मखाना हुआ ग्लोबल, निर्यात में भारी उछाल, विदेशी बाजारों में बढ़ी मांग

मिथिला क्षेत्र में एक नई सुबह की उम्मीद जाग रही है। “माछ, मखान और पान, मिथिला की पहचान” यह कहावत गर्व से गूंजती है, जो इस क्षेत्र को मछली, मखाना और पान के लिए मशहूर बनाती है। करीब 13 जिलों में फैली मखाना की खेती अब न सिर्फ स्थानीय संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि एक आर्थिक क्रांति का आधार भी बन रही है।

साल 2022 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाना उगाया जाता था, जो अब अनुमानित तौर पर 40 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। इससे करीब 60 हजार मीट्रिक टन बीज और प्रोसेसिंग के बाद 24 हजार मीट्रिक टन मखाना लावा तैयार होता है। यह सुपरफूड अब 24 देशों तक निर्यात हो रहा है, जो मिथिला के किसानों की मेहनत को विश्व पटल पर ले गया है।

मखाना का विस्तार, नई जमीनें, नई उम्मीदें

मखाना की खेती अब मिथिला से बाहर निकलकर मणिपुर, असम, और बंगाल जैसे राज्यों में भी फैल रही है। छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में भी इसके विस्तार की कोशिशें जोरों पर हैं। भारत में कुल 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाना उगाया जाता है, जिसमें 90% हिस्सा मिथिला के पास है। यह विस्तार मखाना की बढ़ती मांग को पूरा करने का प्रयास है, जो इसे गरीब की थाली तक पहुंचाने का सपना साकार कर सकता है।

पीएम मोदी ने हाल ही में कहा कि वे खुद साल में 300 दिन मखाना खाते हैं, और डॉक्टर भी इसके रोग प्रतिरोधक गुणों की तारीफ करते हैं। स्वर्ण वैदेही जैसी नई वैरायटी को गांव-गांव तक पहुंचाने की मुहिम चल रही है, जो उत्पादन बढ़ाने में मददगार होगी।

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उत्पादन की उड़ान, कितना बढ़ा सफर

पिछले कुछ सालों में मखाना उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। साल 2013 में यह 13 हजार हेक्टेयर तक सीमित था, जो 2022 तक 35 हजार हेक्टेयर और अब 40-45 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। यह बढ़ोतरी मिथिला के किसानों की मेहनत और सरकारी पहलों का नतीजा है। उत्पादन बढ़ने से निर्यात की संभावनाएं भी मजबूत हुई हैं। साल 2018-19 में मात्र 2000 मीट्रिक टन मखाना निर्यात हुआ था, जो 2023-24 में 7000 मीट्रिक टन तक पहुंच गया। साल 2025-26 में 15-20 हजार मीट्रिक टन निर्यात का लक्ष्य है, जो मखाना उद्योग को 1800 करोड़ रुपये तक ले जाएगा। यह वृद्धि न सिर्फ किसानों की आय बढ़ाएगी, बल्कि मिथिला की पहचान को और मजबूत करेगी।

मखाना की हार्वेस्टिंग एक कठिन काम है, जो मुख्य रूप से सहनी समुदाय जैसे मछुआरे करते हैं। ये लोग पीढ़ियों से इस परंपरा को निभा रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या सीमित है और हर जगह पहुंच पाना उनके लिए मुश्किल है। सिर्फ 5% अन्य लोग इस काम से जुड़े हैं। इस समस्या के समाधान के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी ने एक मशीन विकसित की है। यह मशीन कीचड़ के साथ बीज खींच लेगी, और बीज ऊपर रह जाएगा जबकि कीचड़ तालाब में वापस चला जाएगा। प्रोटोटाइप तैयार है, और अगले साल तक इसे कंपनियों को सौंपने की योजना है। इससे अन्य राज्यों में भी हार्वेस्टिंग आसान होगी और श्रमिकों की कमी का बोझ कम होगा।

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तालाब से खेत तक, एक ही वैरायटी का कमाल

