Sponge Gourd Cultivation: मान्यवर किसान भाइयों, हमारे यहाँ तोरई की सब्जी तो सबने खाई, लेकिन लूफा वाली तोरई खास है, क्यूँकि ये सूखने पर स्क्रब बन जाती है। इसे नहाने के स्क्रब, बर्तन धोने और सजावट के लिए यूज़ करते हैं, और बाजार में इसकी अच्छी डिमांड है। मार्च का महीना चल रहा है, और अभी इसकी बुआई का सही वक्त है। लूफा की खेती आसान है, कम मेहनत माँगती है और मुनाफा ढेर सारा देती है। आइए, अपनी सहज भाषा में समझें कि लूफा वाली तोरई की खेती कैसे करें और इसका फायदा कैसे उठाएँ।
लूफा तोरई की खासियत और फायदा
लूफा वाली तोरई एक बेल वाली फसल है, जिसे हरी सब्जी के तौर पर खाया जा सकता है और सूखने पर स्क्रब बनाया जाता है। अपने इलाके में इसे उगाने का फायदा ये है कि ये तेजी से बढ़ती है और 3-4 महीने में तैयार हो जाती है। स्क्रब की डिमांड ब्यूटी प्रोडक्ट्स और हस्तशिल्प में बढ़ रही है। एक लूफा 20-50 रुपये में बिकता है, और खेतों में सैकड़ों लूफा आसानी से निकल आते हैं। ये सूखा सहन कर लेती है और मिट्टी को भी नुकसान नहीं पहुँचाती। ये खेती मेहनत को मुनाफे में बदल देती है।
खेत तैयार करने का देसी ढंग
लूफा के लिए दोमट या बलुई मिट्टी बढ़िया रहती है। अपने आसपास खेत को मार्च में जोत लें और प्रति बीघा 5-7 टन गोबर की सड़ी खाद डालें। बेल को सहारा देने के लिए 6-8 फीट ऊँचे बाँस या ट्रेलिस का ढाँचा बनाएँ। ढाँचे के बीच 2-3 फीट चौड़ी मेंड़ बनाएँ और 60-70 सेमी की दूरी पर गड्ढे खोदें। हर गड्ढे में 1-2 किलो वर्मीकम्पोस्ट डालें। पानी की निकासी का ध्यान रखें, ताकि जड़ें न सड़ें। हमारे यहाँ ये तैयारी सस्ती पड़ती है और लूफा को मजबूत शुरुआत देती है। मार्च में ये काम करें, तो बुआई आसान हो जाती है।
बुआई और देखभाल का आसान तरीका
लूफा के बीज नर्सरी या बाजार से लें। प्रति बीघा 1-1.5 किलो बीज काफी है। मार्च में हर गड्ढे में 2-3 बीज 2-3 सेमी गहरा बो दें। 7-10 दिन में अंकुर निकल आएँगे। एक मजबूत पौधा छोड़कर बाकी हटा दें। हर 7-10 दिन में हल्का पानी दें। जब बेल 1 फीट की हो, तो उसे ट्रेलिस पर चढ़ाएँ और धागे से बाँध दें। नीम का पानी हफ्ते में एक बार छिड़कें, ये कीटों से बचाता है। फूल आने पर गोबर का घोल (5 किलो 20 लीटर पानी में) डालें। अपने इलाके में खरपतवार हाथ से हटाएँ। ऐसा करने से फल लंबे और स्वस्थ निकलते हैं।
पैदावार और फायदे का सीधा हिसाब
लूफा की फसल 90-120 दिन में तैयार हो जाती है। एक बीघे से 800-1000 लूफा निकल सकते हैं। हरी तोरई 20-30 रुपये किलो बिकती है, और सूखे स्क्रब 30-50 रुपये पीस। अगर 1000 लूफा स्क्रब बने, तो 30 हज़ार से 50 हज़ार रुपये की कमाई होगी। बीज, खाद और ट्रेलिस का खर्च 5-7 हज़ार रुपये पड़ता है। शुद्ध मुनाफा 25-40 हज़ार रुपये तक हो सकता है। खेतों में इसे जून से सितंबर तक काट सकते हैं। अपने आसपास ऑनलाइन या हस्तशिल्प दुकानों को बेचें, तो दाम और बढ़ेगा। ये कमाई का शानदार ढंग है।
लूफा से खेती को नया रंग दें
अपने इलाके में लूफा की खेती इसलिए खास है, क्यूँकि ये कम जगह में ढेर सारा फायदा देती है। मार्च में बोएँ, तो गर्मी में हरी सब्जी और बाद में स्क्रब तैयार होगा। घर में बहनें कहती हैं कि ताज़ा लूफा सब्जी में स्वाद बढ़ाती है। तो भाइयों, लूफा वाली तोरई की खेती शुरू करें, खेत को नया रंग दें और मुनाफे का मज़ा लें। मेहनत का फल ढेर सारा मिलेगा!
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