रबी सीजन की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है, लेकिन ठंड की शुरुआत के साथ ही गेहूं के खेतों में पीला रंग दिखने लगा है। लाखों किसान भाई फसल को पीला होते देख घबरा जाते हैं और बिना सोचे-समझे कीटनाशक छिड़काव शुरू कर देते हैं। नतीजा – खर्चा बढ़ता है, फसल को और नुकसान पहुँचता है। कृषि विज्ञान केंद्रों से खबर आई कि पूर्वी यूपी, बिहार और एमपी के कई जिलों में किसान इसी गलती के शिकार हो रहे हैं।
लेकिन विशेषज्ञ साफ कहते हैं कि पीला पड़ना रोग का प्रकोप नहीं, बल्कि पोषक तत्वों की कमी, जलभराव या मौसम का असर हो सकता है। अगर सही कारण पता चल जाए और समय पर उपाय कर लिया जाए तो पैदावार में 20-25 प्रतिशत का नुकसान बच सकता है। आज हम आपको वही पूरा फॉर्मूला बता रहे हैं पहले कारण पहचानें, फिर सही इलाज अपनाएँ। घबराएँ नहीं, अभी भी समय है खेत का जायजा लें और ये सलाह अपनाएँ,
गेहूं की फसल पीली क्यों पड़ती है
गेहूं की फसल का पीला पड़ना कई कारणों से हो सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में ये रोग का प्रकोप नहीं होता। कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि ठंडे मौसम में कोहरा या तापमान की अचानक गिरावट से पत्तियाँ पीली पड़ सकती हैं, लेकिन ये समस्या कुछ दिनों में खुद ठीक हो जाती है। असली समस्या तब आती है जब मिट्टी में नमी की कमी या अधिकता हो। ज्यादा बारिश या सिंचाई से खेत में जलभराव हो जाता है, जिससे जड़ों तक ऑक्सीजन नहीं पहुँचती और पत्तियाँ पीली होकर सूखने लगती हैं।
भारी मिट्टी वाले खेतों में ये समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। दूसरी बड़ी वजह पोषक तत्वों की कमी है नाइट्रोजन, जिंक, मैंगनीज या सल्फर की कमी से पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं। खारा पानी या खराब सिंचाई से भी ये समस्या बढ़ जाती है। किसान भाई, पीला पड़ना देखकर कीटनाशक छिड़कने की बजाय पहले मिट्टी की जाँच करवाएँ इससे खर्चा बचेगा और फसल स्वस्थ रहेगी।
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जलभराव या खारा पानी का असर
सिंचाई या बारिश के बाद अगर खेत में पानी रुक जाता है तो जड़ें सांस नहीं ले पातीं और पौधे पीले होकर मुरझा जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारी मिट्टी में प्रति एकड़ 8 क्यारियाँ बनाएँ और हल्की मिट्टी में 16 क्यारियाँ। रुका हुआ पानी तुरंत निकाल दें। ट्यूबवेल का खारा पानी भी पीलेपन का कारण बनता है। इससे बचने के लिए सिंचाई से पहले पानी की जाँच करवाएँ। अगर खारापन ज्यादा है तो अच्छे पानी के साथ मिलाकर इस्तेमाल करें या जिप्सम का 500-600 किलो प्रति हेक्टेयर डालें। ये उपाय अपनाने से जड़ें मजबूत रहेंगी और फसल हरी-भरी बनी रहेगी।
पोषक तत्वों की कमी
पोषक तत्वों की कमी गेहूं के पीलेपन का सबसे बड़ा कारण है। नाइट्रोजन की कमी से पुरानी पत्तियाँ नोक से पीली हो जाती हैं। इसका इलाज मिट्टी टेस्ट के आधार पर यूरिया डालना है। लवणीय मिट्टी में 25 प्रतिशत ज्यादा नाइट्रोजन की जरूरत पड़ती है। जिंक की कमी से पौधे बौने रह जाते हैं और बीच की पत्तियाँ पीली होकर सफेद धारियाँ बना लेती हैं। बुवाई के समय 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति एकड़ डालें या फसल बढ़ने पर 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का छिड़काव करें।
मैंगनीज की कमी में पत्तियों की नसों के बीच पीला रंग आता है, भूरे या गुलाबी धारियाँ बनती हैं। पहली सिंचाई के बाद मैंगनीज सल्फेट का छिड़काव करें। सल्फर की कमी रेतीली मिट्टी में आम है नई पत्तियाँ पीली पड़ती हैं। जिप्सम या बेंटोनाइट सल्फर का 50-60 किलो प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें। ये छोटे-छोटे उपाय पोषक तत्वों की कमी को पूरा कर देंगे।
कीट और रोगों का हमला
कीट और रोग भी पीलेपन के जिम्मेदार होते हैं। दीमक बुवाई के बाद पौधों को पीला करके सूखा देती है। बुवाई से पहले बीज उपचार करें या फिप्रोनिल/क्लोरपाइरीफॉस को गीली रेत में मिलाकर डालें। तना छेदक कीट तने में घुसकर पीलेपन का कारण बनता है। ज्यादा प्रकोप पर कीटनाशक छिड़कें। सूत्रकृमि से पौधे बौने और पीले हो जाते हैं, जड़ों में गांठें बनती हैं। प्रभावित क्षेत्र में बुवाई के समय कार्बोफ्यूरान डालें। पीला रतुआ ठंडे-नम मौसम में फैलता है पत्तियों पर पीले पाउडर जैसे धब्बे बनते हैं। प्रतिरोधी किस्में बोएँ और दिसंबर मध्य से निगरानी रखें। अगर बीमारी दिखे तो कैप्टन, हेक्साकोनाजोल, टेबुकोनाजोल, एजोक्सीस्ट्रोबिन या प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करें। शुरुआत में ही ये उपाय अपनाने से फसल बचेगी।
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