मध्य भारत के किसानों के लिए ICAR-IARI इंदौर ने पूसा ओजस्वी HI-1650 नाम की नई गेहूँ किस्म तैयार की है। यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और झांसी संभाग के लिए खास है। समय पर बुवाई करने पर यह 115 से 120 दिन में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 55 से 70 क्विंटल तक फसल दे सकती है। औसत उपज 57 क्विंटल और अच्छी देखभाल में 73 क्विंटल तक पहुँच सकती है। इसके मोटे चमकदार दाने और लीफ रस्ट व स्टेम रस्ट जैसी बीमारियों से मुक्ति इसे खास बनाती है। रबी 2025 में यह आपके खेत में बंपर मुनाफा ला सकती है।
भारत में गेहूँ की खेती का इतिहास पुराना है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, रोगों और मिट्टी की समस्या से किसान परेशान हैं। ICAR-IARI ने ऐसी किस्में विकसित की हैं जो इन चुनौतियों से लड़ने में मदद करती हैं। पूसा ओजस्वी इसी का एक उदाहरण है, जो मध्य क्षेत्र की मिट्टी और मौसम के हिसाब से बनी है। यह किस्म न सिर्फ उपज बढ़ाती है, बल्कि दानों की क्वालिटी भी शानदार रखती है। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में जहाँ गेहूँ की खेती 65 लाख हेक्टेयर में होती है, यह किस्म किसानों की आय दोगुनी करने का साधन बन सकती है। राजस्थान के सूखा प्रभावित इलाकों में भी यह कम पानी में अच्छा प्रदर्शन करती है।
पूसा ओजस्वी HI-1650 किस्म की खासियत
पूसा ओजस्वी HI-1650 को ICAR-IARI के इंदौर क्षेत्रीय केंद्र ने 2023 में लॉन्च किया। अधिसूचना नंबर 1056(E), 6 मार्च 2023 के तहत इसे मंजूरी मिली। यह किस्म मध्य क्षेत्र के समय पर बुवाई, अच्छी उर्वरता और सिंचित खेतों के लिए डिजाइन की गई है। ICAR-IARI ने पिछले सालों में 6 नई गेहूँ किस्में विकसित की हैं, जिनमें पूसा ओजस्वी, पूसा जग्रती (HI-1653), पूसा आदि (HI-1654) और पूसा हर्षा (HI-1655) शामिल हैं।
ये सभी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान के कोटा-उदयपुर मंडल के लिए हैं। पूसा ओजस्वी का विकास पारंपरिक चयन और आधुनिक ब्रिडिंग तकनीकों से हुआ है।वैज्ञानिकों ने इसमें रोग प्रतिरोधी जीन डाले हैं, जो लीफ रस्ट और स्टेम रस्ट से बचाते हैं। पौधे की ऊँचाई 90 से 95 सेंटीमीटर रखी गई है, जो इसे हवा और बारिश में मजबूत बनाती है। इसमें 42.7 ppm जिंक है, जो दानों को पौष्टिक बनाता है।
यह किस्म मध्य क्षेत्र की गर्मी और कम पानी को झेल लेती है। ICAR-IARI इंदौर ने इसे 2022 में ट्रायल किया, जहाँ NEPZ और NWPZ में भी यह चेक वैरायटी से बेहतर साबित हुई। मध्य प्रदेश में गेहूँ की खेती 65 लाख हेक्टेयर में होती है, और यह किस्म उत्पादकता को 20% बढ़ा सकती है। राजस्थान के सूखा इलाकों में भी यह 5.98 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज दे सकती है। गुजरात में जहाँ गेहूँ की खेती 5 लाख हेक्टेयर में है, यह किस्म पानी की कमी को कम करेगी।
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दाने और बाली की ताकत
पूसा ओजस्वी HI-1650 की बाली मोटी और मजबूत होती है, जिससे फसल गिरने की समस्या नहीं आती। हर बाली में 70 से 80 दाने बनते हैं, जो बंपर उत्पादन का राज है। दाने मोटे, कठोर और चममकदार सुनहरे रंग के होते हैं। हजार दाने का वजन 45 से 50 ग्राम और हेक्टोलिटर वजन 82 किलो होता है, जो इसे ए-ग्रेड क्वालिटी देता है। इससे बनी रोटी नरम और स्वादिष्ट होती है। बिस्किट और प्रोसेसिंग उद्योग में भी इसकी मांग बढ़ रही है। मध्य प्रदेश के इंदौर, रतलाम और छिंदवाड़ा जिलों में किसानों ने बताया कि इसके दाने पुरानी किस्मों से 15% बड़े और चमकदार होते हैं।
