Pink Bollworm: उत्तर भारत के कपास किसान लंबे समय से गुलाबी सुंडी की मार झेल रहे हैं। ये छोटा-सा कीट इतना खतरनाक है कि एक बार खेत में लग जाए, तो पूरी फसल बर्बाद कर सकता है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसानों को इसकी वजह से भारी नुकसान हुआ है। ये कीट कपास के फूलों और टिंडों को खा जाता है, जिससे रेशे खराब हो जाते हैं और बाजार में दाम आधा रह जाता है। लेकिन अब लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) ने एक नई बीटी कॉटन किस्म बनाई है, जो इस सुंडी को जड़ से खत्म करने की ताकत रखती है। ये नई किस्म न सिर्फ फसल को बचाएगी, बल्कि किसानों की जेब भी भरेगी।
पुरानी बीटी कॉटन क्यों नाकाम रही?
साल 2002 में भारत में बीटी कॉटन आई थी, जिसे बोलगार्ड-1 और बोलगार्ड-2 के नाम से जाना गया। ये किस्में शुरू में कुछ कीटों, जैसे अमेरिकन सुंडी और चितकबरी सुंडी, को रोकने में कामयाब थीं। लेकिन गुलाबी सुंडी ने धीरे-धीरे इनके प्रोटीन (क्राय1एसी और क्राय2एबी) के खिलाफ प्रतिरोध बना लिया। इसका नतीजा ये हुआ कि 2018-19 से उत्तर भारत में गुलाबी सुंडी का प्रकोप बढ़ गया। 2023 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में 16 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती हुई थी, लेकिन 2024 में ये घटकर 10 लाख हेक्टेयर रह गई, क्योंकि किसानों ने नुकसान के डर से कम बुवाई की। गुलाबी सुंडी ने फसल को इतना नुकसान पहुँचाया कि कई किसानों की मेहनत बेकार चली गई।
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गुलाबी सुंडी का काल
लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) के वैज्ञानिक डॉ. पी.के. सिंह और उनकी टीम ने तीन दशकों की मेहनत के बाद एक नया स्वदेशी कीटनाशक जीन विकसित किया है। इस जीन से बनी नई बीटी कॉटन किस्म लैब टेस्ट में गुलाबी सुंडी के खिलाफ पूरी तरह कारगर साबित हुई है। ये न सिर्फ गुलाबी सुंडी को मारती है, बल्कि फॉल आर्मीवर्म और पत्तियों पर लगने वाले कीटों से भी फसल को बचाती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ये किस्म पुरानी बीटी कॉटन से ज्यादा टिकाऊ है, क्योंकि गुलाबी सुंडी इसके खिलाफ प्रतिरोध नहीं बना पा रही है। ये नई किस्म कम पानी और कम खाद में भी अच्छी पैदावार दे सकती है, जो उत्तर भारत के किसानों के लिए बड़ी राहत है।
किसानों के लिए क्या फायदे?
गुलाबी सुंडी कपास के टिंडों में लार्वा छोड़ती है, जिससे रेशे खराब हो जाते हैं और कपास का रंग बिगड़ जाता है। इससे बाजार में उसका दाम आधा रह जाता है। 2023 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में इस कीट ने 65-90 फीसदी फसल को नुकसान पहुँचाया था। नई बीटी कॉटन किस्म इस नुकसान को रोक सकती है। ये किस्म कम कीटनाशकों की जरूरत लेती है, जिससे खेती का खर्चा घटेगा। साथ ही, ये फसल की गुणवत्ता और पैदावार बढ़ाएगी, जिससे बाजार में अच्छा दाम मिलेगा। कम बारिश वाले इलाकों में भी ये किस्म अच्छा परिणाम दे सकती है, क्योंकि इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती।
खेती के लिए देसी टिप्स
नई बीटी कॉटन की खेती शुरू करने से पहले खेत की मिट्टी की जाँच करवाएँ। ज्यादातर कपास के लिए रेतीली-दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। बुवाई का सही समय अप्रैल के मध्य से मई के मध्य तक है। जल्दी बुवाई (मार्च में) से बचें, क्योंकि इससे गुलाबी सुंडी का खतरा बढ़ता है। बीज को बुवाई से पहले 8-10 घंटे पानी में भिगो लें। खेत में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें, ताकि मिट्टी की ताकत बढ़े।
वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि बीटी कॉटन के साथ 20 फीसदी नॉन-बीटी बीज (रेफ्यूज) भी बोएँ, ताकि कीट प्रतिरोध न बना पाएँ। फेरोमोन ट्रैप लगाएँ, ताकि गुलाबी सुंडी की शुरुआती पहचान हो सके। अगर फूल या पत्तियाँ मुरझाएँ, तो नीम आधारित कीटनाशक छिड़कें। खेत में कपास की लकड़ियों का ढेर न लगाएँ, बल्कि उन्हें जला दें या मिट्टी में मिला दें।
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