Sanwa Ki Kheti: किसान भाइयो, साँवा, जिसे बार्नयार्ड मिलेट या सनवा के नाम से भी जाना जाता है, भारत की प्राचीन और पोषक तत्वों से भरपूर फसल है। यह खरीफ सीजन की मोटी अनाज की फसल है, जो कम पानी और कम देखभाल में उगती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, और हरियाणा के गाँवों में साँवा की खेती सूखा प्रतिरोधी और कम लागत वाली फसल के रूप में लोकप्रिय है। सिद्धार्थनगर जैसे क्षेत्रों में, जहाँ पानी की कमी और बाढ़ दोनों चुनौतियाँ हैं, साँवा किसानों के लिए वरदान है। इसका चारा पशुओं के लिए उपयोगी है, और अनाज बाजार में अच्छी कीमत देता है। इस लेख में हम साँवा की खेती की पूरी प्रक्रिया सरल भाषा में बताएंगे।
साँवा: प्रकृति का तोहफा, किसान की ताकत
साँवा की फसल को भारत में हजारों सालों से उगाया जा रहा है। यह सूखा प्रतिरोधी फसल असिंचित क्षेत्रों में आसानी से उगती है। इसका अनाज प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है, जिसकी मांग शहरी बाजारों में बढ़ रही है। साँवा का चारा पशुओं के लिए पौष्टिक है, जिससे किसान दोहरा लाभ कमा सकते हैं। साँवा की खेती से किसानोको धान और गेहूँ से ज्यादा मुनाफा हुआ है। प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल उपज के साथ, साँवा की खेती कम लागत में 40,000-60,000 रुपये का मुनाफा दे सकती है। यह फसल छोटे किसानों के लिए कम जोखिम और अधिक आय का रास्ता खोलती है।
सही मिट्टी और खेत की तैयारी: मजबूत शुरुआत
साँवा की खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट, या हल्की क्षारीय मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी का पीएच 6.5-7.5 होना चाहिए। सिद्धार्थनगर और बिहार की दोमट मिट्टी इसके लिए आदर्श है। खेत की तैयारी के लिए 2-3 बार जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। प्रति हेक्टेयर 8-10 टन गोबर की खाद डालें, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाए। जलभराव से बचने के लिए खेत में अच्छा जल निकास सुनिश्चित करें। बुवाई से पहले मिट्टी का परीक्षण अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से कराएं। बिहार के एक किसान ने जैविक खाद का उपयोग कर साँवा की उपज को 10% बढ़ाया। खेत की सही तैयारी अच्छी फसल की नींव है।
बीज और बुवाई: सही समय, सही तरीका
साँवा की बुवाई खरीफ सीजन में जून के अंत या जुलाई की शुरुआत में करें। उन्नत किस्में जैसे VL-172, PRJ-1, या CO-2 चुनें, जो अधिक उपज देती हैं। प्रति हेक्टेयर 8-10 किलो बीज पर्याप्त है। बीज को बुवाई से पहले थीरम (3 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें, ताकि कवक रोगों से बचाव हो। बुवाई के लिए कतारों में 25-30 सेंटीमीटर की दूरी रखें और बीज को 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में किसान कतार बुवाई से 15% अधिक उपज पाते हैं। बारिश शुरू होने पर बुवाई करें, ताकि प्राकृतिक नमी का लाभ मिले। सही बीज और समय फसल की सफलता की कुंजी है।
सिंचाई और जल प्रबंधन: कम पानी, अधिक फायदा
साँवा की फसल को सामान्यतः सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि यह वर्षा आधारित खरीफ फसल है। लेकिन अगर लंबे समय तक बारिश न हो, तो फूल आने की अवस्था (बुवाई के 40-50 दिन बाद) में एक हल्की सिंचाई करें। जलभराव से बचने के लिए खेत में नालियाँ बनाएं। ड्रिप सिंचाई छोटे किसानों के लिए लागत प्रभावी है, जो पानी की 30% बचत करती है। हरियाणा के एक किसान ने ड्रिप सिंचाई से साँवा की उपज को 12 क्विंटल से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया। कम पानी में अधिक उत्पादन साँवा की खासियत है।
निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण: स्वस्थ फसल का राज
साँवा की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो बार निराई-गुड़ाई करें। पहली निराई बुवाई के 25-30 दिन बाद और दूसरी इसके 15 दिन बाद करें। इस दौरान कमजोर पौधों को हटाकर विरलीकरण करें, ताकि स्वस्थ पौधों को अधिक जगह मिले। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन (1 किलो प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव बुवाई के तुरंत बाद करें। जैविक खेती करने वाले किसान गोबर की खाद और नीम तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) का उपयोग कर सकते हैं। सिद्धार्थनगर के किसानों ने नियमित निराई से खरपतवार को 80% कम किया। स्वस्थ फसल के लिए समय पर देखभाल जरूरी है।
कीट और रोग नियंत्रण: फसल की रक्षा, मुनाफे की गारंटी
साँवा की फसल में शूट फ्लाई और स्टेम बोरर जैसे कीट और ब्लास्ट जैसे रोग लग सकते हैं। शूट फ्लाई से बचने के लिए कार्बोफ्यूरान (1 किलो प्रति हेक्टेयर) का बुवाई के समय उपयोग करें। ब्लास्ट रोग के लिए ट्राइसाइक्लाज़ोल (0.6 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। जैविक उपाय के रूप में नीम तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) का नियमित छिड़काव प्रभावी है। बिहार के किसानों ने नीम तेल से कीटों को 70% तक नियंत्रित किया। नियमित निगरानी करें और अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लें। स्वस्थ फसल मुनाफे की गारंटी देती है।
कटाई और मड़ाई: मेहनत का फल
साँवा की फसल 90-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जब दाने सख्त हो जाएं और पत्तियाँ पीली पड़ने लगें, तो कटाई करें। कटाई के लिए तेज धार वाले हँसिया या मशीन का उपयोग करें। कटाई के बाद फसल को 2-3 दिन धूप में सुखाएं और मड़ाई करें। मैनुअल या थ्रेशर से मड़ाई कर अनाज को अलग करें। प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल उपज सामान्य है, जो उन्नत किस्मों और अच्छी देखभाल से 25 क्विंटल तक हो सकती है। सिद्धार्थनगर के एक किसान ने उन्नत किस्म VL-172 से 22 क्विंटल उपज पाई। सही समय पर कटाई मुनाफा बढ़ाती है।
लागत और मुनाफा: साँवा से समृद्धि
साँवा की खेती की प्रति हेक्टेयर लागत 15,000-20,000 रुपये है, जिसमें बीज (2000 रुपये), खाद (5000 रुपये), और मजदूरी (8000 रुपये) शामिल हैं। बाजार में साँवा की कीमत 2000-3000 रुपये प्रति क्विंटल है। 15-20 क्विंटल उपज से 30,000-60,000 रुपये की कमाई होती है, जिसमें 20,000-40,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा है। बड़ौदा किसान प्राइड योजना से सस्ता ऋण लेकर लागत को और कम किया जा सकता है। साँवा की खेती और सफल कहानियाँ शेयर करें, ताकि दूसरे किसान प्रेरित हों। स्थानीय मंडी बिक्री करें।
आज शुरू करें, समृद्धि पाएं
साँवा की खेती गाँव के छोटे किसानों के लिए कम लागत और अधिक मुनाफे का सुनहरा अवसर है। यह फसल न केवल खाद्य सुरक्षा देती है, बल्कि पशुओं के लिए चारा और बाजार में अच्छी कीमत भी देती है। चाहे आप सिद्धार्थनगर के सूखे खेतों में हों या बिहार के बाढ़ प्रभावित गाँवों में, साँवा आपकी मेहनत को सफल बनाएगा। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से उन्नत बीज और सलाह लें, जैविक खाद का उपयोग करें, और नियमित देखभाल करें। आज ही साँवा की खेती शुरू करें और अपने खेतों को समृद्धि का प्रतीक बनाएं। साँवा सिर्फ एक फसल नहीं, आपके गाँव की खुशहाली का आधार है!
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