पंजाब और हरियाणा जैसे धान उत्पादक राज्यों में हाल के वर्षों में धान की फसल में बौनेपन की समस्या तेजी से बढ़ी है। यह रोग पौधों को छोटा और कमजोर बना देता है, उनकी जड़ें ठीक से नहीं बढ़तीं, और वे या तो मुरझा जाते हैं या गिर पड़ते हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) की एक रिसर्च में सामने आया कि यह समस्या उन खेतों में ज्यादा देखी गई, जहां धान की रोपाई 15 से 25 जून के बीच हुई।
इस रोग का मुख्य कारण Southern Rice Black-streaked Dwarf Virus (SRBSDV) है, जिसे पहली बार 2001 में दक्षिणी चीन में देखा गया था। यह वायरस हॉपर कीट के जरिए फैलता है, जो धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है। यह रोग धान की पैदावार को 20-30% तक कम कर सकता है, जिससे किसानों को बड़ा नुकसान होता है।
हरियाणा में बौनेपन की समस्या
हरियाणा में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है, और यहाँ बौना रोग पहले भी 2022 में देखा गया था। शोध में पाया गया कि SRBSDV के साथ-साथ Rice Gall Dwarf Virus (RGDV) भी इस रोग के लिए जिम्मेदार है। ये दोनों वायरस धान के पौधों को बौना बना देते हैं, जिससे उनकी पैदावार में कमी आती है। गाँवों में देखा गया है कि प्रभावित खेतों में पौधे टुकड़ों में बौने रह जाते हैं। पत्तियों का रंग गहरा हो जाता है, कल्लों की वृद्धि रुक जाती है, और पौधे इतने कमजोर हो जाते हैं कि आसानी से गिर जाते हैं।
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पंजाब में वायरस का बढ़ता प्रकोप
पंजाब में भी बौना रोग धान की खेती के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। पहले यहाँ बैक्टीरिया और फंगस की समस्याएँ आम थीं, लेकिन अब SRBSDV वायरस का असर बढ़ गया है। श्री फतेहगढ़ साहिब, पटियाला, होशियारपुर, लुधियाना, पठानकोट, एसएएस नगर, और गुरदासपुर जैसे जिलों में यह समस्या देखी गई। शुरू में कुछ जिलों तक सीमित यह रोग धीरे-धीरे पूरे पंजाब में फैल गया। प्रभावित पौधों की पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं, जड़ें और तने कमजोर हो जाते हैं, और पौधों की लंबाई आधे से एक तिहाई तक कम हो जाती है।
PAU की रिसर्च से अहम खुलासा
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस समस्या को समझने के लिए होशियारपुर, रोपड़, मोहाली, लुधियाना, श्री फतेहगढ़ साहिब, और पटियाला के प्रभावित खेतों का दौरा किया। शोध में पाया गया कि 15 से 25 जून के बीच रोपाई की गई धान की फसल में यह रोग ज्यादा देखा गया। इन जिलों में 5-7 प्रतिशत खेतों में बौनेपन के लक्षण दिखे, और प्रभावित खेतों में बौने पौधों की संख्या भी 5-7 प्रतिशत थी। रिसर्च से यह भी पता चला कि जल्दी रोपाई वाली फसलें बाद की तारीखों में रोपी गई फसलों की तुलना में ज्यादा प्रभावित हुईं।
बौना रोग से बचाव के देसी तरीके
इस रोग से फसल को बचाने के लिए कुछ सरल और देसी उपाय अपनाए जा सकते हैं। गाँवों में अनुभव है कि खेतों पर नियमित नजर रखने से हॉपर कीट को समय पर पकड़ा जा सकता है। अगर खेत में प्रति पौधा 5-10 तेला (हॉपर) दिखें, तो तुरंत कीटनाशक का छिड़काव करें। कृषि विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि 80 ग्राम डाईनोटिफ्यूरान 20% एसजी (जैसे ओशीन 20 एसजी या टोकन 20% एसजी) या 120 ग्राम पाईमटरोजिन 50% डब्ल्यूजी को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें। रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर गहरे गड्ढे में दबाएँ या जलाकर नष्ट करें।
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खेतों की सफाई और देखभाल
खेतों की मेड़ों और नालियों को साफ रखें, ताकि खरपतवार या अनचाहे पौधे न उगें। गाँवों में देखा गया है कि खरपतवार पर हॉपर कीट अपना ठिकाना बनाते हैं, जिससे वायरस फैलता है। खेत में ज्यादा पानी जमा न होने दें और उचित जल निकासी का इंतजाम करें। इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और वायरस का प्रकोप कम होता है। गाँवों में लाइट ट्रैप का उपयोग भी प्रभावी है, जो हॉपर की मौजूदगी का पता लगाने में मदद करता है। इससे सही समय पर कीट नियंत्रण किया जा सकता है। लाइट ट्रैप लगाने से पहले अपने नजदीकी कृषि केंद्र से सलाह लें, ताकि सही तरीके से इसका उपयोग हो।
फसल की पैदावार बचाने की सलाह
बौना रोग धान की पैदावार को 20-30% तक कम कर सकता है। गाँवों में अनुभव है कि समय पर रोग की पहचान और बचाव के उपाय अपनाने से फसल को बचाया जा सकता है। कृषि विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि रोपाई का समय 25 जून के बाद रखें, ताकि वायरस का खतरा कम हो। खेत में नियमित निगरानी करें और देसी उपायों का उपयोग करें। उदाहरण के लिए, नीम का तेल या लहसुन-मिर्च का मिश्रण छिड़कने से हॉपर कीट का असर कम होता है। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से सलाह लें और इन आसान उपायों से अपनी धान की फसल को बौना रोग से बचाएं।
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