भारत में ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स का बाजार तेजी से फल-फूल रहा है। फल-सब्जियों से लेकर अनाज, दालों, और अब दूध-घी-मक्खन तक, हर चीज की मांग बढ़ रही है। सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर ऑर्गेनिक डेयरी प्रोडक्ट्स की बिक्री चरम पर है, जहां दावे बड़े-बड़े हैं और कीमतें भी मनमानी। केंद्र सरकार की परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) की उपयोजना भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) से जुड़ना एक सुनहरा मौका है। आइए जानते हैं कि यह बाजार कितना बड़ा है, कैसे तैयार होता है ऑर्गेनिक प्रोडक्ट, और इसे शुरू करने का तरीका।
ऑर्गेनिक डेयरी का बढ़ता बाजार, अवसरों का खजाना
भारत में ऑर्गेनिक डेयरी प्रोडक्ट्स का बाजार दिन-दुगनी रात-चौगुनी तरक्की कर रहा है। लोग सेहत और पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं, जिससे ऑर्गेनिक दूध, घी, और मक्खन की डिमांड आसमान छू रही है। शहरी इलाकों में तो यह ट्रेंड और तेज है, जहां लोग प्रीमियम प्रोडक्ट्स के लिए पैसे खर्च करने को तैयार हैं। ई-कॉमर्स साइट्स पर घर तक डिलीवरी और सोशल मीडिया पर प्रभावशाली मार्केटिंग ने इस बाजार को और विस्तार दिया है।
चाहे गाय का दूध हो या भेड़-बकरी का, हर तरह के डेयरी प्रोडक्ट्स को ऑर्गेनिक के तौर पर बेचा जा सकता है। यह बाजार हर किसान के लिए खुला है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। कीमतें ऊंची होने से मुनाफा भी अच्छा है, एक बीघे में 4-5 लीटर दूध प्रतिदिन प्रति पशु और घी की कीमत 3,000-4,000 रुपये प्रति किलो इसे आकर्षक बनाती है।
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ऑर्गेनिक प्रोडक्ट तैयार करने की कला
ऑर्गेनिक डेयरी प्रोडक्ट तैयार करना एक कला है, जो प्रकृति के साथ तालमेल से जुड़ा है। इसके लिए पशुओं को हरा, सूखा, और दानेदार ऑर्गेनिक चारा खिलाना जरूरी है, जिसमें कोई केमिकल या सिंथेटिक खाद का इस्तेमाल न हो। अगर पशु बीमार हो जाएं, तो एंटीबायोटिक्स का कम से कम उपयोग करें और आयुर्वेदिक या देसी दवाओं पर भरोसा करें। एटरनो पद्धति, जो आयुर्वेद और घरेलू उपचारों का मिश्रण है, इस प्रक्रिया को और प्रभावी बनाती है। चारे को पूरी तरह ऑर्गेनिक रखना पड़ता है—चाहे वह हरा चारा हो, सूखा भूसा, या मिनरल मिक्सर।
बीपीकेपी, ऑर्गेनिक खेती का रास्ता
केंद्र सरकार की परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) ऑर्गेनिक डेयरी को बढ़ावा दे रही है। इस योजना में पशुओं को 24 घंटे ऑर्गेनिक चारा उपलब्ध कराना अनिवार्य है। बीपीकेपी के तहत गाय के गोबर और मूत्र से नेचुरल खाद तैयार की जाती है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है। कृषि मंत्रालय से जुड़े संस्थान किसानों को ऑर्गेनिक चारा उगाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं, और बकरी-गाय रिसर्च सेंटर खुद खेतों में ऑर्गेनिक चारा पैदा कर रहे हैं।
जीवामृत, नीमास्त्र, और बीजामृत जैसे नेचुरल इनपुट्स बनाए जा रहे हैं, जो मिट्टी के फ्रेंडली बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं। जीवामृत बनाने के लिए गुड़, बेसन, देशी गाय के गोबर-मूत्र, और मिट्टी को मिलाकर एक पावरफुल मिश्रण तैयार किया जाता है, जो खेतों को स्वस्थ बनाता है।
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ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के लिए खाद बनाना एक महत्वपूर्ण कदम है। बीपीकेपी के तहत गोबर और मूत्र से बनी खाद का इस्तेमाल होता है, जिसमें किसी केमिकल की मिलावट नहीं होती। इसके अलावा, जीवामृत जैसी प्राकृतिक खादें मिट्टी की सेहत को बेहतर करती हैं और पशुओं के लिए ऑर्गेनिक चारे की पैदावार बढ़ाती हैं। सर्टिफिकेशन के लिए पशु की खुराक और खेत की जांच होती है। अगर सब कुछ मानकों पर खरा उतरता है, तो ऑर्गेनिक लेबल मिलता है, जो बाजार में प्रोडक्ट की कीमत को दोगुना कर सकता है। यह प्रक्रिया न सिर्फ मुनाफा देती है, बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखती है।
बीपीकेपी केन्द्र, कहां और कैसे काम कर रहे हैं?
केंद्र सरकार ने बीपीकेपी केन्द्र आठ राज्यों—छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, आंध्रा प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, और तमिलनाडु—में स्थापित किए हैं। ये केन्द्र करीब चार लाख हेक्टेयर जमीन पर नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। देश के इन आठ राज्यों में एक साथ काम चल रहा है, और तीन साल में एक करोड़ किसानों को इस योजना से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 10,000 जैव संसाधन इनपुट केन्द्र बनाने की योजना भी तेजी से आगे बढ़ रही है। ये केन्द्र किसानों को ट्रेनिंग, सर्टिफिकेशन, और बाजार से जोड़ने में मदद करेंगे, जिससे ऑर्गेनिक डेयरी का दायरा और व्यापक होगा।
ऑर्गेनिक डेयरी से लाभ
ऑर्गेनिक डेयरी का कारोबार शुरू करने के लिए बीपीकेपी से जुड़ें और अपने पशुओं को ऑर्गेनिक चारा खिलाना शुरू करें। एक पशु से 4-5 लीटर दूध प्रतिदिन और घी की ऊंची कीमत से मासिक 5,200-10,600 रुपये का शुद्ध लाभ संभव है। भेड़-बकरी के दूध को भी ऑर्गेनिक ब्रांड बनाकर बेचा जा सकता है, जो नए बाजार खोल सकता है। अगले साल इस फसल को रोटेशन में शामिल करें और जैविक खाद का इस्तेमाल बढ़ाएँ। यह न सिर्फ आपकी आय बढ़ाएगा, बल्कि गाँव की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को भी मजबूत करेगा।
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