Maize Farming: झारखंड और बिहार के किसानों के लिए मक्के की खेती कमाई का दूसरा सबसे बड़ा जरिया है। खरीफ सीजन शुरू हो चुका है, और टांड़ वाले खेतों में मक्का खूब लहलहाता है। इसका स्वाद इतना खास है कि स्थानीय मंडियों से लेकर बड़े शहरों तक इसकी मांग रहती है। क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, चियांकी के कृषि वैज्ञानिक डॉ. अखिलेश शाह बताते हैं कि सही हाइब्रिड बीज चुनकर किसान सामान्य से दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं। इस खरीफ सीजन में अगर आप मक्के की खेती की सोच रहे हैं, तो सही बीज और थोड़ी मेहनत से अपने खेत को हरा-भरा और जेब को भारी कर सकते हैं।
पलामू का मौसम और मिट्टी मक्के की खेती के लिए किसी वरदान से कम नहीं। यहां की बारिश और टांड़ वाली जमीन मक्के को खास स्वाद और अच्छी पैदावार देती है। डॉ. अखिलेश शाह के मुताबिक, मक्का इस इलाके में अरहर के बाद दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है। बरसात का मौसम मक्के के लिए बिल्कुल सही है, लेकिन बीज का चयन सावधानी से करना जरूरी है। हाइब्रिड बीज चुनने से फसल जल्दी तैयार होती है और रोगों से भी बची रहती है। पलामू और आसपास के इलाकों में कई किसान अब हाइब्रिड बीजों की मदद से अपनी कमाई बढ़ा रहे हैं।
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हाइब्रिड बीज: बंपर फसल का राज
हाइब्रिड बीज मक्के की खेती को मुनाफे का धंधा बना रहे हैं। ये बीज न सिर्फ ज्यादा फसल देते हैं, बल्कि कीटों और मौसम की मार को भी झेल लेते हैं। पलामू में कई किसानों ने हाइब्रिड बीजों से एक हेक्टेयर में 20-25 क्विंटल तक फसल निकाली है। खेत तैयार करते समय मिट्टी को अच्छे से जोतें और गोबर की सड़ी खाद डालें। इससे मिट्टी की ताकत बढ़ती है और फसल को पोषण मिलता है। बुवाई के लिए जुलाई का महीना सबसे सही है, जब बारिश 100 मिमी से ज्यादा हो चुकी हो।
कंचन: जल्दी तैयार, बड़ी फसल
कंचन मक्के की एक शानदार हाइब्रिड किस्म है, जो 80-90 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने बड़े और भारी होते हैं, जो स्थानीय और बड़े बाजारों में अच्छी कीमत लाते हैं। यह किस्म बारिश के मौसम में रोगों से लड़ने में से है और टांड़ वाले खेतों के लिए बिल्कुल मुफीद है। पलामू के किसानों ने इस बीज से अपनी फसल को बढ़ाया है और मुनाफा कमाया है।
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पूसा अगात संकर मक्का-3: रोगमुक्त और भरोसेमंद
पूसा अगात संकर मक्का-3 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने तैयार किया है। यह किस्म कीटों और रोगों से लड़ने में माहिर है। बरसात के अनिश्चित मौसम में भी यह अच्छी फसल देती है। इसके दाने चमकदार और स्वादिष्ट होते हैं, जिसकी मांग मंडियों में खूब रहती है। पलामू में इस किस्म को अपनाने वाले किसानों ने अपनी कमाई में बड़ा इजाफा देखा है।
गंगा-11 और सुआन
गंगा-11 और सुआन मक्के की ऐसी किस्में हैं, जो खरीफ सीजन में बंपर पैदावार देती हैं। गंगा-11 के दाने चमकदार और भारी होते हैं, जो बाजार में 2000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकते हैं। सुआन खासतौर पर टांड़ वाले खेतों के लिए बनाई गई है और 85-90 दिन में तैयार हो जाती है। यह रोगों से बची रहती है और किसानों को अच्छा मुनाफा देती है।
राजेंद्र संकर मक्का और लक्ष्मी
राजेंद्र संकर मक्का-1, राजेंद्र संकर मक्का-2, और लक्ष्मी छोटे किसानों के लिए वरदान हैं। ये किस्में कम समय में अच्छी फसल देती हैं और लागत भी कम लगती है। राजेंद्र संकर मक्का-2 बरसात में रोगमुक्त रहता है। लक्ष्मी के दाने स्वाद में लाजवाब हैं, जिसकी मांग स्थानीय हाट-बाजारों में खूब है। इन बीजों से किसान कम लागत में ज्यादा कमाई कर रहे हैं।
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खेत की तैयारी और देखभाल
मक्के की खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार करें। जुलाई में बुवाई शुरू करें और जल निकासी का इंतजाम रखें, ताकि पानी जमा न हो। गोबर की खाद और नीम की खली डालें। बुवाई के 15-20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें, ताकि खरपतवार न पनपें। कीटों से बचाव के लिए गौमूत्र का छिड़काव करें। अगर फसल में रोग दिखे, तो नजदीकी कृषि केंद्र से सलाह लें।
मक्के की खेती से एक हेक्टेयर में 20-30 क्विंटल फसल निकलती है। बाजार में मक्का 1800-2200 रुपये प्रति क्विंटल बिकता है। यानी एक सीजन में 50 हजार से 1 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। पलामू और आसपास के किसान मक्के को मंडियों और हाट-बाजारों में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
इस खरीफ सीजन में हाइब्रिड बीज जैसे कंचन, गंगा-11, या लक्ष्मी चुनें। मिट्टी की जांच करवाएं, ताकि सही खाद का इस्तेमाल हो। नजदीकी कृषि केंद्र से बीज लें और सरकार की सब्सिडी का फायदा उठाएं। मक्के की खेती से अपने खेत को हरा-भरा करें और जेब को भारी करें।
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