गांठ गोभी एक महत्वपूर्ण ठंडी मौसम की सब्ज़ी है, जिसे भारत के कई राज्यों में किसान उगाते हैं। इसमें विटामिन C, खनिज लवण और फाइबर भरपूर मात्रा में मिलता है। इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है, इसलिए किसान भाई अगर सही तकनीक से इसकी खेती करें तो उन्हें अच्छी पैदावार और मुनाफा दोनों मिल सकता है।
जलवायु और बुवाई का समय
गांठ गोभी की खेती ठंडी और नम जलवायु में सबसे सफल रहती है। गांठ बनने के समय तापमान 15-20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, तभी इसकी गांठे ठोस और आकर्षक बनती हैं। अधिक तापमान पर गांठें ढीली और खराब हो जाती हैं। इस फसल की बुवाई अलग-अलग मौसम के हिसाब से की जाती है। जल्दी किस्में मई-जून में नर्सरी में लगाई जाती हैं और अगस्त-सितंबर में रोपाई की जाती है। मुख्य किस्मों की बुवाई अगस्त से अक्टूबर तक होती है, जबकि देर की किस्मों की नर्सरी सितंबर-अक्टूबर में तैयार की जाती है।
मिट्टी की तैयारी
खेती के लिए हल्की से मध्यम दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। मिट्टी का pH 5.5 से 7.5 तक होना चाहिए। खेत की तैयारी के समय गोबर की अच्छी सड़ी खाद डालना जरूरी है और ध्यान रखना चाहिए कि खेत में पानी का निकास ठीक से हो। अच्छी जल निकासी वाली जमीन में ही गांठ गोभी का उत्पादन अधिक मिलता है।
उन्नत किस्में
इस फसल की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। जल्दी किस्मों में पूसा दीपाली और पूसा कार्तिक संकर लोकप्रिय हैं। मुख्य किस्मों में पूसा स्नोबॉल-1, पूसा शुभ्रा और अर्ली कुँवारी आती हैं। देर की किस्मों में पंत शुभ्रा और स्नोबॉल-16 किसानों को अच्छी पैदावार देती हैं। किसान भाई अपनी मिट्टी और मौसम के अनुसार किस्म चुनकर खेती करें तो उन्हें बेहतर परिणाम मिलते हैं।
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नर्सरी, रोपाई और पौधों की दूरी
नर्सरी में तैयार पौध को चार से पाँच हफ्ते बाद रोपाई के लिए खेत में लगाया जाता है। पौधे में 4-5 पत्तियाँ आने के बाद रोपाई करनी चाहिए और पौध को उतनी ही गहराई पर लगाना चाहिए जितनी नर्सरी में थी। पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखने से गांठे अच्छी बनती हैं।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
फसल को अच्छी पैदावार देने के लिए खाद और उर्वरक प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। गोबर की खाद के साथ नत्रजन, फॉस्फोरस और पोटाश की उचित मात्रा खेत में डालनी चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा रोपाई के समय और बाकी दो बार टॉप ड्रेसिंग में दी जाती है। इसके अलावा बोरॉन और मोलिब्डेनम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व गांठ की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं।
सिंचाई
गांठ गोभी को नियमित नमी की जरूरत होती है। हर सात से दस दिन पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए। खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे पौधे सड़ने लगते हैं। ड्रिप इरिगेशन प्रणाली अपनाने से पानी और खाद दोनों की बचत होती है और पैदावार भी बढ़ती है।
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खरपतवार नियंत्रण और रोग नियंत्रण
इस फसल में खरपतवार समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। समय-समय पर निराई-गुड़ाई करनी जरूरी है। किसान चाहें तो जरूरत पड़ने पर अनुशंसित खरपतवारनाशी का भी प्रयोग कर सकते हैं।
गांठ गोभी पर एफिड, डायमंडबैक मॉथ और पत्ताखोर कीट अक्सर हमला करते हैं। इसके अलावा ब्लैक रॉट, क्लब रूट और लीफ ब्लाइट जैसी बीमारियाँ भी नुकसान पहुँचाती हैं। इनसे बचाव के लिए जैविक तरीके जैसे नीम तेल का छिड़काव और Bt स्प्रे कारगर हैं। आवश्यकता पड़ने पर वैज्ञानिकों की सलाह अनुसार दवाइयों का उपयोग करना चाहिए। फसल चक्र अपनाने और गोभी परिवार की फसलें लगातार न बोने से भी रोग का दबाव कम होता है।
कब करें कटाई
फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब गांठें ठोस और सफेद हों। अगर इन्हें देर तक खेत में छोड़ दिया जाए तो गांठें ढीली और खराब हो जाती हैं। मैदानों में इसकी औसत पैदावार 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर तक मिलती है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में उत्पादन 20 से 30 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुँच जाता है।
गांठ गोभी की खेती किसानों के लिए ठंडी मौसम में एक भरोसेमंद विकल्प है। सही समय पर बुवाई, संतुलित खाद, नियमित सिंचाई और रोग नियंत्रण अपनाने से किसान भाई अच्छी पैदावार ले सकते हैं। अगर किसान ऑफ-सीजन में इसका उत्पादन करें तो उन्हें बाजार में ऊँचे दाम मिलते हैं और मुनाफा भी दोगुना हो सकता है।
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