राजस्थान के कोटा मंडल में जहाँ गेहूँ का भाव 2500-3000 रुपये प्रति क्विंटल रहता है, यह किस्म दाने की क्वालिटी से 200-300 रुपये ज्यादा भाव दिला सकती है। गुजरात में जहाँ गेहूँ की खेती 5 लाख हेक्टेयर में होती है, इसके दाने प्रोसेसिंग के लिए बेस्ट हैं। छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए यह किस्म जिंक से भरपूर दाने देती है, जो परिवार के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। ICAR के ट्रायल में यह किस्म अन्य वैरायटी से 20% बेहतर साबित हुई। दाने का उच्च वजन इसे बाजार में महंगा बनाता है।
बुवाई और खेत की तैयारी
पूसा ओजस्वी HI-1650 मध्यम से अच्छी उर्वर मिट्टी में अच्छी फसल देती है। बुवाई का सही समय 1 से 25 नवंबर तक है। प्रति हेक्टेयर 100 किलो बीज बोएँ और पंक्तियों के बीच 20 सेंटीमीटर दूरी रखें। खेत को अच्छे से जोतें और मिट्टी भुरभुरी करें। बीज को थायरम या कैप्टान (3 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें, ताकि फफूंद रोग न हों। प्रमाणित बीज कृषि केंद्र से लें।
मध्य प्रदेश के इंदौर क्षेत्र में जहाँ मिट्टी दोमट है, यह किस्म शानदार फसल देती है। राजस्थान के उदयपुर मंडल में कम पानी वाली मिट्टी में भी यह अच्छी बढ़ती है। गुजरात के किसान 1 नवंबर तक बोकर 20% ज्यादा उपज पा सकते हैं। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में जहाँ मिट्टी लाल-पीली है, अच्छी जुताई से जड़ें मजबूत होती हैं। बुवाई के समय मिट्टी में नमी रखें। देर होने पर उपज 10-15% कम हो सकती है।
खाद और सिंचाई का सही तरीका
खाद में संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश डालें। जिंक सप्लीमेंट जरूर मिलाएँ, क्योंकि इसमें जिंक की मांग है। बुवाई के समय आधी नाइट्रोजन और पूरा फॉस्फोरस-पोटाश डालें। बाकी नाइट्रोजन दो हिस्सों में पहली सिंचाई पर और दाना भरने की अवस्था में। चार से पाँच सिंचाइयाँ काफी हैं। बूटिंग और दाना भरने की अवस्था पर खास ध्यान दें। यह किस्म कम पानी में भी अच्छी फसल देती है, इसलिए सूखे इलाकों के लिए भी अच्छी है।
मध्य प्रदेश के रतलाम में जहाँ पानी की कमी है, 4 पानी में यह 60 क्विंटल उपज देती है। राजस्थान के कोटा में जहाँ मिट्टी रेतीली है, जिंक सप्लीमेंट से दाने की क्वालिटी बढ़ती है। गुजरात के किसान 3-4 पानी में भी 55 क्विंटल पा सकते हैं। छत्तीसगढ़ में जहाँ बारिश अनियमित है, नाइट्रोजन का सही समय पर डालना जरूरी है। ज्यादा नाइट्रोजन से पौधा लंबा हो जाएगा, लेकिन बाली कमजोर पड़ सकती है। मिट्टी का टेस्ट करवाकर खाद की मात्रा तय करें।
रोग नियंत्रण और फसल की सुरक्षा
पूसा ओजस्वी HI-1650 में लीफ रस्ट और स्टेम रस्ट से बचाव के लिए खास जीन डाले गए हैं। पौधे की मजबूत संरचना तेज हवा या बारिश में भी गिरने नहीं देती। फिर भी पत्तियों की नियमित जाँच करें। अगर धब्बे दिखें, तो कॉपर आधारित दवा का छिड़काव करें। खेत में पानी न रुके, जल निकासी का ध्यान रखें। फसल चक्र अपनाएँ, ताकि रोग कम हों।
