Variety of mango: भारत में आम की खेती मुख्य रूप से गर्मियों में होती है, लेकिन कुछ विशेष किस्मों और उचित प्रबंधन से साल के अधिकांश महीनों में फल प्राप्त किया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों की रिसर्च के अनुसार, अलग-अलग पकने की अवधि वाली किस्मों को एक साथ लगाने और पैक्लोबुट्राजोल जैसी नियामक दवाओं के उपयोग से ऑफ-सीजन फलन करवाया जा सकता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों की रिपोर्ट्स में यह सिद्ध हो चुका है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कई राज्यों में किसान इस विधि से सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं। एक ही बगीचे में 4-6 किस्में लगाने से जनवरी से दिसंबर तक फल उपलब्ध रहता है। इससे न केवल घरेलू जरूरत पूरी होती है बल्कि बाजार में अच्छी कीमत भी मिलती है।
साल भर फल देने वाली आम की किस्में
हमारे गाँव-खेतों में कई ऐसी आम की किस्में हैं जो बारहों महीने फल दे सकती हैं, बशर्ते उनकी देखभाल सही हो। अमरुपाली, आल्फांसो, केसर, दशहरी, बंगनपल्ली, राटौल और मल्लिका जैसी किस्में इस काम के लिए बेस्ट हैं। इनमें से कुछ के बारे में थोड़ा जान लीजिए।
अमरपाली किस्म की विशेषताएं और लाभ
अमरपाली किस्म दशहरी और नीलम के संकर से विकसित की गई है। यह बौनी किस्म है जिसकी ऊंचाई 10-12 फुट तक रहती है। छोटे खेतों या गमलों में लगाने के लिए उपयुक्त है। एक एकड़ में 400-500 पौधे लगाए जा सकते हैं। फल मध्यम आकार के, लाल-पीले रंग के और रेशारहित होते हैं। मुख्य फलन जून-जुलाई में होता है लेकिन उचित छंटाई और पैक्लोबुट्राजोल के उपयोग से अक्टूबर-नवंबर में भी फल आ जाता है। उत्तर भारत की जलवायु और मिट्टी में यह अच्छी तरह अनुकूलित हो जाती है। पौधा रोपण के 3-4 साल बाद फल देना शुरू कर देता है।
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आल्फांसो
आल्फांसो, जिसे हापुस भी कहते हैं, महाराष्ट्र का सबसे मशहूर आम है। इसका गूदा इतना नरम और रसदार होता है कि मुँह में रखते ही घुल जाता है। इसकी खुशबू इतनी तीखी है कि दूर से ही पता चल जाता है। बाजार में इसकी कीमत थोड़ी ज्यादा होती है, लेकिन स्वाद और मांग के आगे सब फीका है।

मल्लिका किस्म का महत्व
मल्लिका भी दशहरी और नीलम के संकर से बनी है। इसके फल बड़े (500-800 ग्राम) और गूदेदार होते हैं। रंग नारंगी और स्वाद बहुत मीठा होता है। मुख्य फलन जुलाई-अगस्त में होता है लेकिन दक्षिण भारत तथा मध्य भारत में ऑफ-सीजन फलन आसानी से करवाया जा सकता है। एक परिपक्व पेड़ से 300-400 किलोग्राम तक उत्पादन मिलता है। निर्यात गुणवत्ता के कारण बाजार में इसकी मांग हमेशा रहती है। गर्म और उप-आर्द्र जलवायु में यह अच्छा प्रदर्शन करती है।
केसर
केसर आम गुजरात का गौरव है। इसका चटक पीला रंग और मीठा स्वाद इसे खास बनाता है। यह लंबे समय तक ताजा रहता है, जिससे इसे दूर के बाजारों में बेचना आसान है। गाँव के किसान जो लंबे समय तक बिक्री करना चाहते हैं, उनके लिए केसर बढ़िया विकल्प है।
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दशहरी उत्तर प्रदेश की शान
