सरसों की बुवाई: गुणवत्ता पर जोर दें, प्रमाणित बीजों से किसानों को मिलेगा बंपर उत्पादन

राजस्थान के श्रीगंगानगर जैसे इलाकों में सरसों की खेती किसानों की रीढ़ बन चुकी है। पिछले रबी सीजन में श्रीगंगानगर खंड में ही करीब चार लाख अठावन हजार हेक्टेयर क्षेत्र में इस फसल की बुवाई हुई थी, जो बताता है कि यह नकदी फसल कितनी लोकप्रिय है। लेकिन बाजार में हाइब्रिड बीजों की ऊंची कीमतें, जो आठ सौ से ग्यारह सौ रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई हैं, छोटे किसानों के लिए मुश्किल पैदा कर रही हैं।

ऐसे में राजस्थान राज्य बीज निगम के श्रीगंगानगर संयंत्र ने किसानों को राहत दी है। यहां रबी 2025-26 के लिए आरएच-1706 और आरएच-1425 जैसी उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज मात्र एक सौ दस रुपये प्रति किलो में उपलब्ध हैं। निगम ने दस सौ क्विंटल तक ये बीज तैयार किए हैं, जो किसानों को सस्ते दामों में अच्छी गुणवत्ता वाली फसल का आश्वासन देंगे।

प्रमाणित बीजों के फायदे

प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करने से किसानों को कई फायदे मिलते हैं। ये बीज न केवल रोगों से लड़ने की ताकत रखते हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखते हैं। श्रीगंगानगर जैसे सूखाग्रस्त इलाकों में, जहां पानी की कमी आम समस्या है, ये बीज कम संसाधनों में भी अच्छी उपज देते हैं। संयंत्र प्रबंधक प्रणयक कुमार महला बताते हैं कि इन बीजों से किसान प्रति बीघा आठ क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं, जो पारंपरिक बीजों से कहीं ज्यादा है। साथ ही, बाजार में इनकी मांग बनी रहती है, जिससे किसान अपनी फसल का सही मूल्य पा सकेंगे। यह कदम न केवल किसानों की लागत घटाएगा, बल्कि उनकी आय को भी मजबूत करेगा।

सिंचित और असिंचित क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किस्में

कृषि विभाग ने सरसों की खेती के लिए विभिन्न क्षेत्रों के हिसाब से किस्में सुझाई हैं, ताकि किसान मौसम के अनुसार चुनाव कर सकें। सिंचित क्षेत्रों में आरएच-1706, आरएच-1975, आरएच-0749, आरजीएन-73, आरजीएन-13, आरएच-8812 (लक्ष्मी), पूसा बोल्ड और वरुण जैसी किस्में सबसे अच्छी रहेंगी। ये किस्में मजबूत पौधे पैदा करती हैं और ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं, असिंचित या वर्षा आधारित खेती के लिए आरएच-1424, आरएच-725, आरएच-761, आरजीएन-298, आरजीएन-229 और आरजीएन-48 उपयुक्त हैं। दोनों तरह के क्षेत्रों में आरएच-1424, आरजीएन-236, आरजीएन-145, आरएच-725 और आरएच-761 काम आएंगी। इनमें से कुछ किस्में वर्षा पोषित क्षेत्रों में भी चलती हैं, जहां एक-दो सिंचाई ही काफी होती हैं।

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बुवाई का सही समय और बीज दर

कृषि अनुसंधान अधिकारी जगजीत सिंह संधू की सलाह है कि सरसों की बुवाई का सबसे अच्छा समय पांच से बीस अक्टूबर तक है। अगर बुवाई में थोड़ी देरी हो जाए, तो बीस अक्टूबर से दस नवंबर तक भी की जा सकती है, लेकिन इससे उपज थोड़ी कम हो सकती है। बीज की दर प्रति बीघा छह सौ से सात सौ ग्राम रखें, ताकि पौधे अच्छी दूरी पर उगें और हवा का संचार बना रहे।

सही समय पर बुवाई से फसल मजबूत बनेगी और कीटों का खतरा भी कम होगा। पिछले साल श्रीगंगानगर जिले में दो लाख पचास हजार हेक्टेयर और हनुमानगढ़ में एक लाख सड़सठ हजार हेक्टेयर में सरसों उगाई गई थी, जो इस फसल की क्षमता को दर्शाता है।

एक किस्म पर न करें भरोसा

सेवानिवृत्त उप निदेशक मिलिंद सिंह ने किसानों को आगाह किया है कि पूरी फसल एक ही किस्म के बीज से न बोएं। मौसम की मार, कीटों या रोगों से अगर एक किस्म प्रभावित हो गई, तो पूरा नुकसान हो सकता है। विभिन्न किस्मों का मिश्रण अपनाकर जोखिम कम किया जा सकता है। इसके अलावा, कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ. सतीश कुमार शर्मा ने बताया कि दो नई किस्में बाजार में आई हैं, जिनके बीजों से उत्पादन और बढ़ सकता है। किसानों को सलाह है कि वे नजदीकी कृषि केंद्र से संपर्क कर प्रमाणित बीज लें और जैविक खाद का इस्तेमाल करें। इससे मिट्टी स्वस्थ रहेगी और अगले सीजन के लिए आधार बनेगा।

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  • Shashikant

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