Maize Weed Control in Rainy Season: मक्का की खेती खरीफ सीज़न की सबसे ज़रूरी फसलों में से एक है। यह फसल न सिर्फ़ भोजन के लिए बल्कि पशुओं के चारे और कई तरह के उद्योगों में उपयोग की जाती है। लेकिन खेत में उगने वाले खरपतवार मक्का की फसल को बड़ा नुकसान पहुँचाते हैं। ये खरपतवार मिट्टी का पानी, खाद, और सूरज की रोशनी चूस लेते हैं, जिससे मक्का के पौधे कमज़ोर हो जाते हैं। अगर सही समय पर खरपतवार को नियंत्रित कर लिया जाए, तो 5 से 6 क्विंटल प्रति एकड़ तक अतिरिक्त पैदावार मिल सकती है। सही तकनीक और जानकारी से मक्का की फसल को खरपतवार से बचाकर मुनाफा बढ़ाया जा सकता है।
खरपतवार क्यों बनते हैं मुसीबत
खेत में सांठी, चौलाई, भाखडी, बिस्कोपरा, जंगली जूट, दूधी, हुलहुल, और मकरा जैसे खरपतवार मक्का के साथ-साथ उगते हैं। ये पौधे मिट्टी से ज़रूरी पोषक तत्व और पानी ले लेते हैं, जिससे मक्का की बढ़वार रुक जाती है। अगर बुआई के बाद पहले 30 से 40 दिनों में खरपतवार नहीं हटाए गए, तो पैदावार 30 से 50 फीसदी तक कम हो सकती है। इसलिए खरपतवार को शुरूआती दिनों में ही हटाना बहुत ज़रूरी है। ऐसा करने से मक्का के पौधों को मिट्टी का पूरा पोषण मिलता है और फसल मज़बूत होती है।
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खेत की तैयारी से शुरू करें
मक्का की बुआई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करना ज़रूरी है। दोमट मिट्टी मक्का के लिए सबसे अच्छी होती है। खेत की गहरी जुताई करें, ताकि पुराने खरपतवार और उनके बीज नष्ट हो जाएँ। गर्मी के मौसम में एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और फिर दो बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करें। इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और खरपतवार की समस्या कम होती है। खेत की मेड़ों को भी साफ रखें, ताकि वहाँ से खरपतवार के बीज खेत में न फैलें। मिट्टी की जाँच कराएँ, ताकि पोषक तत्वों की कमी का पता चल सके और सही मात्रा में खाद डाली जा सके।
जैविक तरीकों से खरपतवार रोकें
खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए जैविक तरीके बहुत कारगर हैं। बुआई के बाद खेत में मल्चिंग करें, यानी पुआल या सूखी घास की पतली परत बिछाएँ। यह खरपतवार को उगने से रोकता है और मिट्टी में नमी बनी रहती है। नीम का तेल या जैविक कीटनाशक का छिड़काव भी खरपतवार को कम करने में मदद करता है। समय-समय पर खेत में निराई-गुड़ाई करें। गुड़ाई से खरपतवार की जड़ें उखड़ जाती हैं और मिट्टी को हवा मिलती है, जिससे मक्का के पौधों की बढ़वार अच्छी होती है। जैविक तरीकों से फसल सुरक्षित रहती है और मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ती है।
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रासायनिक खरपतवारनाशी का सही उपयोग
अगर खरपतवार ज़्यादा हों, तो रासायनिक खरपतवारनाशी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
खरपतवारनाशी का सही समय और मात्रा
रासायनिक खरपतवारनाशी का उपयोग बुआई के 2-3 दिन बाद या खरपतवार के 2-3 पत्ती की अवस्था में करें।
अट्राज़ीन जैसे खरपतवारनाशी को 1 से 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा में 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
लॉडिस (टेम्बोट्रियोन 42% SC) को 150 मिली प्रति एकड़, टाइनज़र (टोप्रामेज़ोन 33.6% SC) को 30 मिली प्रति एकड़ में छिड़काव करें।
सेम्परा (हेलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 75% WG) को 36 ग्राम प्रति एकड़ की मात्रा में उपयोग करें।
कॉर्नैक्स (हेलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 5% + अट्राज़ीन 48% WG) को 450 ग्राम प्रति एकड़ में छिड़काव करें।
कैलारिस एक्स्ट्रा (मेसोट्रिओन 2.27% + अट्राज़ीन 22.7% SC) को 1400 मिली प्रति एकड़ की मात्रा में छिड़कें।
इन दवाओं का प्रभाव 25 से 30 दिनों तक रहता है। छिड़काव के समय हवा तेज़ न हो, और उपयोग से पहले नज़दीकी कृषि केंद्र से सलाह लें।
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पानी और खाद का प्रबंधन
मक्का की फसल को सही मात्रा में पानी और खाद की ज़रूरत होती है। मॉनसून में बारिश कम होने पर हल्की सिंचाई करें। ड्रिप सिस्टम का उपयोग करें, क्योंकि यह पानी बचाता है और पौधों को सही मात्रा में पानी मिलता है। सरकार ड्रिप सिस्टम के लिए सब्सिडी देती है, जिसके बारे में नज़दीकी कृषि केंद्र से जानकारी ली जा सकती है। मिट्टी में गोबर की खाद, नीम की खली, या वर्मी-कम्पोस्ट डालें। इससे खरपतवार कम उगते हैं और फसल को पूरा पोषण मिलता है। मिट्टी की जाँच से पोषक तत्वों की कमी का पता लगाएँ और उसी हिसाब से खाद डालें।
सरकारी योजनाओं से लें सहायता
मक्का की खेती को आसान और मुनाफेदार बनाने के लिए सरकार कई योजनाएँ चलाती है। PM-KISAN योजना के तहत हर साल 6,000 रुपये की आर्थिक मदद मिलती है, जिससे बीज, खाद, और खरपतवारनाशी खरीदने में सहायता होती है। फसल बीमा योजना से सूखा, बाढ़, या कीटों से होने वाले नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है। इन योजनाओं की जानकारी के लिए नज़दीकी कृषि अधिकारी से संपर्क करें और समय रहते आवेदन करें। ये योजनाएँ खेती का खर्च कम करने और मुनाफा बढ़ाने में मदद करती हैं।
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