गेहूं की HD 3226 किस्म से किसानों को मिलेगा रिकॉर्ड उत्पादन, रतुआ रोग से पूरी तरह मुक्त

रबी का मौसम दस्तक दे चुका है और नवंबर गेहूं की बुवाई का सुनहरा समय है। ठंडी हवाओं के बीच किसान भाई ऐसी किस्में तलाश रहे हैं जो रोगों से लड़ें और भरपूर पैदावार दें। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के लिए HD 3226 नाम की एक ऐसी ही शानदार किस्म विकसित की है, जो पीला, भूरा और काला रतुआ जैसे घातक रोगों से पूरी तरह सुरक्षित है।

यह किस्म सिंचित खेतों और समय पर बुवाई के लिए बनी है, जहां औसत उपज 57.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पहुंच सकती है, जबकि अच्छे हालात में 79.6 क्विंटल तक का रिकॉर्ड तोड़ सकती है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा-उदयपुर को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी को छोड़कर), जम्मू-कठुआ, ऊना-पांवटा घाटी और उत्तराखंड तराई के किसानों के लिए यह वरदान साबित हो रही है।

बाजार में प्रीमियम दाम, ब्रेड बनाने के लिए आदर्श

HD 3226 के दाने न सिर्फ ज्यादा पैदावार देते हैं, बल्कि गुणवत्ता में भी कमाल हैं। इसमें प्रोटीन की मात्रा औसतन 12.8 प्रतिशत रहती है, जो आटे को पौष्टिक बनाती है। शुष्क ग्लूटेन कम लेकिन सेडिमेंटेशन वैल्यू ऊंची होने से ब्रेड लोफ वॉल्यूम शानदार मिलता है ग्लू-1 स्कोर 10 और ब्रेड क्वालिटी 6.7। जिंक की मात्रा 36.8 पीपीएम होने से यह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। बाजार में ऐसी किस्म की मांग ज्यादा रहती है, क्योंकि इससे बनी रोटी-ब्रेड नरम और स्वादिष्ट बनती है। ICAR के अनुसार, यह व्यावसायिक खेती के लिए परफेक्ट है, जहां किसान भाई कम लागत में अच्छे दाम पा सकें।

रतुआ के अलावा अन्य संक्रमणों से भी सुरक्षित

इस किस्म की सबसे बड़ी ताकत उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता है। पीला, भूरा और काला रतुआ – जो गेहूं की फसल को 30-50 प्रतिशत बर्बाद कर देते हैं इनसे HD 3226 पूरी तरह लड़ लेती है। इसके अलावा करनाल बंट, चूर्णिल फफूंद, लूज स्मट और फुट रॉट जैसे रोगों का भी असर न के बराबर पड़ता है। इससे कीटनाशकों और फंगीसाइड का खर्च आधा बच जाता है, और फसल जैविक के करीब रहती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बदलते मौसम में ऐसी प्रतिरोधी किस्में किसानों की कमर मजबूत करती हैं, क्योंकि रोगों से निपटने का झंझट कम हो जाता है।

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बुवाई का सही समय और बीज

सफल खेती के लिए 5-25 नवंबर के बीच बुवाई करें, लेकिन अधिकतम उपज के लिए अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में ही बीज डाल दें। बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें, ताकि पौधे मजबूत फैल सकें। खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरा बनाएं, दोमट या उपजाऊ मिट्टी चुनें जहां जल निकासी ठीक हो। ICAR की सलाह है कि प्रमित बीज ही लें, ताकि रोग मुक्त पौधे उगें।

खाद और सिंचाई का प्लान

उर्वरकों का सही इस्तेमाल HD 3226 की ताकत को दोगुना कर देगा। प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 150 किलोग्राम (यूरिया 255 किलोग्राम), फॉस्फोरस 80 किलोग्राम (डीएपी 175 किलोग्राम) और पोटाश 60 किलोग्राम (एमओपी 100 किलोग्राम) डालें। बुवाई पर फॉस्फोरस-पोटाश की पूरी डोज के साथ नाइट्रोजन का एक तिहाई, बाकी दो हिस्से पहली और दूसरी सिंचाई के बाद बराबर दें। सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद पहली करें, फिर जरूरत के मुताबिक – कुल 4-5 गीली। ज्यादा पानी से बचें, वरना जड़ें कमजोर हो सकती हैं।

फसल प्रबंधन

खरपतवार से बचाव के लिए बुवाई के 27-35 दिन बाद 40 ग्राम प्रति हेक्टेयर का स्प्रे करें। उपज बढ़ाने के लिए दो छिड़काव जरूरी हैं क्लोरमेक्वाट क्लोराइड (0.2 प्रतिशत) और टेबुकोनाजोल (0.1 प्रतिशत) का मिश्रण। पहला गांठ बनने पर और दूसरा ऊपरी पत्ती पर। इससे दाने भारी और चमकदार बनेंगे। कीटों से सावधान रहें, लेकिन रोग मुक्त होने से ज्यादा चिंता न करें। कटाई समय पर करें ताकि दाने सख्त न हो जाएं

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  • Rahul

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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