पूसा सरसों-32 वैरायटी, 28 क्विंटल रिकॉर्ड उपज और बेहतर तेल गुणवत्ता, सिर्फ 132 दिन में तैयार

पूसा सरसों-32: सितंबर का महीना आते ही उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्यों में धान की कटाई शुरू हो जाती है। कई किसान धान के बाद अपने खेतों को खाली छोड़ देते हैं या आलू की खेती करते हैं। लेकिन यह समय सरसों की बुवाई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। सरसों एक ऐसी तिलहनी फसल है, जिसकी बाजार में हमेशा मांग रहती है।

कम लागत और कम समय में यह फसल अच्छा मुनाफा दे सकती है। खासकर पूसा सरसों-32 जैसी उन्नत किस्म की बुवाई करके किसान 132 से 145 दिनों में 27-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार पा सकते हैं। यह किस्म न सिर्फ रोग-रोधी है, बल्कि खेती को आसान और फायदेमंद बनाती है।

पूसा सरसों-32 की खासियत

पूसा सरसों-32 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विकसित किया है। यह किस्म खास तौर पर उन इलाकों के लिए बनाई गई है, जहां पानी और संसाधनों की कमी है। इसकी बुवाई सितंबर के आखिरी हफ्ते से लेकर 15 अक्टूबर तक की जा सकती है। यह किस्म राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के मैदानी इलाकों में अच्छा प्रदर्शन करती है। इस किस्म के पौधों का तना लगभग 73 सेंटीमीटर लंबा होता है और फलियों का घनत्व अच्छा होता है, जिससे ज्यादा दाने मिलते हैं। सही देखभाल और खेत की तैयारी के साथ यह किस्म 28 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर पैदावार दे सकती है, जो सामान्य किस्मों से कहीं बेहतर है।

खेत की तैयारी और बुवाई का तरीका

धान की कटाई के बाद खेत को खाली छोड़ने की बजाय उसकी अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खेत को भुरभुरा करने के लिए दो से तीन बार जुताई करें और जैविक खाद डालें। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और सरसों के पौधे मजबूत होते हैं। पूसा सरसों-32 की बुवाई के लिए बीज की मात्रा और सही समय का ध्यान रखना जरूरी है। इस किस्म को बोने के लिए प्रति हेक्टेयर 4-5 किलोग्राम बीज काफी हैं। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि बीज अच्छे से अंकुरित हो सकें। यह किस्म रोगों से लड़ने में सक्षम है, लेकिन फिर भी कीटों और रोगों से बचाव के लिए समय-समय पर निगरानी जरूरी है।

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रोग-रोधी और मुनाफे

पूसा सरसों-32 की सबसे बड़ी खासियत है कि यह रोग-रोधी है। सामान्य सरसों की फसलों में कई बार रोग और कीटों की वजह से नुकसान होता है, लेकिन यह किस्म ऐसी समस्याओं से काफी हद तक बची रहती है। इसके अलावा, यह 132 से 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, यानी किसान कम समय में फसल बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं। बाजार में सरसों की मांग हमेशा बनी रहती है, चाहे वह तेल के लिए हो या अन्य उपयोग के लिए। अच्छी देखभाल, जैसे समय पर सिंचाई और खाद का इस्तेमाल, से पैदावार को और बढ़ाया जा सकता है।

किसानों के लिए सलाह

किसानों को सलाह है कि वे पूसा सरसों-32 जैसे उन्नत बीजों का चयन करें और बुवाई से पहले स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें। वहां से बीज की गुणवत्ता और बुवाई के सही तरीके की जानकारी मिल सकती है। साथ ही, सरकार की ओर से बीज और खेती के लिए सब्सिडी भी उपलब्ध है, जिसका लाभ उठाया जा सकता है। सही समय पर बुवाई और देखभाल से सरसों की खेती न सिर्फ खेत को व्यस्त रखेगी, बल्कि आपकी जेब भी भर सकती है।

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  • Shashikant

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