मखाना अब तालाबों से निकलकर खेतों में भी उगाया जा रहा है, जहां डेढ़ फीट पानी पर्याप्त है। तालाब में चार से पांच फीट पानी रहता है, जबकि खेत में घुटने भर पानी होने से हार्वेस्टिंग आसान हो जाती है। एक ही वैरायटी तालाब और खेत दोनों में सफल है, जो किसानों के लिए फायदेमंद है। धान की तुलना में मखाना अधिक लाभ देता है—एक एकड़ में डेढ़ लाख रुपये खर्च करने पर दो से तीन गुना शुद्ध मुनाफा होता है। इसका दाना 300-350 रुपये प्रति किलो और लावा 1000-1600 रुपये प्रति किलो बिकता है। कई किसान सरकारी जमीन पर कॉन्ट्रैक्ट लेकर इसकी खेती कर रहे हैं, जो उनकी आजीविका को मजबूत कर रहा है।

मखाना सिर्फ लावा तक सीमित नहीं है। इसके सीड को रोस्ट करके लावा बनाया जाता है, जबकि नट से स्टार्च निकाला जाता है, जो साड़ी उद्योग और फार्मा सेक्टर में इस्तेमाल होता है। कई लोग खीर, फ्लेवर्ड मखाना, और अन्य व्यंजन बना रहे हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट होने से यह सेहत के लिए लाभकारी है। ये उत्पाद मखाना की मांग को और बढ़ा रहे हैं, जो किसानों को नई आय के रास्ते खोल रहे हैं।

निर्यात के मानक, गुणवत्ता का आधार

किसानों को अक्सर सवाल होता है कि उनका मखाना निर्यात योग्य है या नहीं। इसके लिए नमी 10%, ऐश 1.5%, क्रूड फाइबर 0.5%, और क्रूड प्रोटीन 8% तक होना जरूरी है। इन मानकों को पूरा करने के लिए साफ-सफाई और सही प्रोसेसिंग पर ध्यान देना होगा। साल 2025-26 में 15-20 हजार मीट्रिक टन निर्यात का लक्ष्य है, जो मखाना उद्योग को 1800 करोड़ रुपये तक ले जाएगा। लेकिन अमेरिका जैसे देशों द्वारा लगाए गए टैरिफ इसकी राह में चुनौती बन सकते हैं, जिससे कीमतों पर असर पड़ सकता है।

मखाना उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2022-23 में 600-700 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ, जो 2025-26 में 1800 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। 24 हजार मीट्रिक टन उत्पादन के साथ इसका बाजार मूल्य 1000 रुपये प्रति किलो से शुरू होता है। यह कारोबार न सिर्फ मिथिला, बल्कि पूरे भारत के लिए आर्थिक उछाल का कारण बन रहा है। मखाना बोर्ड के गठन से अनुसंधान, व्यवस्थित निर्यात, और कीमत नियंत्रण को बढ़ावा मिलेगा, जो किसानों और उद्यमियों के लिए फायदेमंद होगा।

किसानों के लिए संदेश

मखाना किसानों को सलाह है कि वे रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम करें और वर्मी कम्पोस्ट पर भरोसा करें। इससे उत्पादन बढ़ेगा और मखाना की खुशबू भी बेहतर होगी। यह पानी में उगने वाली फसल है, इसलिए बरसात का पानी खेत में रोकने की कोशिश करें। वेटलैंड में ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल फायदेमंद है। खेतों में भी मखाना उगाया जा सकता है, क्योंकि इसकी मांग बढ़ रही है और भविष्य उज्ज्वल है।

मखाना बोर्ड का गठन एक सकारात्मक कदम है, जो किसानों, उद्यमियों, और उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाएगा। यह बोर्ड वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देगा और निर्यात को व्यवस्थित करेगा। कीमतों को नियंत्रित करने में भी यह मददगार होगा। 14 सितंबर 2025, सुबह 02:05 AM की यह रात मखाना किसानों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है। मशीनों और बोर्ड की मदद से उनकी मेहनत मुनाफे में बदलेगी, और मिथिला का यह सुपरफूड हर थाली तक पहुंचेगा।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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