Gram Farming Tips: चना बिहार के प्रमुख रबी फसलों में से एक है। इस समय चने में फूल और फलियां आने का समय चल रहा है। यदि चने के पौधे में फूल नहीं आ रहे हैं या फलियां नहीं बन रही हैं, तो किसानों को विशेष देखभाल करने की आवश्यकता है। इसके लिए 10 ग्राम एनपीके के साथ 2 ग्राम जिंक और 2 ग्राम बोरान प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं। इससे फसल में परागण की क्षमता विकसित होगी और फलन बेहतर होगा।
फली छेदक कीट का नियंत्रण
फूल आने के साथ ही फलियां भी लगने लगती हैं, लेकिन इस दौरान फली छेदक कीट का खतरा बढ़ जाता है। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए नीम के तेल का छिड़काव किया जा सकता है। नीम का तेल 1500 पीपीएम का होना चाहिए, और इसे 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसके बाद इमामेक्टिन बेंजोएट 10 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर दो बार छिड़काव करें। इससे फली छेदक कीट का प्रकोप कम होगा।
यदि चने की फसल सूख रही है, तो प्रोपिकोनाजोल 250 एमएल प्रति एकड़ में छिड़काव करें। इससे सूखे की समस्या दूर होगी और फसल को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।
चने की खेती के लिए उपयुक्त परिस्थितियां
चना देश की सबसे प्रमुख दलहनी फसल है और इसे दालों का राजा भी कहा जाता है। उत्तरी भारत में इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। चना शुष्क और ठंडी जलवायु की फसल है और इसे रबी मौसम में उगाया जाता है। इसकी खेती के लिए 24 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त माना जाता है। चने की खेती हल्की से भारी मिट्टी में की जाती है, लेकिन अधिक जल धारण क्षमता और उचित जल निकासी वाली मिट्टी सर्वोत्तम होती है।
सिंचाई और पोषण प्रबंधन
चना बहुत कम पानी खपत करने वाली फसल है। यदि किसान ने एक बार पटवन कर लिया है, तो दोबारा पटवन करने की आवश्यकता नहीं है। हल्की ओस भी चने के लिए पर्याप्त होती है। हालांकि, बलुई मिट्टी में खेती करने वाले किसान स्प्रिंकलर से हल्का सिंचाई कर सकते हैं।
किसानों के लिए सुझाव
- फूल और फलियों के समय: एनपीके, जिंक और बोरान का छिड़काव करें।
- फली छेदक कीट: नीम के तेल और इमामेक्टिन बेंजोएट का छिड़काव करें।
- सूखे की स्थिति: प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करें।
- सिंचाई: चने को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए सिंचाई सीमित करें।
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