न ज्यादा लागत न ज्यादा मेहनत, इस जलीय फल की खेती से खुल जाएगी आपकी किस्मत

Singhade Ki Kheti : किसान भाइयों के लिए सिंघाड़ा एक ऐसी फसल है, जो कम मेहनत और कम लागत में जबरदस्त मुनाफा दे सकती है। सिंघाड़ा जिसे वॉटर चेस्टनट या पानीफल भी कहते हैं, तालाबों और गीली जगहों में उगता है। इसके काले-भूरे फल कांटेदार होते हैं, और अंदर का गूदा मीठा-कुरकुरा होता है। ये फसल पानी में उगती है, तो खेत जोतने की जरूरत नहीं। भारत में बिहार, यूपी, बंगाल और मध्य प्रदेश में ये खूब होती है। कम खर्च में बढ़िया कमाई के लिए आइए जानते हैं कि सिंघाड़ा की खेती कैसे करें।

सिंघाड़ा को समझें

सिंघाड़ा एक जलीय पौधा है, जो तालाब, झील या गड्ढों में बढ़ता है। इसके पत्ते पानी की सतह पर तैरते हैं, और फल पानी के नीचे बनते हैं। ये फसल 4-6 महीने में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 20-30 क्विंटल फल दे सकती है। इसमें विटामिन B, C और आयरन होता है, जो सेहत के लिए बढ़िया है। बाज़ार में ताजा सिंघाड़ा 50-80 रुपये किलो और सूखा 200-300 रुपये किलो बिकता है। कम लागत और आसान खेती से ये किसानों के लिए सोने की खान है।

तालाब या जगह तैयार करें

सिंघाड़ा की खेती के लिए तालाब, गड्ढा या खेत में 2-3 फीट गहरा पानी चाहिए। अगर तालाब न हो, तो खेत में मिट्टी की मेड़ बनाकर पानी भरें। मिट्टी दोमट या चिकनी होनी चाहिए, जो पानी रोके। तालाब में 5-10 किलो गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालें, इससे पौधे को खुराक मिलेगी। पानी का बहाव न हो, वरना बीज बह सकते हैं। बारिश से पहले (जून-जुलाई) तालाब तैयार करें, ताकि पानी अपने आप भर जाए। पुराने तालाब में गंदगी साफ करें।

बीज या पौधा कैसे लगाएं

सिंघाड़ा को बीज से उगाया जाता है। पिछले साल के सूखे सिंघाड़े लें, इन्हें 24 घंटे पानी में भिगो दें। फिर तालाब में 2-3 फीट की दूरी पर फेंक दें। बीज अपने आप नीचे बैठकर बढ़ने लगते हैं। प्रति हेक्टेयर 20-25 किलो बीज काफी हैं। अगर पौधे से शुरू करना हो, तो नर्सरी में बीज बोएं और 15-20 दिन के पौधे तालाब में रोपें। बारिश का मौसम (जुलाई-अगस्त) रोपाई के लिए बढ़िया है। 1-2 महीने में पत्तियाँ पानी पर फैलने लगती हैं।

देखभाल का आसान तरीका

सिंघाड़ा की खेती में ज्यादा मेहनत नहीं लगती। पानी 2-3 फीट गहरा रखें—गर्मी में सूखने न दें, जरूरत पड़े तो नहर या बोरवेल से भरें। खरपतवार को हाथ से निकालें, ताकि पौधे को जगह मिले। गोबर की खाद या नीम की खली हर 2 महीने में डालें। कीट कम लगते हैं, मगर मेंढक या मछली से बचाने के लिए जाल लगाएँ। पानी को साफ रखें, गंदगी से फल खराब हो सकते हैं। बाकी प्रकृति खुद काम करती है।

कटाई और मुनाफा

सिंघाड़ा 4-6 महीने में तैयार हो जाता है। अक्टूबर-नवंबर में जब पत्तियाँ पीली पड़ें, तो कटाई शुरू करें। पानी में हाथ डालकर फल तोड़ें या डंडे से निकालें। एक हेक्टेयर से 20-30 क्विंटल फल मिलते हैं। ताजा फल बेचें या सुखाकर स्टोर करें। लागत 10-15 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर आती है, जिसमें बीज, खाद और पानी शामिल है। बिक्री से 1-2 लाख रुपये तक कमाई हो सकती है। सूखे सिंघाड़े का आटा भी बिकता है, जो अतिरिक्त फायदा देता है।

सावधानियाँ

सिंघाड़ा की खेती में खेत जोतने या बड़ी मशीनों की जरूरत नहीं, इसलिए लागत कम है। ये पानी वाली बंजर जमीन का इस्तेमाल करता है। फल और आटा दोनों से कमाई होती है, और ये व्रत-उपवास में खूब बिकता है। मगर पानी की गहराई पर नजर रखें, कम हो तो फल छोटे रहते हैं। मछलियाँ फसल न खाएँ, इसका ध्यान रखें। सही देखभाल से ये जबरदस्त लाभ देता है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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