मध्य प्रदेश में सीतापुर-हनुमना माइक्रो सिंचाई परियोजना, नई ToR से 1.29 लाख हेक्टेयर भूमि को मिलेगी नई जिंदगी

मध्य प्रदेश के किसानों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है। केंद्र सरकार ने सोन नदी पर प्रस्तावित सीतापुर-हनुमना माइक्रो सिंचाई परियोजना के लिए नए टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) जारी कर दिए हैं। यह परियोजना रीवा, मऊगंज, सीधी और सिंगरौली जिलों में फैली 1.29 लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि को सिंचित करेगी, खासकर रबी फसलों जैसे गेहूँ और चने के लिए। सोन घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य के बीच स्थित यह योजना पर्यावरणीय चुनौतियों के बीच भी किसानों की आय बढ़ाने और सूखे से निपटने का वादा कर रही है।

सोन नदी पर बैराज, 653 गाँवों को लाभ

यह अंतरराज्यीय जल परियोजना सोन नदी के पानी का बेहतर उपयोग करेगी, जिसका वितरण मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच पहले से तय हो चुका है। सीधी जिले के परसौना खुर्द गाँव में बनने वाला बैराज कुल 268.9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी रोक सकेगा, जिसमें 255.7 मिलियन क्यूबिक मीटर लाइव स्टोरेज होगा। बैराज की लंबाई 1,589 मीटर होगी, जिसमें 725 मीटर मिट्टी का बाँध और 784 मीटर का स्पिलवे (39 गेटों वाला) शामिल है।

सात वर्टिकल टर्बाइन पंपों से पानी उठाया जाएगा, जिनकी कुल क्षमता 108.6 मेगावाट है। इससे 653 गाँवों के किसानों को फायदा मिलेगा, और सालाना लगभग 39 लाख क्विंटल अतिरिक्त फसल उत्पादन की उम्मीद है। मध्य प्रदेश जल संसाधन विभाग इस परियोजना को लागू कर रहा है, जो सूखा प्रभावित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता को दोगुना करने का लक्ष्य रखती है।

किसानों के लिए बड़ा फायदा

परियोजना का मुख्य उद्देश्य वर्षा आधारित भूमि को सिंचित बनाना है। 1,29,060 हेक्टेयर क्षेत्र में रबी मौसम में गेहूँ, चना और अन्य फसलों को पानी मिलेगा, जो पहले बारिश पर निर्भर था। इससे किसानों की फसलें मौसम की मार से बचेंगी, और पैदावार में 20-30% की बढ़ोतरी संभव है। इसके अलावा, 5 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी पीने और औद्योगिक उपयोग के लिए भी उपलब्ध होगा। माइक्रो इरिगेशन (ड्रिप और स्प्रिंकलर) के जरिए पानी की बर्बादी कम होगी, जो जल संकट वाले मध्य प्रदेश के लिए वरदान साबित होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे छोटे किसानों की आय सालाना 50-70 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर बढ़ सकती है, क्योंकि स्थिर सिंचाई से बाजार में बेहतर दाम मिलेंगे।

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वन्यजीव अभयारण्य में सावधानी

परियोजना सोन घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य के बीच स्थित है, जहाँ संरक्षित घड़ियाल और अन्य वन्यजीव पाए जाते हैं। इसलिए, पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति (EAC) ने इसे श्रेणी ‘ए’ में रखा है, और केंद्रीय स्तर पर मूल्यांकन होगा। निर्माण के दौरान प्रतिदिन 1,550 किलोलीटर पानी की जरूरत पड़ेगी, जबकि संचालन में 268.9 मिलियन क्यूबिक मीटर सिंचाई और 5 मिलियन क्यूबिक मीटर अन्य उपयोग के लिए।

10 किलोमीटर दायरे में 57,887 लोगों की आबादी है, जिसमें 11.74% अनुसूचित जाति और 21.97% अनुसूचित जनजाति शामिल हैं। EAC ने विस्तृत पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) और पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) तैयार करने के निर्देश दिए हैं, ताकि वन्यजीवों और स्थानीय पारिस्थितिकी पर असर न पड़े। मध्य प्रदेश सरकार ने पहले ही मंजूरी दे दी है।

भूमि अधिग्रहण और लागत

परियोजना के लिए कुल 3,639.7 हेक्टेयर भूमि चाहिए, जिसमें 22.36 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है। इससे सीधी जिले के 44 गाँवों में 4,198 परिवार प्रभावित होंगे। सरकार ने मुआवजा और पुनर्वास पैकेज की योजना बनाई है, जिसमें नकद मुआवजा, वैकल्पिक भूमि और रोजगार के अवसर शामिल हैं। परियोजना की अनुमानित लागत 4,167.93 करोड़ रुपये है, जो 2024 में कैबिनेट द्वारा मंजूर की गई थी। हाल ही में HES Infra कंपनी को सबसे कम बोलीदाता के रूप में ठेका मिला है, जो बैराज और पाइप इरिगेशन सिस्टम का निर्माण करेगी। इससे प्रोजेक्ट समय पर पूरा होने की उम्मीद है।

कैसे उठाएँ लाभ

अगर आप रीवा, मऊगंज, सीधी या सिंगरौली के किसान हैं, तो स्थानीय जल संसाधन विभाग से संपर्क करें। परियोजना शुरू होने पर माइक्रो इरिगेशन सब्सिडी (50-80%) का लाभ लें, जो ड्रिप सिस्टम पर लागू है। फसल विविधीकरण के लिए गेहूँ के साथ दालें या सब्जियाँ आजमाएँ, ताकि आय स्थिर रहे। पर्यावरणीय नियमों का पालन करते हुए, स्थानीय समुदाय वन्यजीव संरक्षण में भाग लें। यह परियोजना न केवल खेती को मजबूत करेगी, बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाई देगी।

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  • Shashikant

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