गन्ने की पेड़ी में डालें ये जबरदस्त उर्वरक, खेत को कल्लों से भरें

प्यारे किसान भाईयों, गन्ना भारत की सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है, और पेड़ी फसल (पिछली फसल की जड़ों से उगने वाली फसल) किसानों के लिए लागत बचाने का शानदार तरीका है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, और बिहार जैसे राज्यों में पेड़ी गन्ना खेती आम है। पेड़ी फसल में सही उर्वरक और समय पर प्रबंधन से खेत कल्लों (नए अंकुरों) से भर सकता है, जिससे पैदावार बढ़ती है। गलत उर्वरक या गलत समय पर खाद डालने से कल्ले कमजोर हो सकते हैं और फसल की गुणवत्ता घट सकती है। इस लेख में हम गन्ने की पेड़ी में कौन-कौन से उर्वरक डालें, उनकी मात्रा, समय, और प्रबंधन के सरल तरीके बताएंगे, ताकि आपका खेत लहलहाए।

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मिट्टी की जाँच और खेत की तैयारी

गन्ने की पेड़ी फसल में उर्वरक डालने से पहले मिट्टी की जाँच जरूरी है। पेड़ी फसल में पिछले साल के पोषक तत्व जड़ों में मौजूद होते हैं, इसलिए मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश की सही मात्रा का पता लगाना जरूरी है। अपने नजदीकी कृषि केंद्र पर मिट्टी टेस्ट करवाएं। गन्ने के लिए दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है, जिसका पीएच 6.5 से 7.5 हो। खेत की तैयारी के लिए पिछले साल की गन्ना कटाई के बाद बचे डंठलों को साफ करें। हल्की जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। प्रति हेक्टेयर 8-10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें, ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े।

रासायनिक उर्वरक और उनकी मात्रा

पेड़ी गन्ना फसल में रासायनिक उर्वरक पिछले साल की फसल से 25-30% कम चाहिए, क्योंकि जड़ों में कुछ पोषक तत्व पहले से मौजूद होते हैं। ICAR-Sugarcane Breeding Institute की सलाह के अनुसार, प्रति हेक्टेयर 180-200 किलो नाइट्रोजन, 60-80 किलो फॉस्फोरस, और 60-80 किलो पोटाश डालें। नाइट्रोजन के लिए यूरिया (400-450 किलो), फॉस्फोरस के लिए DAP (130-170 किलो), और पोटाश के लिए MOP (100-130 किलो) का उपयोग करें। उर्वरक को दो हिस्सों में डालें। पहली खुराक कटाई के तुरंत बाद या कल्ले निकलने से पहले (15-20 दिन) डालें, जिसमें पूरी फॉस्फोरस, पोटाश, और आधी नाइट्रोजन डालें। दूसरी खुराक 45-60 दिन बाद डालें, जिसमें बची हुई नाइट्रोजन डालें।

जैविक उर्वरक का उपयोग

जैविक उर्वरक गन्ने की पेड़ी फसल में कल्लों की संख्या और मिट्टी की सेहत बढ़ाने में मदद करते हैं। प्रति हेक्टेयर 10-12 टन गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालें, खासकर कटाई के बाद। नीम की खली 500 किलो प्रति हेक्टेयर डालें, जो मृदा जनित कीटों और नेमाटोड से बचाव करती है। आज़ोटोबैक्टर और फॉस्फेट सॉल्यूबिलाइज़िंग बैक्टीरिया (PSB) जैसे जैव उर्वरक 10-15 किलो प्रति हेक्टेयर डालें। ये मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाते हैं और कल्लों को मजबूत करते हैं। जैविक उर्वरक को रासायनिक उर्वरक के साथ मिलाकर डालें, ताकि मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहे। अपने क्षेत्र के गन्ना किसानों से पूछें कि वे कौन से जैविक नुस्खे अपनाते हैं।

उर्वरक डालने का सही समय

पेड़ी गन्ना फसल में उर्वरक का सही समय कल्लों की संख्या और फसल की वृद्धि के लिए जरूरी है। कटाई के तुरंत बाद खेत में हल्की सिंचाई करें और गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें। इसके 10-15 दिन बाद, जब कल्ले निकलने शुरू हों, पहली खुराक रासायनिक उर्वरक (पूरी फॉस्फोरस, पोटाश, और आधी नाइट्रोजन) डालें। इस समय जैव उर्वरक भी मिलाएं। दूसरी खुराक 45-60 दिन बाद डालें, जब पौधे तेजी से बढ़ रहे हों। इस समय बची नाइट्रोजन डालें। अगर खेत में जस्ता (ज़िंक) की कमी है, तो 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर डालें, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे क्षेत्रों में। उर्वरक डालने के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि पोषक तत्व जड़ों तक पहुंचें।

पानी और खरपतवार प्रबंधन

उर्वरक के साथ पानी का सही प्रबंधन कल्लों की संख्या बढ़ाने में मदद करता है। पेड़ी गन्ना फसल में पहली सिंचाई कटाई के तुरंत बाद करें। इसके बाद, मई की गर्मी में हर 7-10 दिन में हल्की सिंचाई करें। ड्रिप इरिगेशन का उपयोग करें, ताकि पानी की बचत हो और उर्वरक जड़ों तक पहुंचे। खरपतवार कल्लों के लिए पोषक तत्वों और पानी की कमी कर सकते हैं। कटाई के 15-20 दिन बाद हाथ से निराई-गुड़ाई करें। अगर खरपतवार ज्यादा हों, तो पेंडीमेथालिन 1 किलो प्रति हेक्टेयर छिड़कें। जैविक खेती में मल्चिंग और बार-बार गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण से उर्वरक का पूरा फायदा पौधों को मिलता है।

कीट और रोगों से बचाव

गन्ने की पेड़ी फसल में टॉप बोरर और रेड रॉट जैसे कीट और रोग कल्लों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। टॉप बोरर से बचने के लिए कटाई के बाद डंठलों को साफ करें और नीम तेल 5 मिली प्रति लीटर पानी में छिड़कें। रेड रॉट से बचने के लिए ट्राइकोडर्मा 10 किलो प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलाएं। अगर रोग के लक्षण दिखें, तो अपने कृषि सलाहकार से संपर्क करें। स्वस्थ कल्लों के लिए बीज (या डंठल) को बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी से उपचारित करें। नियमित खेत की निगरानी करें, ताकि छोटी समस्याएं बढ़ें नहीं।

किसानों के लिए खास सलाह

गन्ने की पेड़ी फसल को सफल बनाने के लिए अपने क्षेत्र के अनुभवी गन्ना किसानों से सलाह लें। उत्तर प्रदेश में Co-0238 और महाराष्ट्र में Co-86032 जैसी किस्में पेड़ी फसल के लिए उपयुक्त हैं। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से उर्वरक और सब्सिडी की जानकारी लें। जैविक खेती अपनाएं, ताकि मिट्टी की सेहत बनी रहे। सही उर्वरक, समय, और प्रबंधन से आपका खेत कल्लों से भर जाएगा और पैदावार बढ़ेगी। इस मौसम में पेड़ी गन्ना खेती को बेहतर बनाएं और मुनाफा कमाएं!

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र पिछले तिन साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ मै ugc नेट क्वालीफाई हूँ भूगोल विषय से मै एक विषय प्रवक्ता हूँ , मुझे कृषि सम्बन्धित लेख लिखने में बहुत रूचि है मैंने सम्भावना संस्थान हिमाचल प्रदेश से कोर्स किया हुआ है |

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