FISH FARMERS WEEK: हर साल 10 जुलाई को नेशनल फिश फार्मर्स डे (NFFD) बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यह दिन 1957 में दो वैज्ञानिकों, डॉ. हीरालाल चौधरी और डॉ. एच.के. अलीकुन्ही की मछलियों के कृत्रिम प्रजनन (इंड्यूस्ड ब्रीडिंग) की ऐतिहासिक सफलता की याद दिलाता है। इस वैज्ञानिक उपलब्धि ने भारत में मत्स्य पालन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और नीली क्रांति की शुरुआत की। आज मछली पालन देश का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है। इस उपलब्धि के पीछे न सिर्फ वैज्ञानिकों का योगदान है, बल्कि मेहनती मछली पालकों की कड़ी मेहनत भी शामिल है, जिन्होंने इसे एक लाभकारी धंधे में बदला।
मछली पालक: मत्स्य उद्योग की रीढ़
गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी, लुधियाना के कॉलेज ऑफ फिशरीज (COF) की डीन, डॉ. मीरा डी. अंसल बताती हैं कि मछली पालन की सफलता में मछली पालकों की मेहनत सबसे बड़ी वजह है। उन्होंने परंपरागत तरीकों को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़कर मत्स्य पालन को मजबूत उद्योग बनाया है। मछली पालकों ने नई तकनीकों को अपनाकर कम लागत में ज्यादा उत्पादन हासिल किया है। मछली में प्रोटीन, ओमेगा-3, और अन्य पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी हैं। डॉ. मीरा का कहना है कि मछली की मांग बढ़ाने के लिए देश में मजबूत घरेलू बाजार की जरूरत है।
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फिश फार्मर्स वीक
कॉलेज ऑफ फिशरीज (COF) हर साल की तरह इस बार भी 7 से 11 जुलाई 2025 तक फिश फार्मर्स वीक मना रहा है। इस दौरान मछली पालकों का सम्मान किया जाएगा। उनके फार्मों का दौरा होगा, ताकि अन्य किसान मछली पालन की तकनीकों को देखकर प्रेरित हों। साथ ही, मछली और इसके उत्पादों के पोषण मूल्य को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे। ये अभियान लोगों को मछली खाने के फायदे बताएंगे, ताकि स्थानीय मंडियों और हाट-बाजारों में इसकी मांग बढ़े। यह सप्ताह मछली पालकों की मेहनत को सामने लाने और नए किसानों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित करने का मौका है।
मछली पालकों की वैश्विक भूमिका
यूनिवर्सिटी के उपकुलपति डॉ. जे.पी.एस. गिल बताते हैं कि विश्व की 3.2 अरब आबादी को 20 फीसदी प्रोटीन मछलियों और जलीय खाद्य पदार्थों से मिलता है। मछली पालक न सिर्फ भारत, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। नेशनल फिश फार्मर्स डे के जरिए इन मेहनती पालकों को सम्मानित किया जाता है। भारत में मत्स्य पालन ने लाखों ग्रामीण परिवारों को रोजगार और आय का जरिया दिया है। खासकर छोटे किसानों के लिए यह एक ऐसा धंधा है, जो कम जमीन और पानी में भी अच्छी कमाई देता है।
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पंजाब में मछली पालन की संभावनाएं
डॉ. आर.एस. ग्रेवाल, निदेशक (एक्सटेंशन एजुकेशन), के मुताबिक, पंजाब में ताजे और खारे पानी दोनों में मछली पालन की बड़ी संभावनाएं हैं। गुरु अंगद देव यूनिवर्सिटी नई तकनीकों का प्रदर्शन कर रही है, ताकि पानी की कमी या कम उपजाऊ जमीन वाले क्षेत्रों में भी मछली पालन शुरू हो सके। इन तकनीकों में कम पानी में मछली पालन और कृत्रिम प्रजनन शामिल हैं। पंजाब के किसानों ने इन तकनीकों को अपनाकर अपनी कमाई बढ़ाई है। यूनिवर्सिटी के प्रशिक्षण शिविरों में मछली पालकों को नई तकनीकों की जानकारी दी जा रही है।
नेशनल फिश फार्मर्स डे 2025 के मौके पर किसानों को सलाह है कि वे मछली पालन को अपनाएं। खेत में छोटे तालाब बनाकर रोहू, कतला, या मृगल जैसी मछलियां पालें। नजदीकी मत्स्य पालन केंद्र से प्रशिक्षण लें और सरकार की योजनाओं, जैसे राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड की सब्सिडी, का लाभ उठाएं। फिश फार्मर्स वीक (7-11 जुलाई) में फार्म दौरे और जागरूकता अभियानों में हिस्सा लें। यह मौका मछली पालन के फायदे और तकनीकों को समझने का है। नीली क्रांति में योगदान दें और अपनी कमाई बढ़ाएं।
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