Soybean Oil Price: सोयाबीन तेल की कीमतों में इस साल 2025 में रिकॉर्ड तेजी देखने को मिली है। इस साल अब तक इसके दाम 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके हैं, जो सोना, चांदी और तांबे जैसी कीमती धातुओं को भी पीछे छोड़ रहा है। दूसरी तरफ, सोयाबीन मील की कीमतें 14 फीसदी नीचे गिरी हैं। आखिर ये बदलाव क्यों हो रहे हैं, और इसका भारतीय किसानों पर क्या असर पड़ेगा?
अमेरिका के नियम से बढ़ी सोयाबीन तेल की मांग
सोयाबीन तेल के दाम में उछाल की सबसे बड़ी वजह है अमेरिका का नया नियम। वहां की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) ने 2026 और 2027 के लिए नवीकरणीय ईंधन मानक (RFS) लागू किया है। इस नियम के तहत बायोफ्यूल बनाने के लिए सोयाबीन तेल की मांग बढ़ गई है। फिच सॉल्यूशंस की इकाई BMI के मुताबिक, अमेरिका में हर साल करीब 25 करोड़ गैलन सोयाबीन तेल अब बायोडीजल में इस्तेमाल होगा।
EPA ने बायोमास-आधारित डीजल (BBD) के लक्ष्य को बढ़ाकर 2026 के लिए 5.61 बिलियन गैलन और 2027 के लिए 5.86 बिलियन गैलन कर दिया है, जो उद्योग के अनुमान 5.25 बिलियन गैलन से ज्यादा है। साथ ही, अमेरिकी सीनेट ने जुलाई 2025 में “वन बिग ब्यूटीफुल बिल एक्ट” पास किया, जिसके तहत सिर्फ अमेरिका, कनाडा या मैक्सिको में बने बायोफ्यूल को ही खास छूट मिलेगी।
इससे सोयाबीन तेल की मांग और बढ़ी है। भारत में भी इसका असर दिख रहा है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, मुंबई में डिगम्ड सोयाबीन तेल की कीमत पिछले साल 1,054 डॉलर प्रति टन थी, जो अब 1,180 डॉलर प्रति टन हो गई है। जून 2025 में इसके वायदा दाम 11.8 फीसदी बढ़े और अब ये 54.55 सेंट प्रति पाउंड पर हैं।
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सोयाबीन मील की कीमतों में गिरावट
सोयाबीन तेल के दाम बढ़ रहे हैं, लेकिन सोयाबीन मील की कीमतें नीचे जा रही हैं। इस साल जनवरी से अब तक इसके दाम 14 फीसदी कम हुए हैं। पिछले साल सोयाबीन मील 489 डॉलर प्रति टन था, जो अब 390 डॉलर प्रति टन पर आ गया है। जून 2025 में इसकी कीमतें 8.1 फीसदी और गिरीं, और अब ये 275.8 सेंट प्रति बुशेल पर हैं। BMI के मुताबिक, इसका बड़ा कारण है चीन में मांग की कमी। चीन ने 2030 तक पशु चारे में सोयाबीन मील की मात्रा 13 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है। साथ ही, अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव ने भी सोयाबीन मील की कीमतों को नीचे धकेला है।
कोबाल्ट ने सोयाबीन तेल को पछाड़ा
सोयाबीन तेल की 30 फीसदी बढ़ोतरी बहुत बड़ी है, लेकिन कोबाल्ट की कीमतों में 37 फीसदी की तेजी ने इसे भी पीछे छोड़ दिया। कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य ने फरवरी 2025 से कोबाल्ट निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे इसके दाम बढ़े हैं। हालांकि, इसका सोयाबीन बाजार से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन ये वैश्विक बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव का एक उदाहरण है।
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किसानों पर क्या होगा असर?
अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) के मुताबिक, बायोफ्यूल की बढ़ती मांग की वजह से सोयाबीन तेल की कीमतें ऊंची बनी रहेंगी। A&N इकोनॉमिक्स के विशेषज्ञ एलन ब्रूग्लर का कहना है कि ज्यादातर सोयाबीन तेल अब अमेरिका में बायोफ्यूल के लिए इस्तेमाल हो रहा है, न कि निर्यात के लिए। इससे सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को फायदा होगा, क्योंकि उनकी फसल के दाम बढ़ सकते हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले साल तक सोयाबीन की कीमत 9 डॉलर प्रति बुशेल से बढ़कर 12 डॉलर तक जा सकती है। लेकिन सोयाबीन मील की गिरती कीमतें उन किसानों के लिए नुकसानदeh हो सकती हैं, जो इसकी बिक्री पर निर्भर हैं।
बाजार का भविष्य क्या कहता है?
BMI का अनुमान है कि 2025-26 में सोयाबीन का उत्पादन 1 फीसदी कम हो सकता है, लेकिन वैश्विक आपूर्ति फिर भी अच्छी रहेगी। 2024-25 में 4.2 मिलियन टन का अधिशेष था, जो अगले साल 5.2 मिलियन टन हो सकता है। इससे कीमतों पर कुछ काबू रहेगा। लेकिन अगर कच्चे तेल के दाम बढ़े, तो सोयाबीन तेल की कीमतें 60 सेंट प्रति पाउंड से भी नीचे जा सकती हैं। किसानों को बाजार की खबरों पर नजर रखनी होगी।
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