भारत में किसानों की हालत सुधारने और खेती को मज़बूत करने के लिए केंद्र सरकार कई योजनाएँ चला रही है। लेकिन ये योजनाएँ खेतों तक कितनी पहुँच रही हैं, ये जानने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने ‘लैब टू लैंड’ के तहत ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ चलाया। 29 मई से 12 जून 2025 तक चले इस अभियान में वैज्ञानिकों ने गाँव-गाँव जाकर किसानों से बात की और उनकी समस्याएँ समझीं।
इसकी एक विस्तृत रिपोर्ट हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री के सामने रखी गई। इस रिपोर्ट में बताया गया कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-किसान) योजना ने किसानों को सबसे ज्यादा फायदा पहुँचाया, लेकिन दूसरी कई योजनाएँ अभी भी ज़्यादातर किसानों तक नहीं पहुँच पा रही हैं। आइए, इन योजनाओं की जमीनी हकीकत और चुनौतियों को समझते हैं।
PM-किसान: किसानों की सबसे बड़ी साथी
लैब टू लैंड अभियान की रिपोर्ट के मुताबिक, PM-किसान योजना देशभर के किसानों के लिए सबसे ज्यादा मददगार साबित हुई है। इस योजना से 81.6% किसानों को सीधा फायदा मिला है। हर साल 6,000 रुपये की राशि तीन किस्तों में किसानों के बैंक खातों में डालने वाली ये योजना छोटे और सीमांत किसानों के लिए वरदान बनी है। इससे वे बीज, खाद, या छोटे-मोटे खर्चों का इंतज़ाम आसानी से कर पाते हैं।
इसकी सबसे बड़ी ताकत है इसका प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) सिस्टम, जो पैसे को बिना बिचौलियों के सीधे किसानों तक पहुँचाता है। ये योजना न सिर्फ किसानों की आर्थिक मदद करती है, बल्कि गाँवों की अर्थव्यवस्था को भी मज़बूत करती है। इसकी सफलता बाकी योजनाओं के लिए एक नज़ीर है कि सरल और पारदर्शी तरीके से मदद कैसे पहुँचाई जा सकती है।
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मृदा स्वास्थ्य कार्ड: मिट्टी की सेहत की चिंता
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (SHC-NMSA) का मकसद है किसानों को उनकी मिट्टी की जाँच करके सही खाद और पोषक तत्वों के इस्तेमाल की सलाह देना। लेकिन इस योजना से सिर्फ 29.9% किसानों को ही फायदा मिल पाया है। इसका मतलब है कि अभी भी बहुत सारे किसानों को मिट्टी की सेहत के महत्व और इस कार्ड के फायदों की जानकारी नहीं है। गाँवों में जागरूकता की कमी और जाँच की सुविधाओं का अभाव इसकी राह में रुकावट बने हुए हैं। अगर किसानों को ये कार्ड आसानी से मिल जाए, तो वे कम खर्च में बेहतर फसल उगा सकते हैं।
फसल बीमा: प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) का उद्देश्य है प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा या कीटों से फसल खराब होने पर किसानों को आर्थिक मदद देना। लेकिन इस योजना का लाभ सिर्फ 24.8% किसानों तक पहुँचा है। दावों की जटिल प्रक्रिया और जानकारी का अभाव इसकी कम पहुँच के बड़े कारण हैं। अगर बीमा प्रक्रिया को और सरल किया जाए और गाँवों में इसके बारे में ज़्यादा प्रचार हो, तो ये योजना किसानों के लिए और कारगर हो सकती है।
सिंचाई योजना: हर खेत को पानी
