What is Intercropping Method: आज की खेती में कम जमीन से ज्यादा मुनाफा कमाना हर किसान की जरूरत बन गया है। ऐसे में इंटरक्रॉपिंग यानी मिश्रित फसल की तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इस तकनीक में एक ही खेत में दो या दो से ज्यादा फसलें एक साथ उगाई जाती हैं। इससे न केवल फसल की पैदावार बढ़ती है, बल्कि खेत की मिट्टी स्वस्थ रहती है और कीट-रोगों का खतरा भी कम होता है। यह तरीका न सिर्फ लागत बचाता है, बल्कि किसानों की आय को भी दोगुना करने में मदद करता है। इस लेख में हम आपको इंटरक्रॉपिंग के फायदे, उपयोगी संयोजन और इसे अपनाने के आसान तरीके बताएंगे।
इंटरक्रॉपिंग क्या है और यह कैसे काम करती है
इंटरक्रॉपिंग का मतलब है एक ही खेत में दो अलग-अलग तरह की फसलें एक साथ उगाना। ये फसलें ऐसी होती हैं जो एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने की बजाय फायदा देती हैं। उदाहरण के लिए, एक फसल लंबी हो सकती है और दूसरी छोटी, या एक की जड़ें गहरी हों और दूसरी की सतही। इस तरह की फसलें एक-दूसरे के साथ मिलकर खेत के संसाधनों का बेहतर उपयोग करती हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और खेत का पूरा इस्तेमाल होता है। यह तकनीक खासकर उन किसानों के लिए उपयोगी है जिनके पास जमीन कम है, लेकिन वे अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं।
इंटरक्रॉपिंग के फायदे
इंटरक्रॉपिंग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि एक ही खेत से दो फसलों की पैदावार मिलती है, जिससे किसान की कमाई दोगुनी हो सकती है। इसके अलावा, यह तकनीक मिट्टी की सेहत को बनाए रखने में भी मदद करती है। अलग-अलग फसलें मिट्टी से अलग-अलग पोषक तत्व लेती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। साथ ही, कुछ फसलें कीटों को दूर रखने में मदद करती हैं, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की जरूरत कम हो जाती है। अगर किसी कारण से एक फसल खराब भी हो जाए, तो दूसरी फसल से आमदनी बनी रहती है। इतना ही नहीं, इंटरक्रॉपिंग में सिंचाई, खाद और मेहनत की भी बचत होती है, क्योंकि दोनों फसलें एक साथ देखभाल में आती हैं।
भारत में उपयोगी इंटरक्रॉपिंग संयोजन
भारत में कई ऐसे फसल संयोजन हैं जो इंटरक्रॉपिंग के लिए बहुत उपयोगी हैं। मक्के के साथ मूंग, उड़द या लोबिया बोना एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि ये फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं।
गन्ने के साथ धनिया, पालक या मैथी उगाने से खेत खाली नहीं रहता और समय का पूरा उपयोग होता है।
बाजरे के साथ मूंगफली या अरहर बोने से मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है।
कपास के साथ उड़द, मूंग या मूली उगाने से कीटों का प्रकोप कम होता है और अतिरिक्त आय मिलती है।
गेहूं के साथ चना या मटर बोने से खेत की नमी का बेहतर उपयोग होता है।
धान के साथ तिल या मूंग उगाने से एक फसल के साथ दूसरी फसल से भी कमाई हो सकती है। ये संयोजन स्थानीय जलवायु और मिट्टी के हिसाब से चुने जा सकते हैं।
इंटरक्रॉपिंग को अपनाने के आसान तरीके
इंटरक्रॉपिंग शुरू करने से पहले खेत की मिट्टी की जांच कर लेना जरूरी है ताकि यह पता चल सके कि कौन सी फसलें उसमें अच्छी होंगी। एक लंबी और एक छोटी फसल का संयोजन चुनें ताकि दोनों एक-दूसरे के लिए बाधा न बनें। फसलों की सिंचाई और खाद की जरूरत भी मिलती-जुलती होनी चाहिए, ताकि देखभाल में आसानी हो। फसलों के बीज बोते समय उनकी दूरी और बोआई का समय अलग-अलग रखें ताकि वे एक-दूसरे के विकास में रुकावट न डालें। यह भी ध्यान रखें कि एक फसल की जड़ें दूसरी फसल को नुकसान न पहुंचाएं। स्थानीय कृषि विशेषज्ञों या क्रषि विज्ञान केंद्र (KVK) से सलाह लेकर सही फसल संयोजन चुनें।
इंटरक्रॉपिंग में सावधानियां
इंटरक्रॉपिंग में कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। जिन फसलों को आप साथ बो रहे हैं, वे एक-दूसरे से संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, ऐसी फसलें न चुनें जो एक ही कीट या बीमारी से प्रभावित हो सकती हों। समय पर सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण भी जरूरी है, क्योंकि खरपतवार फसलों के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं। बोआई से पहले अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी से सलाह लेना फायदेमंद हो सकता है। सही योजना और देखभाल के साथ इंटरक्रॉपिंग आपके खेत को ज्यादा उत्पादक बना सकती है।
इंटरक्रॉपिंग से खेती को बनाएं लाभकारी
इंटरक्रॉपिंग एक ऐसी पुरानी तकनीक है जो आज के समय में भी उतनी ही कारगर है। यह कम जमीन वाले किसानों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है, क्योंकि इससे खेत का हर इंच उपयोग में आता है। सरकार भी अब प्राकृतिक और जैविक खेती में इंटरक्रॉपिंग को बढ़ावा दे रही है। यह तकनीक न केवल मुनाफा बढ़ाती है, बल्कि मिट्टी की सेहत को भी बनाए रखती है और कीट-रोगों से फसलों को बचाती है। अगर आप भी अपनी खेती को कम लागत में ज्यादा लाभकारी बनाना चाहते हैं, तो आज से ही इंटरक्रॉपिंग को अपनाएं।
खेती-किसानी से जुड़ी ऐसी ही उपयोगी जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या उद्यान विभाग से संपर्क करें।
ये भी पढ़ें- कृषि यंत्रों पर सब्सिडी पाने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड अनिवार्य, 30 जून तक करें आवेदन!