किसानों की मांग पर सख्त हुए शिवराज सिंह: कृषि वैज्ञानिकों को दी गई 3 खास फसलों पर रिसर्च की जिम्मेदारी, जल्द आएगा समाधान

हमारे देश के किसान भाई खेतों में दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन कई बार फसलों में बीमारियाँ और कीट उनकी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विकसित कृषि संकल्प अभियान के जरिए किसानों की पुकार सुनी है। इस अभियान में 60 हजार से ज्यादा गाँवों में वैज्ञानिकों की टीमें पहुंचीं और 1.45 करोड़ किसानों से सीधा संवाद किया। इस दौरान किसानों ने अपनी समस्याएँ बताईं, जैसे सोयाबीन में पीला मोज़ेक रोग, कपास में गुलाबी सुंडी, और गन्ने में लाल सड़न। अब इन समस्याओं को हल करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। यह अभियान खेती को आसान और मुनाफेदार बनाने का एक बड़ा कदम है।

खेत ही असली प्रयोगशाला

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि खेतों में काम करने वाला किसान ही असली वैज्ञानिक है। सरकारी दफ्तरों में बैठकर योजनाएँ बनाना काफी नहीं, बल्कि खेतों में जाकर किसानों की बात सुनना जरूरी है। इसीलिए विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत वैज्ञानिक गाँव-गाँव गए और किसानों के सुझावों को नोट किया। अब इन सुझावों के आधार पर ICAR वैज्ञानिक शोध करेंगे, ताकि किसानों की जमीनी समस्याओं का हल निकल सके। यह लैब टू लैंड की सोच खेती को नई दिशा दे रही है, जिससे किसानों को सीधा फायदा होगा।

सोयाबीन की मुश्किलों पर पहला कदम

किसानों ने बताया कि सोयाबीन की फसल में पीला मोज़ेक रोग सबसे बड़ी परेशानी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह रोग फसल की 50 से 90 फीसदी उपज खराब कर देता है। इससे किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है। इस समस्या को देखते हुए 26 जून को इंदौर के भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक और किसान एक साथ बैठकर इसका हल निकालने की योजना बना रहे हैं। ICAR वैज्ञानिक इस रोग से निपटने के लिए नई तकनीक और बीज विकसित करने पर काम करेंगे, ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सके।

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कपास की फसल को बचाने की जंग

कपास की खेती में गुलाबी सुंडी कीट ने किसानों की नींद उड़ा रखी है। पिछले कुछ सालों में कपास का उत्पादन 336 लाख गांठ से घटकर 306 लाख गांठ हो गया है। बीटी कपास की ताकत कम होने से कीटनाशकों का खर्च बढ़ गया है। इस समस्या को हल करने के लिए कोयंबटूर के केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान में जल्द ही एक खास बैठक होगी। इसमें वैज्ञानिक और किसान मिलकर इस कीट से निपटने के लिए शोध की दिशा तय करेंगे। इसका मकसद कपास की खेती को फिर से फायदेमंद बनाना है, ताकि किसानों की कमाई बढ़े।

गन्ने की लाल सड़न से जंग

गन्ने की खेती में लाल सड़न रोग ने भारी नुकसान पहुंचाया है। इस रोग ने कई अच्छी गन्ना किस्मों को बर्बाद कर दिया, जिससे चीनी मिलों और किसानों को बड़ा झटका लगा है। खासकर Co 0238 जैसी किस्में, जो ज्यादा उपज देती थीं, अब इस रोग की चपेट में हैं। इससे चीनी की रिकवरी भी कम हो रही है। कृषि मंत्री ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है और इसके लिए जल्द ही एक विशेष बैठक बुलाने की बात कही है। ICAR वैज्ञानिकों को इस रोग से निपटने के लिए नई तकनीक और उपाय खोजने का निर्देश दिया गया है, ताकि गन्ना किसानों को राहत मिले।

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ICAR की नई मशीन

किसानों की मेहनत को आसान बनाने के लिए ICAR ने एक खास ट्रैक्टर चालित मशीन बनाई है। यह मशीन ऊँची क्यारियाँ बनाने, ड्रिप लाइन बिछाने, प्लास्टिक मल्च लगाने और बीज बोने का काम एक साथ करती है। पहले इन कामों के लिए 29 मजदूरों की जरूरत पड़ती थी, लेकिन यह मशीन 26 मजदूरों की मेहनत बचा देती है। यह हर घंटे 0.2 हेक्टेयर जमीन पर काम करती है और 1500 रुपये प्रति घंटे के खर्चे से चलती है। इसकी कीमत करीब 3 लाख रुपये है, और सरकार इस पर सब्सिडी भी दे रही है। यह मशीन छोटे और बड़े किसानों के लिए खेती को आसान और सस्ता बना रही है।

सरकार का साथ

विकसित कृषि संकल्प अभियान ने दिखाया कि सरकार किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। कृषि मंत्री ने पुरानी योजनाओं को हटाकर नई और बेहतर योजनाएँ लाने की बात कही है। ICAR की मशीन और वैज्ञानिक शोध के साथ-साथ सरकार सब्सिडी और प्रशिक्षण भी दे रही है। किसान अपने नजदीकी कृषि केंद्र पर जाकर इन योजनाओं की जानकारी ले सकते हैं। यह अभियान न सिर्फ समस्याओं का हल ढूंढ रहा है, बल्कि खेती को मुनाफेदार और टिकाऊ बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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  • Shashikant

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