Insulin farming: किसान भाइयों, छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहते हैं, लेकिन यहाँ खेती की ताकत सिर्फ धान तक सीमित नहीं है। औषधीय पौधों की खेती करके भी आप अपनी जेब भर सकते हैं। ऐसा ही एक पौधा है इंसुलिन, जो न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि कम मेहनत में अच्छी कमाई भी देता है। गाँव में आजकल बहुत से लोग मधुमेह जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं, और ये पौधा उनके लिए दवा का काम करता है। आइए, समझें कि कैसे इसे उगाएँ और फायदा कमाएँ।
खेत को तैयार करने का देसी ढंग
इंसुलिन पौधे की खेती (Insulin farming) के लिए खेत को ज्यादा जोर लगाकर तैयार करने की जरूरत नहीं। मई-जून का महीना इसके लिए सबसे बढ़िया है, जब मानसून की पहली बूँदें गिरने वाली होती हैं। खेत की हल्की जुताई कर लें और गोबर की सड़ी खाद डाल दें, करीब 5-7 गट्ठर प्रति बीघा। दोमट या बलुई मिट्टी इसके लिए ठीक रहती है, बस पानी रुकने न पाए। गाँव में अगर गोबर की खाद न हो, तो सूखी पत्तियों को मिट्टी में मिला दें, ये भी पौधे को ताकत देगा। खेत में थोड़ा ढलान रखें, ताकि बारिश का पानी सही से बहे।
कंद से बुआई का आसान तरीका
ये पौधा अपने कंद यानी राइजोम से उगता है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय से इसके कंद सस्ते दाम में ले सकते हैं। कंद को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें, हर टुकड़े में एक-दो आँखें हों। अब इन्हें खेत में 40-50 सेंटीमीटर की दूरी पर बो दें। कतार से कतार की दूरी भी इतनी ही रखें, ताकि पौधे को फैलने की जगह मिले। कंद को मिट्टी में हल्का दबाकर ऊपर से गोबर की पतली परत डाल दें। मानसून की बारिश शुरू होते ही ये अपने आप बढ़ने लगेगा।
देखभाल का नुस्खा
इंसुलिन पौधा ज्यादा नखरे नहीं करता। बरसात में तो पानी की जरूरत ही नहीं पड़ती, लेकिन सूखा पड़े तो हफ्ते में एक बार हल्का पानी डाल दें। रासायनिक खाद की जरूरत नहीं, गोबर की खाद ही काफी है। अगर मिट्टी कमजोर लगे, तो नीम की सूखी पत्तियाँ डाल दें, ये कीड़ों को भी भगाएगा और पौधे को ताकत देगा। पौधे को 2-3 फीट तक बढ़ने दें, ज्यादा छँटाई न करें। गाँव में वैज्ञानिक येमन देवांगन जी कहते हैं कि ये नया पौधा है, लेकिन छत्तीसगढ़ की मिट्टी इसे पसंद आएगी।देश के अन्य राज्यों में भी इसे उगाया जा सकता है जिससे देश के बाकी किसानो को भी इस पौधों को लगाने से लाभ होगा।
औषधीय फायदा और कमाई
ये पौधा आयुर्वेद में कमाल करता है। इसकी पत्तियाँ सर्दी, खाँसी, कफ और मधुमेह जैसी बीमारियों में दवा का काम करती हैं। गाँव में लोग इसकी पत्तियों को चबाते हैं या पानी में उबालकर पीते हैं। एक बीघे से 50-70 किलो पत्तियाँ और कंद निकल सकते हैं। बाजार में 100-150 रुपये किलो का भाव मिलता है, यानी 7-10 हज़ार रुपये की कमाई आसानी से हो सकती है। बचे हुए कंद को अगली फसल के लिए रख लें या बेच दें। गाँव की बहनें इसे सुखाकर चूर्ण भी बना सकती हैं, जो अलग से पैसा लाएगा।
किसानो के लिए खास बात
छत्तीसगढ़ में धान के साथ इंसुलिन की खेती इसलिए खास है, क्यूँकि ये कम लागत में उग जाता है। खेत के किनारे या छोटी जगह पर भी इसे आजमा सकते हैं। मानसून की बारिश और गोबर की खाद इसे बढ़ने के लिए काफी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये पौधा यहाँ की मिट्टी और मौसम में अच्छा पनपेगा। तो किसान भाइयों, इस बार धान के साथ इंसुलिन पौधे को भी जगह दें, सेहत और जेब दोनों की चमक बढ़ेगी।
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