रबी की बुवाई जोरों पर है और खेतों में गेहूं, सरसों, चना बोने का सिलसिला चल रहा है। लेकिन इस बार यूरिया और डीएपी जैसी खादों की मांग इतनी तेज हो गई है कि सबकी चिंता बढ़ गई है। नवंबर के पहले हफ्ते में ही यूरिया की बिक्री 6.18 लाख टन पहुंच गई, जो पिछले साल के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा है। डीएपी की बिक्री भी 1.43 लाख टन से कूदकर 3.49 लाख टन हो गई।
पोटाश और कांप्लेक्स उर्वरकों की डिमांड में भी उछाल आया है। उद्योग वाले कहते हैं कि स्टॉक अभी ठीक है, लेकिन कृषि विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि मंत्रालयों के बीच तालमेल न होने से कमी हो सकती है। याद है ना, पिछले खरीफ में धान-मक्के के रकबे बढ़ने से यही दिक्कत हुई थी।
बिक्री में उछाल के पीछे रकबे की बढ़ोतरी
इस सीजन का रकबा 10 नवंबर तक 27 प्रतिशत बढ़कर 130 लाख हेक्टेयर हो गया, जबकि पिछले साल यह 102 लाख था। गेहूं का रकबा तो 10 लाख से सीधे 22.7 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया। कारण? पिछले साल अच्छे दाम मिले, तो किसान भाई ने जोर लगाया। लेकिन ज्यादा रकबे का मतलब ज्यादा खाद की जरूरत। नवंबर-दिसंबर में मांग चरम पर होगी, क्योंकि बुवाई के बाद पहली खुराक यूरिया की पड़ती है। पंजाब जैसे राज्यों में तो डीएपी पहले से ही कम पड़ रही है, कीमतें ऊंची हो गई हैं। किसान भाई सवाल उठा रहे हैं कि क्या फिर लाइनें लगानी पड़ेंगी? विशेषज्ञ कहते हैं कि फसल रुझानों का पहले से आकलन हो तो ऐसी दिक्कत न हो।
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स्टॉक और मांग का हिसाब
1 नवंबर की स्थिति देखें तो यूरिया का स्टॉक 50.54 लाख टन था, जबकि नवंबर की अनुमानित मांग 43.54 लाख टन। डीएपी का स्टॉक 19.05 लाख टन है, मांग 17.19 लाख टन। मतलब, कागजों पर सब मैनेज हो रहा है। लेकिन उद्योग सूत्रों का कहना है कि यूरिया को छोड़कर बाकी खादों का स्टॉक नवंबर की डिमांड झेल लेगा, क्योंकि नया उत्पादन और आयात आ रहा है। फिर भी, अगर बुवाई और तेज हुई तो दिक्कत हो सकती है।
सरकार का दावा है कि कृषि और उर्वरक मंत्रालय मिलकर सप्लाई चेन को मजबूत कर रहे हैं। अप्रैल से अब तक खुदरा दुकानों और डीलरों पर 3,17,054 छापे मारे गए हैं, ताकि कालाबाजारी न हो। यह संख्या बताती है कि निगरानी सख्त है, लेकिन किसान भाई सतर्क रहें।
सरकारी प्लान और विशेषज्ञ सलाह
उर्वरक मंत्रालय का कहना है कि इस सीजन में खाद की कोई कमी नहीं होगी। वे राज्यवार डिमांड का आकलन कर रहे हैं और पोर्ट्स पर आयात तेज किया है। लेकिन कृषि विशेषज्ञों की राय अलग है वे कहते हैं कि मंत्रालयों में बेहतर समन्वय न हो तो पिछले साल जैसी स्थिति दोहराई जा सकती है। सलाह यही है कि किसान भाई ज्यादा रकबे पर कम खाद वाली फसलें चुनें या जैविक विकल्प अपनाएं। उदाहरण के लिए, गोबर खाद या वर्मीकंपोस्ट से 20-30 प्रतिशत रसायनिक खाद की जरूरत कम हो सकती है। पंजाब-हरियाणा जैसे इलाकों में डीएपी की किल्लत पहले से दिख रही है, तो लोकल डीलरों से पहले ही स्टॉक बुक कर लें।
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