किसान भाइयों, में खेती आज भी काफी हद तक मानसून पर निर्भर करती है, लेकिन बदलते जलवायु संकट, अनियमित बारिश और घटते जलस्तर के चलते किसानों को पारंपरिक सिंचाई के तरीकों की जगह आधुनिक तकनीकों की ओर बढ़ना जरूरी हो गया है। ऐसे में स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली एक बेहतरीन विकल्प के रूप में सामने आई है, जो न केवल पानी की बचत करती है, बल्कि फसलों की पैदावार को भी बढ़ाती है। इस लेख में हम इसी तकनीक के बारे में विस्तार से जानेंगे।
इस पद्धति में विशेष पाइप और नोजल के ज़रिए पानी को महीन बूंदों के रूप में खेत में समान रूप से छिड़का जाता है, जिससे यह प्राकृतिक वर्षा जैसा प्रभाव देता है। इस तकनीक से पौधों की जड़ों तक जरूरत भर की नमी पहुंचती है, जिससे जल की बर्बादी नहीं होती। साथ ही, पत्तों और तनों पर पानी जमाव नहीं होता, जिससे पौधे अधिक सूर्य प्रकाश और वायु प्राप्त कर पाते हैं और स्वस्थ रहते हैं।
स्प्रिंकलर सिंचाई की कार्यप्रणाली
स्प्रिंकलर प्रणाली में पंप, पाइपलाइन, स्प्रिंकलर हेड और नोजल होते हैं। पानी का स्रोत जैसे ट्यूबवेल, कुआं, तालाब या नदी से पानी लिया जाता है। इसके बाद पंप की सहायता से पानी को पाइपलाइन में प्रवाहित किया जाता है। पाइपलाइन से जुड़े स्प्रिंकलर हेड और नोजल पानी को बारीक बूंदों में बदलकर पूरे खेत में समान रूप से वितरित करते हैं। यह विधि धीरे-धीरे पानी उपलब्ध कराकर मिट्टी की नमी को संतुलित बनाए रखती है।
स्प्रिंकलर सिंचाई के प्रकार
स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के कई प्रकार होते हैं, जिन्हें किसान अपनी जरूरत और फसल के अनुसार चुन सकते हैं। रोटरी स्प्रिंकलर सिस्टम में घूमने वाले स्प्रिंकलर हेड होते हैं, जो पानी को चारों ओर फैलाते हैं। फिक्स्ड स्प्रिंकलर सिस्टम में पाइप और स्प्रिंकलर हेड एक निश्चित स्थान पर लगे रहते हैं, जिससे यह बागवानी और छोटे खेतों के लिए उपयुक्त होता है। मूवेबल स्प्रिंकलर सिस्टम में पाइप और स्प्रिंकलर को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है, जिससे यह छोटे किसानों के लिए किफायती विकल्प बन जाता है। कुछ फसलों के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम का मिश्रण भी प्रयोग किया जाता है, जो उच्च मूल्य वाली फसलों के लिए अधिक लाभकारी होता है।
स्प्रिंकलर सिंचाई के लाभ
यह विधि परंपरागत सिंचाई के मुकाबले 30-50% तक पानी की बचत करती है। इसे किसी भी प्रकार की भूमि पर उपयोग किया जा सकता है, चाहे वह समतल हो या ढलान वाली। Sprinkler sinchai प्रणाली से फसलों को संतुलित मात्रा में पानी मिलता है, जिससे उनकी वृद्धि बेहतर होती है और उत्पादकता में वृद्धि होती है। इसके माध्यम से खाद और कीटनाशकों का छिड़काव भी किया जा सकता है, जिससे उनकी प्रभावशीलता बढ़ जाती है और लागत में कमी आती है। चूंकि पानी समान रूप से वितरित होता है, इसलिए मिट्टी का क्षरण नहीं होता और खेत की उर्वरता बनी रहती है।
किन फसलों के लिए उपयुक्त है?
स्प्रिंकलर सिंचाई का उपयोग, गोभी, गाजर गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार, चना, अरहर, मूंग, सरसों, सूरजमुखी, टमाटर, मिर्चर जैसी फसलों में किया जाता है। इसके अलावा फूलों की खेती जैसे गुलाब और गेंदा तथा चाय, कॉफी, रबर जैसी कृषि वानिकी फसलों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
लागत और सरकारी सहायता
स्प्रिंकलर सिस्टम (Sprinkler sinchai) की लागत खेत के आकार, पाइपलाइन की लंबाई और पंप की क्षमता पर निर्भर करती है। आमतौर पर 1 हेक्टेयर खेत के लिए 30,000 से 1,50,000 रुपये तक खर्च आता है।
सरकार किसानों को इस तकनीक को अपनाने के लिए अनुदान और सब्सिडी प्रदान करती है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत 50% से 90% तक की सब्सिडी दी जाती है। इसके अलावा, नाबार्ड (NABARD) योजना के तहत सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। अलग-अलग राज्यों में भी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से स्प्रिंकलर सिस्टम पर अनुदान दिया जाता है। किसान इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अपने नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क कर सकते हैं या ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
स्प्रिंकलर सिंचाई (Sprinkler sinchai) अपनाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें
सिंचाई प्रणाली को अपनाने से पहले जल स्रोत की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। खेत के आकार और मिट्टी के प्रकार के अनुसार स्प्रिंकलर सिस्टम का चुनाव करना आवश्यक है। पंप की क्षमता और जलदाब की जांच करनी चाहिए ताकि सिंचाई प्रणाली सुचारू रूप से काम करे। स्प्रिंकलर प्रणाली की नियमित देखभाल और सफाई करना भी आवश्यक है ताकि यह लंबे समय तक प्रभावी बनी रहे।
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