जूनोटिक रोग, यानी पालतू पशुओं से इंसानों तक फैलने वाली बीमारियां, आज घर-घर में चिंता का कारण बन रही हैं। ये रोग बैक्टीरिया, वायरस, और परजीवियों के कारण होते हैं, जो पालतू जानवरों जैसे कुत्तों, बिल्लियों, और खरगोशों के संपर्क में आने से इंसानों को प्रभावित कर सकते हैं। इन रोगों से बचाव के लिए जागरूकता और सावधानी सबसे जरूरी है, खासकर उन परिवारों के लिए जो पालतू पशुओं के साथ रहते हैं। ये रोग न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं, बल्कि इलाज और देखभाल में खर्च भी बढ़ाते हैं। आइए, जूनोटिक रोगों के प्रकार, उनके लक्षण, जोखिम, और पालतू पशुओं के जरिए बचाव के तरीकों को गहराई से समझते हैं।
जूनोटिक रोगों के प्रकार और लक्षण
जूनोटिक रोग कई रोगजनकों से फैलते हैं, जो पालतू पशुओं के जरिए इंसानों तक पहुंचते हैं:
बैक्टीरिया: साल्मोनेला कुत्तों या बिल्लियों के दूषित भोजन, मल, या लार से फैलता है। इसके लक्षणों में दस्त, उल्टी, और तेज बुखार शामिल हैं। पेस्टुरेला काटने या खरोंचने से फैलता है, जिससे घाव में सूजन और बुखार होता है।
वायरस: रेबीज वायरस कुत्तों या बिल्लियों के काटने से फैलता है। इसके शुरुआती लक्षणों में बेचैनी, डर, और लार बहना शामिल है, जो बाद में कोमा और मौत का कारण बन सकता है। इन्फ्लुएंजा (पक्षियों या पालतू जानवरों से) बुखार और खांसी के साथ आता है।
परजीवी: टॉक्सोप्लाज्मोसिस बिल्लियों के मल से फैलता है, जिससे थकान, सिरदर्द, और गर्भपात का खतरा होता है। राउंडवर्म कुत्तों के बालों या मल से फैलता है, जिससे पेट दर्द और वजन घटना देखी जाती है। इन रोगों के लक्षण 2-10 दिन में दिख सकते हैं, इसलिए पालतू पशु के असामान्य व्यवहार (अधिक थकान, भूख न लगना) पर नजर रखें।
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पालतू पशुओं से होने वाले जोखिम और प्रभाव
पालतू पशुओं से फैलने वाले जूनोटिक रोग व्यक्तिगत स्वास्थ्य के साथ-साथ परिवार और समुदाय को प्रभावित करते हैं। रेबीज से भारत में हर साल 20,000 से अधिक मौतें होती हैं, जिनमें ज्यादातर पालतू कुत्तों के काटने से होती हैं। साल्मोनेला से बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आती है। टॉक्सोप्लाज्मोसिस गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक है, जो जन्म दोष का कारण बन सकता है। इन रोगों का इलाज महंगा है रेबीज का टीका और दवाएं 5,000-10,000 रुपये तक खर्च कर सकते हैं जिससे मध्यम वर्गीय परिवारों पर आर्थिक बोझ पड़ता है। पालतू पशु की बीमारी से घर का माहौल भी तनावपूर्ण हो सकता है।
पालतू पशुओं के लिए गहन बचाव रणनीतियां
जूनोटिक रोगों से बचने के लिए पालतू पशुओं की देखभाल और स्वच्छता पर खास ध्यान देना जरूरी है। इन उपायों को अपनाएं:
स्वच्छता का कड़ाई से पालन: पालतू पशुओं को छूने, उनके साथ खेलने, या उनके बर्तन साफ करने के बाद हाथों को साबुन और पानी से कम से कम 40-60 सेकंड तक धोएं। उनके बिस्तर को हफ्ते में दो बार धोएं और गंदगी को तुरंत हटाएं। बच्चों को पालतू पशु के मल से दूर रखें।
मांस और अंडों को पूरी तरह पकाएं: पालतू पशुओं के लिए कच्चा मांस न दें, क्योंकि यह साल्मोनेला का स्रोत हो सकता है। इंसानों के लिए भी मांस को 75°C पर पकाएं और अंडों को अच्छी तरह उबालें। दूध को हमेशा उबालकर इस्तेमाल करें।
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नियमित और व्यापक टीकाकरण: कुत्तों के लिए रेबीज, डीएचपीपी, और पैरावायरस का टीका सालाना लगवाएं। बिल्लियों के लिए रेबीज, एफवीआरसीपी, और फेलाइन ल्यूकेमिया का टीका जरूरी है। पशु चिकित्सक से हर 6 महीने में पूर्ण स्वास्थ्य जांच कराएं, खासकर अगर पशु बूढ़ा हो।
काटने या खरोंचने पर तत्काल कार्रवाई: अगर पालतू जानवर काटे या खरोंचे, तो घाव को साबुन और पानी से 15 मिनट तक धोएं, एंटीसेप्टिक लगाएं, और 24 घंटे के अंदर डॉक्टर से मिलें। रेबीज का टीका (5 खुराक का कोर्स) और इम्युनोग्लोबुलिन तुरंत लगवाएं।
साफ पानी, चारा, और माहौल: पालतू पशुओं को साफ पानी पिलाएं और उनके बर्तनों को रोजाना धोएं। दूषित चारे से बचें कच्ची हड्डियों या सड़ा हुआ भोजन न दें। घर में पालतू पशु के लिए अलग कटोरा और बिस्तर रखें।
जागरूकता और पशु देखभाल की पहल
जूनोटिक रोगों को रोकने के लिए जागरूकता सबसे मजबूत ढाल है। पालतू पशु रखने वाले परिवारों को पशु चिकित्सकों द्वारा आयोजित कार्यशालाओं और स्वास्थ्य कैंप में हिस्सा लेना चाहिए, जहां रोगों के लक्षण और बचाव के तरीके सिखाए जाते हैं। सरकार ने राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP) के तहत पालतू पशुओं के लिए मुफ्त टीकाकरण और 75% सब्सिडी वाली दवाएं उपलब्ध कराई हैं। कई शहरों में पशु देखभाल केंद्र खोले गए हैं, जहां सस्ती जांच और इलाज की सुविधा मिलती है। पालतू पशु बीमा योजनाएं भी शुरू की गई हैं, जो इलाज का खर्च 50% तक कवर करती हैं।
जूनोटिक रोग पालतू पशुओं के जरिए इंसानों के लिए गंभीर खतरा हैं, जो स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति दोनों को प्रभावित करते हैं। 6 जुलाई 2025 से इन रोगों से बचाव के लिए जागरूकता, नियमित टीकाकरण, और स्वच्छता अपनाना जरूरी है। पालतू पशु को परिवार का हिस्सा मानकर उनकी देखभाल करें—उनकी नियमित जांच, साफ-सफाई, और तुरंत इलाज से न सिर्फ उनकी जिंदगी सुरक्षित होगी, बल्कि आपकी भी। सरकार और समाज के सहयोग से इस खतरे को कम किया जा सकता है आइए, इस जिम्मेदारी को मिलकर निभाएं!
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