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) का नारा है ‘हर खेत को पानी’। ये योजना खेतों में पानी की उपलब्धता बढ़ाने और सूक्ष्म सिंचाई (जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर) को बढ़ावा देने के लिए है। लेकिन अभी तक सिर्फ 12.8% किसानों को इसका फायदा मिला है। देश के कई हिस्सों में सिंचाई की सुविधाएँ सीमित हैं, और छोटे-सीमांत किसानों को नई तकनीकों तक पहुँचने में मुश्किल होती है। इस योजना को और प्रभावी बनाने के लिए गाँवों में और संसाधन और प्रशिक्षण की ज़रूरत है।
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प्राकृतिक खेती: पर्यावरण के लिए ज़रूरी
परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) और प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन (NMNF) का मकसद है जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना। ये योजनाएँ पर्यावरण को बचाने और टिकाऊ खेती के लिए बहुत ज़रूरी हैं। लेकिन इनका लाभ सिर्फ 10.2% किसानों तक पहुँचा है। रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ने के लिए किसानों को ज़्यादा प्रशिक्षण, समर्थन और बाज़ार की ज़रूरत है। गाँवों में जागरूकता बढ़ाने से इसकी पहुँच को और बेहतर किया जा सकता है।
मशीनीकरण: खेती को आसान बनाने की चुनौती
कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (SMAM) का लक्ष्य है खेती में मशीनों का इस्तेमाल बढ़ाकर मेहनत कम करना और दक्षता बढ़ाना। लेकिन इस योजना से सिर्फ 8.7% किसानों को फायदा मिला है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए मशीनें खरीदना महँगा है, और किराए पर मशीनें लेने की सुविधाएँ भी हर जगह उपलब्ध नहीं हैं। इस योजना को और प्रभावी बनाने के लिए मशीनों को किफायती और सुलभ करना होगा।
तिलहन मिशन: आत्मनिर्भरता की राह
राष्ट्रीय खाद्य तिलहन मिशन (NMEO) का मकसद है तिलहन की खेती बढ़ाकर भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाना। लेकिन अभी सिर्फ 4.7% किसानों को इसका लाभ मिला है। बेहतर बीज, तकनीक और बाज़ार से जोड़ने की कमी इसकी धीमी रफ्तार का कारण है। किसानों को तिलहन की खेती के लिए प्रोत्साहन और सुविधाएँ बढ़ाने की ज़रूरत है।
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कृषि अवसंरचना: भविष्य की नींव
कृषि अवसंरचना कोष (AIF) का उद्देश्य है खेती से जुड़े ढाँचे जैसे गोदाम और कोल्ड स्टोरेज को बेहतर करना। लेकिन इस योजना से सिर्फ 3.0% किसानों को फायदा मिला है। इसके बारे में जागरूकता की कमी और जटिल प्रक्रियाएँ इसकी राह में रुकावट हैं। अगर इस कोष तक किसानों की पहुँच आसान हो, तो उनकी फसल को सही दाम और भंडारण की सुविधा मिल सकती है।
जागरूकता और सरलता ज़रूरी
लैब टू लैंड संकल्प अभियान की रिपोर्ट बताती है कि PM-किसान जैसी सीधी और पारदर्शी योजनाएँ किसानों तक आसानी से पहुँच रही हैं। लेकिन बाकी योजनाओं की कम पहुँच से साफ है कि जागरूकता की कमी, जटिल प्रक्रियाएँ और छोटे-सीमांत किसानों की सीमित भागीदारी बड़ी चुनौतियाँ हैं। सरकार को चाहिए कि गाँवों में जागरूकता अभियान चलाएँ, योजनाओं की प्रक्रियाएँ आसान करें और छोटे किसानों को प्राथमिकता दें।
ICAR के इस अभियान ने 1.34 करोड़ किसानों से सीधा संवाद किया, जिसमें वैज्ञानिकों ने खेतों में जाकर उनकी समस्याएँ सुनीं और सुझाव दिए। इससे साफ है कि वैज्ञानिकों और किसानों का सीधा संवाद खेती को बेहतर बनाने में अहम है। अगर इन योजनाओं को और सुलभ बनाया जाए, तो किसानों की आय बढ़ेगी और भारत का कृषि क्षेत्र और मज़बूत होगा।
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