चैत का महीना चल रहा है और गेहूं की कटाई शुरू हो गई है। इस मौसम में किसान भाइयों को सबसे बड़ा नुकसान पराली जलाने से हो रहा है। एक खेत की आग दूसरे खेत तक पहुँचती है और फसलें बर्बाद हो जाती हैं। इसे रोकने के लिए सरकार ने कड़ा कदम उठाया है। अब गेहूं के डंठल जलाने वालों पर सैटेलाइट से नजर रखी जा रही है। पराली जलाने वालों से जिला प्रशासन जुर्माना वसूल करेगा। प्रदूषण को काबू करने के लिए प्रशासन सख्ती बरत रहा है। पिछले साल सैटेलाइट से 9 किसानों को ऐसा करते पकड़ा गया था और उन पर कार्रवाई हुई थी। कृषि विभाग भी जागरूकता फैला रहा है, ताकि किसान पराली न जलाएँ।
सैटेलाइट से निगरानी और कार्रवाई
गेहूं की फसल काटने के बाद खेत में बचे अवशेष जलाने वालों पर नजर रखने के लिए सैटेलाइट का इस्तेमाल हो रहा है। इसके सेंसर धुएँ को पकड़ते हैं और आग लगने की जगह का रोड मैप तैयार करते हैं। फिर मैसेज के जरिए जिला प्रशासन को सूचना भेजी जाती है। डीएम की अगुआई में बनी टीम कार्रवाई करती है। हर जिले में एसडीएम के नेतृत्व में समितियाँ बनाई गई हैं, जो पराली जलाने पर रोक लगाएँगी और दोषियों पर सजा सुनिश्चित करेंगी। पिछले साल भोजपुर में 9 किसानों को पकड़ा गया, उनका निबंधन रद्द हुआ और उन्हें कृषि योजनाओं से बाहर कर दिया गया।
पराली जलाने से मिट्टी और हवा को नुकसान
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक शशिभूषण शशि बताते हैं कि पराली जलाने से खेत की उर्वर शक्ति कमजोर पड़ती है। मिट्टी में रहने वाले मित्र कीट मर जाते हैं, जो पोषक तत्व बनाते हैं। इससे अगली फसल की पैदावार घटती है। साथ ही, धुएँ से सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और जहरीले कण हवा में फैलते हैं, जो बीमारियाँ बढ़ाते हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से सड़कों पर धुंध छाती है, जिससे हादसों का खतरा बढ़ता है। वैज्ञानिक कहते हैं, “ये नुकसान सिर्फ खेत तक सीमित नहीं, पूरे इलाके को भुगतना पड़ता है।”
सजा और जुर्माने का प्रावधान
शशिभूषण शशि के मुताबिक, पराली जलाने की सजा सख्त है। 2.5 हेक्टेयर तक जमीन पर 2,500 रुपये, 5 हेक्टेयर पर 5,000 रुपये और इससे ज्यादा पर 15,000 रुपये जुर्माना लगेगा। दोषी किसानों को धान खरीद, डीबीटी और दूसरी सरकारी योजनाओं से वंचित किया जा सकता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत 6 महीने तक जेल और 15,000 रुपये तक जुर्माना भी हो सकता है। पिछले साल भोजपुर में 28 किसानों का निबंधन रद्द हुआ था, और 2024 में 9 पर कार्रवाई हुई। इनमें गड़हनी, बिहिया, तरारी और जगदीशपुर के किसान शामिल थे। निबंधन रद्द होने से 3 साल तक कोई सरकारी लाभ नहीं मिलेगा।
पराली जलाने की बजाय ये करें
किसान भाइयों, पराली को जलाने से बेहतर इसके विकल्प अपनाएँ। हैप्पी सीडर, रोटरी मल्चर, एक्स्ट्रा बेलर या स्ट्रॉ रीपर से पराली को मिट्टी में मिलाएँ। इससे मिट्टी की ताकत बढ़ती है और प्राकृतिक खाद बनती है। पराली को पशुओं के चारे के लिए रखें या बेचकर कमाई करें। सरकार इन मशीनों पर 75-80% सब्सिडी दे रही है। कृषि विभाग के जागरूकता कैंप में जाएँ और सही तरीके सीखें। इससे न जुर्माने का डर रहेगा, न मिट्टी का नुकसान होगा।
पराली जलाने से बचें और खेती को फायदेमंद बनाएँ। मशीनों से पराली को खेत में मिलाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएँ। अगली फसल की पैदावार बढ़ेगी और लागत घटेगी। सब्सिडी का फायदा उठाएँ और सैटेलाइट की नजर से बचें। जुर्माना, निबंधन रद्द और कानूनी कार्रवाई से अपनी मेहनत को बर्बाद न करें। जागरूक बनें, सही कदम उठाएँ और अपनी कमाई को सुरक्षित रखें। ये छोटा बदलाव आपकी खेती और सेहत दोनों को संवारेगा।
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