Chilli Cultivation: खरीफ सीजन में मिर्च की खेती किसानों के लिए मुनाफे का बड़ा जरिया है। घरों में व्यंजनों से लेकर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग तक, मिर्च की मांग हमेशा बनी रहती है। सही किस्मों और खेती के तरीकों से किसान अच्छी पैदावार और मोटी कमाई कर सकते हैं। आइए जानें मिर्च की खेती की पूरी जानकारी, जिससे खेत में बंपर उपज हो और जेब भरे।
उन्नत किस्मों का चयन
मिर्च की खेती में सफलता के लिए सही किस्म चुनना सबसे जरूरी है।
काशी अनमोल एक अगेती किस्म है, जिसके फल ठोस, सीधे, वजनी और तीखे होते हैं। बुवाई के 40-50 दिन बाद पहली तुड़ाई शुरू हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक उपज मिल सकती है।
काशी गौरव पीली चींटी जैसे कीटों के खिलाफ सहनशील है। इसके गहरे हरे फल 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देते हैं।
पूसा ज्वाला निर्यात के लिए मशहूर है। इसके हल्के हरे, पतले और 7-10 सेमी लंबे फल 90-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देते हैं।
हाइब्रिड किस्मों में काशी सुर्ख 10-11 सेमी लंबे फलों के साथ 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देती है।
काशी अगेती के लंबे, हरे फल अच्छी भंडारण क्षमता रखते हैं और 200 क्विंटल तक उपज दे सकते हैं।
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खेत की तैयारी
मिर्च की खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी बेस्ट है, जिसमें जल निकास अच्छा हो। मिट्टी का पीएच मान 6-7.5 के बीच होना चाहिए। खेत को दो-तीन बार जुताई करके भुरभुरा करें और पाटा लगाकर समतल कर लें। मैदानी क्षेत्रों में जून से अगस्त के बीच बुवाई करें, जबकि रोपाई जुलाई-अगस्त में सबसे अच्छी रहती है। खुली परागण वाली किस्मों के लिए 300-400 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर और हाइब्रिड किस्मों के लिए 250-300 ग्राम बीज काफी है।
पौधशाला और बीज की तैयारी
स्वस्थ पौधे तैयार करने के लिए पौधशाला की मिट्टी को अच्छे से तैयार करें। इसमें सड़ी गोबर खाद या कम्पोस्ट मिलाएं। प्रति वर्ग मीटर 10 ग्राम डाई अमोनियम फास्फेट और 1 किलो सड़ी गोबर खाद डालें। बीज को कैप्टान या बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें, ताकि रोगों से बचाव हो। पौधशाला में 20-25 सेमी ऊंची क्यारियां बनाएं और बीज को 5-6 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोएं। बुवाई के बाद क्यारियों को सड़ी गोबर खाद से ढकें और हल्की सिंचाई करें। पौध गलन से बचाने के लिए डायथेन एम-45 या कार्बेन्डाजिम (0.2% घोल) का छिड़काव हर हफ्ते करें।
रोपाई का सही तरीका
मिर्च के पौधों की रोपाई शाम के समय करें, ताकि तेज धूप से पौधों को नुकसान न हो। रोपाई के बाद 2-3 दिन तक हल्की सिंचाई करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60-75 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 45-50 सेमी रखें। इससे पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है और फल अच्छे बनते हैं।
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सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई जरूरी है। इसके बाद मिट्टी और मौसम के हिसाब से 10-15 दिन के अंतराल पर पानी दें। गर्मियों में हर हफ्ते सिंचाई करें, खासकर फूल और फल बनने के दौरान। खेत में पानी जमा न होने दें, वरना रोग लग सकते हैं। खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें। रोपाई से पहले 3.3 लीटर स्टाम्प को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, ताकि खरपतवार न उगें।
मिर्च की खेती के फायदे
मिर्च की खेती कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है। इसकी मांग घरों से लेकर खाद्य उद्योगों तक बनी रहती है। उन्नत किस्मों से 100-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है। सही देखभाल और समय पर सिंचाई से फसल की क्वालिटी बढ़ती है, जिससे बाजार में अच्छा दाम मिलता है। मिर्च को लंबे समय तक स्टोर भी किया जा सकता है, जिससे सीजन के बाहर भी कमाई हो सकती है।
किसानों के लिए सलाह
मिर्च की खेती शुरू करने से पहले नजदीकी कृषि केंद्र से संपर्क करें। वहां से उन्नत किस्मों के बीज और खेती की जानकारी लें। पौधशाला में बीज का उपचार जरूर करें, ताकि रोगों से बचाव हो। सही समय पर रोपाई और सिंचाई करें। अगर स्थानीय बाजार में तीखी मिर्च की डिमांड ज्यादा है, तो काशी अनमोल या काशी सुर्ख जैसी किस्में चुनें। निर्यात के लिए पूसा ज्वाला बेस्ट है। मेहनत और सही तरीके से मिर्च की खेती आपकी कमाई को दोगुना कर सकती है।
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