Top 4 Gram varieties: रबी सीजन की शुरुआत हो चुकी है, और चना जैसी प्रोटीन से भरपूर फसल अब किसानों की नजर में है। मंडियों में चने के दाम 60-70 रुपये किलो तक पहुँच गए हैं, लेकिन सही किस्म न चुनी तो पैदावार आधी रह जाएगी। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने ताजा सलाह दी कि H.C. 5, जे.के. 9218, पंत जी 114 और पूसा पार्वती जैसी 4 किस्में तराई, उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए बिल्कुल फिट हैं।
ये किस्में कम पानी-खाद में 15-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती हैं, रोगों से लड़ती हैं और हरे पत्तों की माँग से अतिरिक्त कमाई का इंतजाम भी कर देती हैं। नवंबर का ये आखिरी हफ्ता बुवाई का है, देरी हुई तो ठंड में ग्रोथ रुक जाएगी। छोटे किसान भाई भी इन्हें आजमा लें। आज ही स्थानीय कृषि केंद्र पहुँचें, प्रमाणित बीज मँगवा लें और खेत तैयार करें।
चना बोने का आइडियल समय और तैयारी
चना की बुवाई अक्टूबर के आखिर से नवंबर के मध्य तक का सबसे अच्छा समय है, जब ठंडी हवाएँ शुरू हो रही हों। धान कटाई के बाद खेत को अच्छी तरह साफ कर लें, ताकि पुराने अवशेष न रहें। अच्छी जल निकास वाली दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी चुनें, जहाँ पानी न रुके। खेत की दो-तीन जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। बुवाई से पहले ही 8-10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद मिला दें। बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें – इससे नाइट्रोजन फिक्सेशन बेहतर होता है, खाद का खर्चा बचता है और पौधे मजबूत बनते हैं। सही समय पर बोया चना ठंड में तेजी से बढ़ता है और बाजार में ऊँचे दाम दिलाता है।
H.C. 5: ज्यादा पैदावार वाली मजबूत किस्म
चना की H.C. 5 किस्म उन किसानों के लिए बेस्ट है जो जल्दी फल देखना चाहते हैं। 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक इसकी बुवाई आसानी से हो जाती है। पौधे पर 50 से 55 दिनों में ही फूल आने लगते हैं, और पूरे 120 दिनों में फसल पककर तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर से 15 क्विंटल से ज्यादा उपज मिलना आम बात है। ये किस्म मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है, जिससे अगली फसल को फायदा होता है। छोटे खेतों वाले किसान भाई इसे जरूर आजमाएं, क्योंकि ये कम मेहनत में अच्छा रिटर्न देती है।
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जे.के. 9218: छोटे कद की तेज बढ़ने वाली किस्म
जे.के. 9218 चना की वो किस्म है जो पौधे की ऊंचाई को कंट्रोल में रखती है, सिर्फ 48 से 52 सेंटीमीटर ही। बुवाई के 110 से 115 दिनों बाद ही कटाई का समय आ जाता है, जो जल्दबाजी वाले किसानों के लिए परफेक्ट। औसतन प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है, जो बाजार भाव से गिनकर लाखों की कमाई का सबब बन सकती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने से कीटनाशकों पर खर्च बचता है। तराई क्षेत्रों में ये खूब चलती है, जहां सर्दी की ठंडक इसे और मजबूत बनाती है।
पंत जी 114: कम खर्च में भारी मुनाफे वाली
पंत जी 114 को चना की दुनिया में एक विश्वसनीय नाम माना जाता है। ये किस्म कम लागत पर ज्यादा उत्पादन का वादा करती है। बुवाई के ठीक 130 दिनों बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 12 से 14 क्विंटल चना निकल आता है, जो छोटे किसानों के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में ये खासतौर पर फायदेमंद रहती है, क्योंकि ये सूखा और ठंड दोनों सह लेती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि सही खाद प्रबंधन से इसकी उपज और बढ़ाई जा सकती है।
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पूसा पार्वती (बीजी 3062): रोग मुक्त तेज पैदावार
पूसा पार्वती या बीजी 3062 चना की वो किस्म है जो कम समय में किसानों को अमीर बना देती है। बुवाई के 113 से 115 दिनों में ही कटाई हो जाती है, और प्रति हेक्टेयर 22.94 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है। रोगों का असर कम रहता है, जिससे दवाओं पर पैसे बचते हैं। कम लागत में ये उच्च मुनाफा देती है, खासकर उन खेतों में जहां पानी की उपलब्धता सीमित हो। आईसीएआर के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ये किस्म आधुनिक खेती का प्रतीक है।
इन 4 किस्मों से बदलें खेती की तस्वीर
चना की ये 4 किस्में सही बुवाई, मिट्टी की तैयारी और देखभाल से आपकी खेती बदल देंगी। लोकल कृषि केंद्रों या KVK से प्रमाणित बीज लें, 50 प्रतिशत तक सब्सिडी मिल रही है। राइजोबियम से बीज उपचारित करें, नाइट्रोजन फिक्सेशन से खाद बचाएँ। हरी पत्तियों की माँग से अतिरिक्त कमाई का मौका है। नवंबर का ये आखिरी मौका है बो दें तो फरवरी-मार्च में पैदावार और बाजार दोनों आपके। छोटे किसान भाई, आज ही शुरू करें, बल्ले-बल्ले हो जाएगी!
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