान की रोपाई जोरों पर है। कई क्षेत्रों में रोपाई अंतिम चरण में है, और किसान अब खाद-पानी और रोग-कीट नियंत्रण की तैयारी में जुटे हैं। धान की फसल में खैरा, झोका, झूलसा, भूरा, और हल्दी रोग जैसे खतरे पैदावार को 20-30% तक कम कर सकते हैं। कौशांबी के कृषि अधिकारी भगवती प्रसाद ने किसानों को सलाह दी है कि समय पर रोगों और खरपतवार की रोकथाम से बंपर पैदावार हासिल की जा सकती है। राष्ट्रीय बीज गोदाम से 50% सब्सिडी पर दवाएँ भी उपलब्ध हैं। आइए, जानें धान की फसल को सुरक्षित रखने के उपाय।

धान में रोग और कीटों का खतरा

धान की फसल में पाँच प्रमुख रोग खैरा, झोका, झूलसा, भूरा, और हल्दी तथा कई कीट जैसे टुनगरों, कंडुवा, और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट फसल को नुकसान पहुँचाते हैं। ये रोग और कीट रोपाई के 30-35 दिन बाद दिखाई देने लगते हैं। खैरा रोग जिंक की कमी से होता है, जिससे पत्तियाँ पीली पड़ती हैं और ग्रोथ रुक जाती है। झोका और झूलसा रोग फफूंद से फैलते हैं, जो पत्तियों और तनों को नष्ट करते हैं। भूरा रोग पत्तियों पर भूरे धब्बे बनाता है, और हल्दी रोग फसल को पीला कर देता है। अगर समय पर इनका उपचार न हो, तो पैदावार में भारी कमी आ सकती है।

खरपतवार नियंत्रण के उपाय

कृषि अधिकारी भगवती प्रसाद के अनुसार, धान की रोपाई के बाद खेतों में खरपतवार तेजी से उगते हैं, जो फसल की ग्रोथ और पोषक तत्वों को चुराते हैं। इसे रोकने के लिए रोपाई के तुरंत बाद पेटलाक्लोर दवा (1.5-2 लीटर/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। यह दवा राष्ट्रीय बीज गोदाम पर 50% सब्सिडी पर उपलब्ध है। अगर रोपाई के बाद खरपतवार दिखें, तो 30-35 दिन बाद नेमनी गोल्ड (एक्सपायरी बैक सोडियम, 100-150 मिली/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। यह खरपतवार को जड़ से खत्म करता है और फसल को नुकसान नहीं पहुँचाता। छिड़काव सुबह या शाम करें, जब हवा शांत हो।

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खैरा रोग से बचाव

खैरा रोग धान की फसल में जिंक की कमी से होता है, जो रोपाई के 30-35 दिन बाद दिखता है। इसके लक्षणों में पत्तियाँ पीली पड़ना, ग्रोथ रुकना, और पौधे का कमजोर होना शामिल है। इससे बचने के लिए खेत में हल्की नमी होने पर जिंक सल्फेट (5 किलो/हेक्टेयर) और नूरीया (5 ग्राम/लीटर पानी) का घोल बनाकर छिड़काव करें। यह उपाय खैरा रोग को 90% तक नियंत्रित करता है। जिंक सल्फेट राष्ट्रीय बीज गोदाम या स्थानीय कृषि केंद्रों पर आसानी से मिल जाता है। नियमित निगरानी से रोग की शुरुआत में ही इसका उपचार संभव है।

अन्य रोगों और कीटों की रोकथाम

झोका और झूलसा रोग के लिए प्रोपीकोनाजोल (1 मिली/लीटर पानी) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें। बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (0.1 ग्राम/लीटर पानी) प्रभावी है। टुनगरों और कंडुवा जैसे कीटों के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.5 मिली/लीटर पानी) का उपयोग करें। छिड़काव से पहले पशु चिकित्सक या KVK से सलाह लें। खेत में जलभराव से बचें, क्योंकि यह रोगों को बढ़ावा देता है। जैविक खाद (10-15 टन/हेक्टेयर) और संतुलित उर्वरक (120:60:40 किलो NPK/हेक्टेयर) का उपयोग करें।

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  • Shashikant

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