दशहरी आम उत्तर प्रदेश का नामी फल है। इसकी मिठास और गहरी सुगंध गाँव की मिट्टी जैसी है। यह जल्दी खराब नहीं होता, जिससे इसे बाजार तक ले जाना आसान है। गाँवों में दशहरी की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

नीलम किस्म की बारहमासी प्रकृति
नीलम दक्षिण भारत की प्रसिद्ध किस्म है जो नियमित रूप से फल देती है। फल छोटे-मध्यम आकार के, सुगंधित और मीठे होते हैं। मुख्य फसल मई-जून में आती है लेकिन पैक्लोबुट्राजोल के छिड़काव से सितंबर-अक्टूबर और कभी-कभी सर्दियों में भी फलन होता है। अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और पर्याप्त पानी की व्यवस्था होने पर उत्तर भारत में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। ऑफ-सीजन में इसकी कीमत अन्य किस्मों से अधिक मिलती है।
बंगनपल्ली दक्षिण का सितारा
बंगनपल्ली दक्षिण भारत का मशहूर आम है। यह बड़ा, चमकदार पीला और हल्की मिठास वाला होता है। गर्म इलाकों में यह खूब फल देता है और खाने में बड़ा मज़ेदार लगता है। आंध्र और तमिलनाडु के किसानों के लिए यह किस्म खास पसंद की जाती है।
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अपने इलाके के हिसाब से चुनें आम
हर गाँव-हर राज्य की मिट्टी और मौसम अलग होता है, तो आम की किस्म भी उसी हिसाब से चुननी पड़ती है। उत्तर प्रदेश में दशहरी, चौसा और लंगड़ा खूब जमता है। महाराष्ट्र में आल्फांसो का जलवा है। गुजरात में केसर सबको पसंद आता है। बिहार के भाइयों के लिए मलदहिया बढ़िया है, तो पश्चिम बंगाल में हिमसागर और लंगड़ा चलता है। आंध्र और तमिलनाडु में बंगनपल्ली और नीलम की बात ही अलग है। केरल में मुवत्तुपुझा और प्रियूर का स्वाद लाजवाब है। अपने खेत की मिट्टी और पानी देखकर ही पेड़ लगाइए, ताकि फल भी खूब आए।
आम की खेती का देसी तरीका
आम की खेती शुरू करने के लिए मानसून की शुरुआत सबसे अच्छा समय है, जब मिट्टी गीली होती है। दोमट मिट्टी, जिसमें पानी जमा न हो, इसके लिए बेस्ट है। छोटे पेड़ को शुरू में हर 4-5 दिन में पानी दें। गर्मी में हफ्ते में एक बार और सर्दी में 15 दिन में एक बार पानी काफी है। कीटों से बचाने के लिए नीम का तेल या गोमूत्र का छिड़काव करें। गोबर की सड़ी खाद और नीम की खली डालने से पेड़ मजबूत होता है। फल पकने से पहले तोड़ लें और छाँव में रखें। सूखी टहनियों को काटते रहें, ताकि फल ज्यादा आएँ।
सफल खेती के लिए प्रबंधन
पौध रोपण के बाद नियमित छंटाई जरूरी है। जुलाई-अगस्त में पैक्लोबुट्राजोल (1-2 ग्राम प्रति वर्ष उम्र के अनुसार) मिट्टी में डालने से ऑफ-सीजन फूल आते हैं। गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट और संतुलित उर्वरक नियमित दें। पानी की अधिकता से जड़ सड़न रोग हो सकता है इसलिए ड्रिप सिंचाई बेहतर है। कीट नियंत्रण के लिए नीम आधारित दवाओं का प्रयोग करें। सही प्रबंधन से एक पेड़ से 200-500 किलोग्राम तक फल प्राप्त किया जा सकता है।
सही किस्मों का चयन और वैज्ञानिक प्रबंधन से आम की खेती साल भर लाभकारी बनाई जा सकती है। इससे किसानों की आय में स्थिरता आती है और बाजार में हमेशा ताजे फल उपलब्ध रहते हैं।
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