उत्तर प्रदेश के लिए एक नई खुशखबरी है! UP-AEGIS परियोजना के तहत झाँसी जिला अब मूंगफली का विशेष क्लस्टर बनने जा रहा है। ये पहल न सिर्फ मूंगफली की खेती को बढ़ावा देगी, बल्कि आसपास के क्षेत्रों झाँसी, जालौन, महोबा, ललितपुर, चित्रकूट, बांदा, और हमीरपुर के खेतिहर किसानों को भी फायदा पहुँचाएगी। पिछले 8 साल में मूंगफली की पैदावार ढाई गुना बढ़ी है, और अब ये परियोजना इसे और आगे ले जाने का वादा करती है। ये योजना खेतों में काम करने वालों के लिए मुनाफे का नया रास्ता खोल रही है। आइए, जानें कि UP-AEGIS क्या है, इसके फायदे क्या हैं, और इसे कैसे अपनाएँ।
UP-AEGIS: मूंगफली की नई उड़ान
UP-AEGIS (Uttar Pradesh Agriculture Growth and Innovation Support) परियोजना एक ऐसी पहल है, जो मूंगफली की खेती को व्यवस्थित और लाभकारी बनाने के लिए लाई गई है। झाँसी को मूंगफली का विशेष क्लस्टर बनाने का मकसद है कि यहाँ की मिट्टी और मौसम का फायदा उठाकर पैदावार बढ़े। ये परियोजना विश्व बैंक के सहयोग से चल रही है और मूंगफली के उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ निर्यात को भी प्रोत्साहित करेगी। पिछले सालों में मूंगफली की पैदावार में आई वृद्धि को देखते हुए, ये कदम किसानों की जेब भरने का सुनहरा मौका है। मॉनसून के मौसम (जून-जुलाई 2025) में बुवाई शुरू होने वाली है, जो इस पहल को और मजबूत करेगा।
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किसानों को क्या-क्या फायदा
(UP AEGIS Project Jhansi) झाँसी को मूंगफली का क्लस्टर बनाने से सातों जिलों झाँसी, जालौन, महोबा, ललितपुर, चित्रकूट, बांदा, और हमीरपुर के किसानों को सीधा लाभ मिलेगा। पहला फायदा है पैदावार में बढ़ोतरी। सरकार की ओर से बेहतर बीज, खाद, और तकनीक उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15-20% तक बढ़ सकता है। दूसरा, मूंगफली का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 6,783 रुपये प्रति क्विंटल है, जो किसानों को निश्चित कमाई का भरोसा देता है। तीसरा, क्लस्टर बनने से निर्यात के मौके बढ़ेंगे, जिससे बाजार में अच्छा दाम मिलेगा। ये क्षेत्र, जहाँ मूंगफली की खेती पहले से होती थी, अब मुनाफे का नया केंद्र बन सकता है।
मूंगफली खेती का तरीका
मूंगफली की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी और अच्छा जल निकास जरूरी है। मॉनसून से पहले (जून 2025) खेत की 3-4 बार जुताई करें और प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। बीज बुवाई जून के आखिरी हफ्ते या जुलाई की शुरुआत में करें। बीजों को 3-4 सेंटीमीटर गहराई में और 30×10 सेंटीमीटर की दूरी पर बोएँ। बुवाई से पहले बीजों को थीरम (2.5 ग्राम प्रति किलो) से उपचारित करें। मॉनसून में बारिश से नमी बनी रहती है, लेकिन ज्यादा पानी जमा होने से बचें। 20-25 दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें और नीम का तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) से कीटों से बचाव करें।
मिट्टी और पर्यावरण को फायदा
मूंगफली की जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया होते हैं, जो मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं। UP-AEGIS परियोजना के तहत जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम होगा। ये न सिर्फ मिट्टी की सेहत सुधारेगा, बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखेगा। मॉनसून के मौसम में मूंगफली की खेती पानी की बचत भी करती है, क्योंकि बारिश का पानी जड़ों तक पहुँचता है। ये क्षेत्रों में, जहाँ सूखे की समस्या रहती है, एक बड़ी राहत है। किसान बस्तियों में ये तकनीक खेती को टिकाऊ और मुनाफेदार बनाएगी।
UP-AEGIS परियोजना मूंगफली खेती को नई दिशा दे रही है। सही जानकारी, सरकारी सहायता, और मेहनत से आप इस मौके को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना सकते हैं। इस जून-जुलाई में मूंगफली की खेती शुरू करें और अपनी मेहनत का पूरा दाम पाएँ!
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