Lauki ki organic kheti: भारत में सब्जियों की खेती में लौकी का खास स्थान है। गांव से लेकर शहरों तक इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। अगर आप भी लौकी की खेती करना चाहते हैं और वो भी जैविक तरीके से, तो समझ लीजिए कि ये आपके लिए फायदे का सौदा हो सकता है। जैविक खेती से फसल तो अच्छी होती ही है, साथ ही मिट्टी भी स्वस्थ रहती है और बाजार में जैविक लौकी की कीमत भी अच्छी मिलती है। इस लेख में हम आपको लौकी की ऑर्गेनिक खेती (lauki ki organic kheti) का पूरा तरीका विस्तार से समझाएंगे ताकि आप भी इस खेती से बढ़िया मुनाफा कमा सकें।
लौकी की जैविक खेती (lauki ki organic kheti) के फायदे
पहले के जमाने में लोग रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करते थे, फिर भी उनकी फसलें लहलहाती थीं। आजकल ज़्यादा उत्पादन के लालच में किसान भाई केमिकल वाले उर्वरक डालने लगे हैं, जिससे मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है और हमारे खाने में भी ज़हर घुल रहा है। ऑर्गेनिक खेती का सबसे बड़ा फायदा यही है कि इसमें हम प्राकृतिक चीज़ों का ही इस्तेमाल करते हैं, जिससे फसल भी अच्छी होती है और सेहत भी बनी रहती है।
ऑर्गेनिक लौकी की बाजार में अच्छी मांग रहती है, क्योंकि लोग अब केमिकल-फ्री खाने की ओर लौट रहे हैं। जैविक खेती से जमीन की उर्वरता बनी रहती है और उत्पादन में कोई गिरावट नहीं आती। इसके अलावा, खेती का खर्च भी कम होता है, क्योंकि इसमें महंगे केमिकल खाद और दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती।
लौकी के लिए सही जलवायु और मिट्टी
लौकी एक गर्म मौसम की फसल है, जिसे बढ़ने के लिए अच्छी धूप और हल्की नमी चाहिए होती है। अगर तापमान 15 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच हो, तो फसल जल्दी और अच्छी होती है। बहुत ज्यादा ठंड में इसकी वृद्धि रुक जाती है और ज्यादा गर्मी में इसकी बेलें कमजोर हो जाती हैं।
मिट्टी की बात करें तो लौकी को दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा पसंद आती है। अगर मिट्टी में जैविक तत्व ज्यादा होंगे, तो पैदावार भी शानदार होगी। मिट्टी का pH लेवल 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। खेत की मिट्टी उपजाऊ बनाने के लिए गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट और हरी खाद का इस्तेमाल करें।
लौकी की बेहतरीन जैविक किस्में
अगर आप lauki ki organic kheti से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहिए, तो अच्छी किस्म के बीज चुनना जरूरी है। भारत में कई किस्में उगाई जाती हैं, लेकिन जैविक खेती के लिए कुछ खास किस्में बेहतर मानी जाती हैं।
- पूसा नवीन – जल्दी तैयार होने वाली और रोग प्रतिरोधक किस्म
- अरका बहार – अधिक उत्पादन देने वाली किस्म
- कावरी लौकी – हरे और बड़े आकार की लौकी के लिए मशहूर
- सफेद लौकी – हल्के हरे रंग वाली लंबी लौकी के लिए बढ़िया
- पूसा संजीवनी – मध्यम आकार की लौकी, जो जल्दी तैयार होती है
खेत की तैयारी और बुवाई का सही तरीका
सबसे पहले खेत की 2-3 बार जुताई करें ताकि मिट्टी नरम और भुरभुरी हो जाए। फिर उसमें 10-15 टन गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट अच्छी तरह मिला दें। जैविक पोषक तत्वों के लिए नीम की खली और जैविक जीवाणु खाद भी डाल सकते हैं।
बुवाई का सही समय मार्च से जुलाई के बीच होता है, क्योंकि इस दौरान तापमान और नमी का संतुलन बना रहता है। बीज को 1.5-2.5 सेमी गहराई में रोपें और पौधों के बीच 1.5-2 मीटर की दूरी रखें, ताकि बेलें फैल सकें।
अगर आप सही तरीके से बेलों को सहारा देना चाहते हैं, तो खेत में बांस या लकड़ी के खंभे लगाएं और उन पर जाली बांधें। इससे बेलें ज़मीन पर नहीं गिरेंगी और फल भी साफ और अच्छे आकार के होंगे।
सिंचाई का सही तरीका
लौकी को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन नमी बनी रहनी चाहिए। बुवाई के बाद पहली सिंचाई करें और फिर गर्मियों में हर 4-5 दिन में सिंचाई करें। सर्दियों में हर 8-10 दिन में पानी देना काफी होता है।
अगर खेत में पानी ज्यादा भर जाता है, तो फसल में जड़ सड़न की समस्या हो सकती है। इसलिए जल निकासी की व्यवस्था भी सही होनी चाहिए।

जैविक खाद और पोषण प्रबंधन
लौकी की अच्छी पैदावार के लिए जैविक खादों का सही इस्तेमाल बहुत जरूरी है।
- गौमूत्र घोल – पत्तियों को मजबूत बनाने और कीटों से बचाने के लिए
- नीम खली – मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और कीटों को दूर रखने के लिए
- वर्मी कम्पोस्ट – नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए
- पंचगव्य और जीवामृत – पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए
कीट और रोगों से बचाव के देसी तरीके
अगर जैविक खेती कर रहे हैं, तो केमिकल कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कुछ देसी तरीके अपनाकर कीट और रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।
- लाल भृंग और एफिड्स से बचने के लिए नीम तेल (5%) का छिड़काव करें।
- फली छेदक कीट को रोकने के लिए ट्राइकोग्रामा जैविक कीटनाशक का उपयोग करें।
- सफेद मक्खी को दूर करने के लिए गोमूत्र और नीम तेल का मिश्रण छिड़कें।
- फफूंद जनित रोगों को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा और जैविक कवकनाशी का उपयोग करें।
फसल कटाई और मुनाफा
बुवाई के 50-60 दिन बाद लौकी की तुड़ाई शुरू हो जाती है। लौकी को मुलायम और हरी अवस्था में तोड़ें ताकि उसकी गुणवत्ता बनी रहे। अगर लौकी ज्यादा पकेगी, तो उसका स्वाद खराब हो सकता है और बाजार में कीमत भी कम मिलेगी।
प्रति एकड़ उत्पादन 100-120 क्विंटल तक हो सकता है। जैविक लौकी की बाजार में कीमत ₹30-50 प्रति किलो तक मिल सकती है। यानी अगर सही से खेती करें, तो एक एकड़ में 3 लाख से 5 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। खर्च निकालकर भी किसान भाई 1.5 लाख से 2.5 लाख रुपये प्रति एकड़ आराम से कमा सकते हैं।
लौकी की जैविक खेती (lauki ki organic kheti) करना आसान भी है और फायदेमंद भी। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि बाजार में इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है। जैविक खाद, सही सिंचाई और प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग करके किसान भाई इस खेती से बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं। अगर आप भी जैविक खेती से लाखों कमाना चाहते हैं, तो लौकी की खेती जरूर आजमाएं।
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