मध्य प्रदेश के इंदौर में जहाँ रस्ट की समस्या बढ़ रही है, यह किस्म 100% बचाव करती है। राजस्थान के उदयपुर में सूखे के कारण रोग बढ़ते हैं, लेकिन इसके जीन मजबूत हैं। गुजरात में जहाँ तापमान ऊँचा रहता है, यह गर्मी सहन करती है। छत्तीसगढ़ के किसान रोग जाँच से 10% नुकसान बचा सकते हैं। ICAR के ट्रायल में यह अन्य किस्मों से 20% बेहतर साबित हुई।
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कितनी देती है उपज
ट्रायल में पूसा ओजस्वी HI-1650 ने औसत 57 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और अधिकतम 73 क्विंटल उपज दी। इंदौर, रतलाम और छिंदवाड़ा के किसानों ने प्रति बीघा 15 से 18 क्विंटल फसल पाई। किसान कहते हैं कि समय पर बुवाई और सही खाद से यह पुरानी वैरायटी से 20 प्रतिशत ज्यादा फसल देती है। धीरे-धीरे यह मध्य भारत की पहली पसंद बन रही है। मध्य प्रदेश में जहाँ गेहूँ की खेती 65 लाख हेक्टेयर में होती है, यह किस्म उत्पादकता 5.98 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ा सकती है।
राजस्थान के कोटा मंडल में किसानों का कहना कि इसके दाने 15% बड़े होते हैं। गुजरात में 5 लाख हेक्टेयर गेहूँ क्षेत्र में यह कम पानी में 55 क्विंटल देती है। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में जिंक से भरपूर दाने परिवार के स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं। ICAR के 56 स्थानों पर 3 साल के ट्रायल में यह चेक वैरायटी से बेहतर रही। किसानों का अनुभव है कि इसके दाने बाजार में 200-300 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा भाव पाते हैं।
किसानों के लिए फायदे
पूसा ओजस्वी HI-1650 की उपज 55 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। यह रस्ट से मुक्त है। दाने मोटे और चमकदार हैं। कम पानी में भी अच्छी फसल देती है। 115 दिन में तैयार हो जाती है। रोटी और बिस्किट बनाने में उपयुक्त है। मध्य भारत में जहाँ गेहूँ का भाव 2500-3000 रुपये प्रति क्विंटल रहता है, यह किस्म 20% ज्यादा मुनाफा दे सकती है।
राजस्थान के सूखे इलाकों में कम पानी से 60 क्विंटल उपज का सौदा है। गुजरात में प्रोसेसिंग उद्योग में इसके दाने की डिमांड बढ़ रही है। छत्तीसगढ़ के किसान जिंक से भरपूर दाने से परिवार को पौष्टिक भोजन दे सकते हैं। ICAR के अनुसार, यह किस्म जलवायु परिवर्तन के दौर में भरोसेमंद है।
ध्यान रखने वाली बातें
प्रमाणित बीज ही लें। दिसंबर के बाद बुवाई करने से उपज कम हो सकती है। ज्यादा नाइट्रोजन डालने से पौधा लंबा हो जाएगा, लेकिन बाली कमजोर पड़ सकती है। छोटे खेत में पहले आजमाएँ। स्थानीय कृषि केंद्र से सलाह लें। मध्य प्रदेश में मिट्टी टेस्ट करवाकर जिंक डालें। राजस्थान में सूखे के समय पानी का संतुलन रखें। गुजरात में गर्मी सहन करने के लिए छाया नेट का इस्तेमाल करें। छत्तीसगढ़ में रोग जाँच से 10% नुकसान बचा सकते हैं।
पूसा ओजस्वी HI-1650 से बंपर कमाई
मध्य भारत के किसान अगर नई गेहूँ किस्म बोना चाहते हैं, तो पूसा ओजस्वी सही चॉइस है। उच्च उपज, रोग प्रतिरोध और मोटे दाने इसे खास बनाते हैं। रबी सीजन में 1 से 25 नवंबर तक बोएँ और कम पानी में बंपर फसल पाएँ। ICAR-IARI की यह किस्म आपकी खेती को नई ताकत देगी।
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