बुंदेलखंड के किसानों के लिए सुनहरा मौका! मई-जून में करें फल बागवानी की तैयारी, जुलाई से कमाई शुरू

Horticulture in Bundelkhand: बुंदेलखंड के किसानों के लिए फल बागवानी आय का नया जरिया बन सकती है। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के फल वैज्ञानिक डॉ. रंजीत पाल ने मई-जून में भूमि तैयारी और जुलाई से पौधारोपण की सलाह दी है। कम पानी और गर्म जलवायु में भी शानदार पैदावार देने वाली फल किस्मों के साथ वैज्ञानिक तरीके अपनाकर किसान बंपर मुनाफा कमा सकते हैं। यह खेती न सिर्फ लागत कम करती है, बल्कि लंबे समय तक कमाई का भरोसा देती है।

मई-जून में भूमि की तैयारी

डॉ. रंजीत पाल के अनुसार, मई-जून का समय बुंदेलखंड में फल बागवानी के लिए खेत तैयार करने का सबसे अच्छा मौका है। ऐसी जमीन चुनें, जो हल्की ऊँचाई पर हो और जहाँ पानी की निकासी अच्छी हो। जलभराव से फलों के पेड़ों को नुकसान हो सकता है। खेत की गहरी जुताई करें और मिट्टी को 10-15 दिन धूप में खुला छोड़ दें। इससे मिट्टी में छिपे कीट और रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद, हर पौधे के लिए 1x1x1 मीटर के गड्ढे खोदें। गड्ढों को 15-20 दिन खुला रखने से मिट्टी की सेहत सुधरती है।

गड्ढों में खाद का सही मिश्रण

गड्ढों को भरने के लिए वैज्ञानिक मिश्रण तैयार करें। प्रत्येक गड्ढे में 30-35 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर खाद, 1 किलोग्राम नीम खली, और 200 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट डालें। इस मिश्रण को गड्ढे की ऊपरी मिट्टी के साथ अच्छे से मिलाएँ। यह मिश्रण पौधों को शुरुआती पोषण देता है और जड़ों को मजबूत करता है। नीम खली कीटों से बचाव करती है, जबकि गोबर खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है। यह तरीका कम लागत में फसल की शुरुआत को शानदार बनाता है।

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जुलाई से पौधारोपण का समय

जुलाई में मानसून शुरू होने के साथ पौधारोपण करें। पौधे लगाने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। हर पौधे के चारों ओर कटोरे जैसा गड्ढा बनाएँ, ताकि पानी जड़ों तक पहुंचे और नमी बनी रहे। पौधों की दूरी फल के प्रकार पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, अमरूद और आंवले के लिए 6×6 मीटर और नींबू के लिए 5×5 मीटर की दूरी रखें। यह व्यवस्था पेड़ों को बढ़ने और फल देने के लिए पर्याप्त जगह देती है।

बुंदेलखंड के लिए बेस्ट फल किस्में

डॉ. रंजीत पाल ने बुंदेलखंड की गर्म और कम पानी वाली जलवायु के लिए खास फल किस्मों की सिफारिश की है। ये किस्में कम देखभाल में भी अच्छी पैदावार देती हैं:

  • अमरूद: अलाहाबाद सफेदा, ललित, एल-49। ये मीठे और बड़े फल देते हैं।
  • सीताफल: बालानगर, एनएमके-1। कम पानी में भी शानदार उत्पादन।
  • बेर: गोला, एप्पल बेर। रसीले और बाजार में लोकप्रिय।
  • मौसंबी: पूसा शरद, पूसा राउंड। रसदार और माँग वाली।
  • आम: अमरपाली, मल्लिका। गर्मी में भी बढ़िया फलन।
  • आंवला: एनए-7, एनए-10। औषधीय गुणों से भरपूर।
  • नींबू: कागजी नींबू, बालाजी, पूसा उदित, पूसा अविनव, एनआरसीसी-7, एनआरसीसी-8। सालभर फल।

ये किस्में बुंदेलखंड की मिट्टी और मौसम के लिए खास तौर पर चुनी गई हैं। इनके पौधे नजदीकी नर्सरी या कृषि केंद्र से खरीदें।

वैज्ञानिक खेती के फायदे

इन किस्मों को वैज्ञानिक तरीके से लगाने से किसानों को कई फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा यह है कि ये कम पानी और गर्मी में भी अच्छा उत्पादन देती हैं। उदाहरण के लिए, एक अमरूद का पेड़ 3-4 साल में 50-60 किलो फल दे सकता है, जिसकी बाजार कीमत 40-60 रुपये प्रति किलो है। इसी तरह, आंवला और नींबू की खेती सालभर कमाई देती है। ये फल स्थानीय बाजारों से लेकर शहरों तक अच्छा दाम पाते हैं। कम लागत और कम मेहनत में ये फसलें लंबे समय तक मुनाफा देती हैं।

पौधारोपण के बाद पौधों की नियमित देखभाल जरूरी है। पहले साल हर 7-10 दिन में सिंचाई करें। मानसून में पानी की जरूरत कम हो सकती है। पौधों के आसपास खरपतवार हटाएँ और हर साल गोबर खाद डालें। कीटों या रोगों के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लें। नीम तेल का छिड़काव प्राकृतिक कीट नियंत्रण के लिए कारगर है। पेड़ों की छँटाई साल में एक बार करें, ताकि फलन बढ़े।

बुंदेलखंड में बागवानी का भविष्य

डॉ. रंजीत पाल का कहना है कि बुंदेलखंड में फल बागवानी किसानों की तकदीर बदल सकती है। यहाँ की मिट्टी और जलवायु फलों की खेती के लिए अनुकूल है। अगर मई-जून में खेत तैयार कर जुलाई से पौधारोपण शुरू किया जाए, तो 3-4 साल में बाग कमाई का बड़ा जरिया बन सकता है। सरकार की नर्सरी और सब्सिडी योजनाओं का लाभ उठाकर किसान लागत और कम कर सकते हैं। यह खेती न सिर्फ आर्थिक तौर पर मजबूती देती है, बल्कि गाँवों में रोजगार भी बढ़ाती है।

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  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और मैंने संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं Krishitak.com का संस्थापक और प्रमुख लेखक हूं। पिछले 3 वर्षों से मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाएं, और ग्रामीण भारत से जुड़े विषयों पर लेखन कर रहा हूं।

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