हैदराबाद स्थित अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान ICRISAT ने मूंगफली की ब्रीडिंग में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है। एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि पिछले 15-20 वर्षों में विकसित किस्मों से प्रति वर्ष औसतन 25-27 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उपज वृद्धि हुई। यह सुधार छोटे किसानों की आय बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा मजबूत करने में सहायक साबित हो रहा। मूंगफली भारत में खाद्य तेल का प्रमुख स्रोत है, और इसकी उत्पादकता में इजाफा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल देता है।
ब्रीडिंग से प्राप्त आनुवंशिक लाभ का आकलन
अध्ययन में रीयलाइज्ड जेनेटिक गेन के आधार पर मूंगफली की दो मुख्य किस्मों स्पैनिश बंच और वर्जीनिया बंच का मूल्यांकन किया गया। मध्यम अवधि वाली किस्मों में प्रति वर्ष 27 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और देर से पकने वाली किस्मों में 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज हुई। 1988 से अब तक के आंकड़ों से साफ है कि सतत ब्रीडिंग से स्थायी सुधार संभव है। ICRISAT के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि यह आकलन ब्रीडिंग रणनीतियों को बेहतर बनाने में मदद करेगा, ताकि आने वाले वर्षों के लिए उपयुक्त किस्में तैयार की जा सकें।
240 से अधिक किस्में जारी, भारत में उच्च तेल वाली किस्मों का योगदान
1976 से ICRISAT ने 39 देशों में 240 से ज्यादा उन्नत मूंगफली किस्में विकसित की हैं। भारत में राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली के साथ मिलकर पहली हाई ओलिक एसिड वाली किस्में ICGV 15083 यानी गिरनार 4 और ICGV 15090 यानी गिरनार 5 तैयार की गईं। इनमें तेल की गुणवत्ता और शेल्फ लाइफ बेहतर है, जिससे मूंगफली निर्यात को बढ़ावा मिला। फली की उपज, शेलिंग प्रतिशत और बीज वजन जैसे गुणों पर फोकस किया गया।
भविष्य में डेटा आधारित तकनीकों का उपयोग
ICRISAT अब मूंगफली ब्रीडिंग को डेटा-संचालित बना रहा है। इसमें जीनोमिक चयन, आधुनिक फेनोटाइपिंग, डेटा एनालिटिक्स और मशीन लर्निंग शामिल हैं। प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. जनीला पसुपुलेटी ने बताया कि कम्प्यूटेड टोमोग्राफी और जीनोमिक चयन जैसी तकनीकों से तेज और सटीक ब्रीडिंग हो रही। लक्ष्य ऐसी किस्में विकसित करना है जो उच्च उपज दें, पोषण मूल्य बढ़ाएं और कीट-सूखा प्रतिरोधी हों। उप महानिदेशक डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड ने कहा कि हर प्रतिशत उपज वृद्धि किसानों की आय और भोजन उपलब्धता बढ़ाती है।
भारत में मूंगफली उत्पादन के प्रमुख राज्य
वर्ष 2023-24 में भारत का मूंगफली उत्पादन 86.75 लाख टन रहा। गुजरात सबसे आगे है जो कुल उत्पादन का 46 प्रतिशत देता है। राजस्थान 16 प्रतिशत, तमिलनाडु 10 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश 8.5 प्रतिशत और कर्नाटक 5 प्रतिशत योगदान देते हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य मिलकर करीब 10 प्रतिशत उत्पादन जोड़ते हैं। यह फसल खाद्य तेल, पशु चारा और प्रोटीन स्रोत के रूप में उपयोगी है।
ये भी पढ़ें- आलू किसानों के लिए सुनहरा मौका: बनास डेयरी और बीज सहकारी ने मिलाया हाथ, बढ़िया बीज से बाजार तक रास्ता आसान